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अर्जयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
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बहुत प्रसन्न रहा करती थीं। वात्स्यायनजी ! यह मैंने आपको जानकीके पुत्र जन्मका प्रसङ्ग सुनाया है। अब
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
अवकी रक्षा करनेवाले वीरोंकी भुजाओंके काटे जाने के पश्चात् जो घटना हुई, उसका वर्णन सुनिये । ★
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शेषजी कहते हैं— मुनिवर ! अपने वीरोंकी भुजाएँ कटी देख शत्रुनजीको बड़ा क्रोध हुआ। वे रोषके मारे दाँतोंसे ओठ चबाते हुए बोले- 'योद्धाओ ! किस वीरने तुम्हारी भुजाएँ काटी है? आज मैं उसकी बाँहें काट डालूँगा देवताओंद्वारा सुरक्षित होनेपर भी वह छुटकारा नहीं पा सकता। शत्रुघ्नजीके इस प्रकार कहनेपर वे योद्धा विस्मित और अत्यन्त दुःखी होकर बोले- 'राजन् ! एक बालकने, जिसका स्वरूप श्रीरामचन्द्रजीसे बिलकुल मिलता-जुलता है, हमारी यह दुर्दशा की है।' बालकने घोड़ेको पकड़ रखा है, यह सुनकर शत्रुघ्रजीकी आँखें क्रोधसे लाल हो गयीं और उन्होंने युद्धके लिये उत्सुक होकर कालजित् नामक सेनाध्यक्षको आदेश दिया- 'सेनापते! मेरी आज्ञासे सम्पूर्ण सेनाका व्यूह बना लो इस समय अत्यन्त बलवान् और पराक्रमी शत्रुपर चढ़ाई करनी है। यह घोड़ा पकड़नेवाला वीर कोई साधारण बालक नहीं है। निश्चय ही उसके रूपमें साक्षात् इन्द्र होंगे।' आज्ञा पाकर सेनापतिने चतुरङ्गिणी सेनाको दुर्भेद्य व्यूहके रूपमें सुसज्जित किया। सेनाको सजी देख शत्रुनजीने उसे उस स्थानपर कूच करनेकी आज्ञा दी, जहाँ अवका अपहरण करनेवाला बालक खड़ा था। तब वह चतुरङ्गिणी सेना आगे बढ़ी। सेनापतिने श्रीरामके समान रूपवाले उस बालकको देखा और कहा-' - कुमार! यह पराक्रमसे शोभा पानेवाले श्रीरामचन्द्रजीका श्रेष्ठ अश्व है, इसे छोड़ दो। तुम्हारी आकृति श्रीरामचन्द्रजीसे बहुत मिलती जुलती है, इसलिये तुम्हें देखकर मेरे हृदयमें दया आती है। यदि मेरी बात नहीं मानोगे तो तुम्हारे जीवनकी रक्षा नहीं हो सकती।'
युद्धमें लवके द्वारा सेनाका संहार, कालजित्का वध तथा पुष्कल और हनुमान्जीका मूर्च्छित होना
शत्रुघ्नजीके योद्धाकी यह बात सुनकर कुमार
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लव किञ्चित् मुसकराये और कुछ रोषमें आकर यह अद्भुत वचन बोले- "जाओ, तुम्हें छोड़ देता हूँ, श्रीरामचन्द्रजीसे इस घोड़ेके पकड़े जानेका समाचार कहो वीर! तुम्हारे इस नीतियुक्त वचनको सुनकर मैं तुमसे भय नहीं खाता। तुम्हारे जैसे करोड़ों योद्धा आ जायें, तो भी मेरी दृष्टिमें यहाँ उनकी कोई गिनती नहीं है। मैं अपनी माताके चरणोंकी कृपासे उन सबको रूईकी ढेरीके तुल्य मानता हूँ, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। तुम्हारी माताने जो तुम्हारा नाम 'कालजित्' रखा है, उसे सफल बनाओ। मैं तुम्हारा काल हूँ, मुझे जीत लेनेपर ही तुम अपना नाम सार्थक कर सकोगे।”