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पातालखण्ड ] युद्धमें चम्पकके द्वारा पुष्कलका बाँधा जाना तथा श्रीरामके आनेसे सबका छुटकारा •
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-------------------------------------------------------------------------RAN-SONG
-मैं राजा सुरथका पुत्र हूँ, मेरी माताका नाम वीरवती है। [ अपने नामका उच्चारण निषिद्ध है, इसलिये मैं उसे सङ्केतसे बता रहा हूँ] मेरे नामका एक वृक्ष होता है, जो वसन्तऋतुमें खिलकर अपने आस-पासके सभी प्रदेशोंको शोभासम्पन्न बना देता है। यद्यपि उसका पुष्प रसका भण्डार होता है; तथापि मधुसे मोहित भ्रमर उसका परित्याग कर देते हैं—उससे दूर ही रहते हैं। वह फूल जिस नामसे पुकारा जाता है, उसे ही मेरा भी मनोहर नाम समझो। अच्छा, अब तुम इस संग्राममें अपने बाणोंद्वारा युद्ध करो; मुझे कोई भी जीत नहीं सकता। मैं अभी अपना अद्भुत पराक्रम दिखाता हूँ।
चम्पककी बात सुनकर पुष्कलका चित्त सन्तुष्ट हो गया। अब वे उसके ऊपर करोड़ों बाणोंकी वर्षा करने लगे। तब चम्पकने भी कुपित होकर अपने धनुषपर प्रत्यशां चढ़ायी और शत्रु समुदायको विदीर्ण करनेवाले तीखे बाणोंको छोड़ना आरम्भ किया। किन्तु महावीर पुष्कलने उसके उन बाणोंको काट डाला। यह देख चम्पकने पुष्कलकी छातीमें प्रहार करनेके लिये सौ बाणोंका सन्धान किया; किन्तु पुष्कलने तुरंत ही उनके भी टुकड़े-टुकड़े कर डाले तथा अत्यन्त कोपमें भरकर बाणोंकी बौछार आरम्भ कर दी। बाणोंकी वह वर्षा अपने ऊपर आती देख चम्पकने 'साधु-साधु' कहकर पुष्कलकी प्रशंसा करते हुए उन्हें अच्छी तरह घायल किया। पुष्कल सब शस्त्रोंके ज्ञाता थे। उन्होंने चम्पकको महापराक्रमी जानकर अपने धनुषपर ब्रह्मास्त्रका प्रयोग किया। उधर चम्पक भी कुछ कम नहीं था, उसने भी सब प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंकी विद्वत्ता प्राप्त की थी पुष्कलके छोड़े हुए अस्त्रको देखकर उसे शान्त करनेके लिये उसने भी ब्रह्मास्त्रका ही प्रयोग किया। दोनों अस्त्रोंके तेज जब एकत्रित हुए, तो लोगोंने समझा अब प्रलय हो जायगा । किन्तु जब शत्रुका अस्त्र अपने अवसे मिलकर एक हो गया तो चम्पकने पुनः उसे शान्त कर दिया।
चम्पकका वह अद्भुत कर्म देखकर पुष्कलने 'खड़ा रह खड़ा रह कहते हुए उसपर असंख्य बाणोंका प्रहार
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किया । किन्तु महामना चम्पकने पुष्कलके छोड़े हुए बाणोंकी परवा न करके उनके प्रति भयङ्कर बाण --- रामास्त्रका प्रयोग किया। पुष्कल उसे काटनेका विचार कर रहे थे कि उस बाणने आकर उन्हें बाँध लिया। इस प्रकार वीरवर चम्पकने पुष्कलको बाँधकर अपने रथपर बिठा लिया। उनके बाँधे जानेपर सेनामें महान् हाहाकार मचा। समस्त योद्धा भागकर शत्रुघ्नके पास चले गये। उन्हें भागते देख शत्रुघ्नने हनुमानजीसे पूछा- 'मेरी सेना तो बहुतेरे वीरोंसे अलङ्कृत है; फिर किस वीरने उसे भगाया है।' तब हनुमानजीने कहा- 'राजन् ! शत्रुवीरोंका दमन करनेवाला वीरवर चम्पक पुष्कलको बाँधकर लिये जा रहा है। उनकी ऐसी बात सुनकर शत्रुघ्न क्रोधसे जल उठे और पवनकुमारसे बोलेआप शीघ्र ही पुष्कलको राजकुमारके बन्धनसे छुड़ाइये।' यह सुनकर हनुमानजीने कहा - — 'बहुत अच्छा। फिर वे पुष्कलको चम्पककी कैदसे मुक्त करनेके लिये चल दिये। हनुमानजीको उन्हें छुड़ानेके लिये आते देख चम्पकको बड़ा क्रोध हुआ और उसने उनके ऊपर सैकड़ों-हजारों बाणोंका प्रहार किया। परन्तु उन्होंने शत्रुके छोड़े हुए समस्त सायकोंको चूर्ण कर डाला और एक शाल हाथमें लेकर राजकुमारपर दे मारा। चम्पक भी बड़ा बलवान् था। उसने हनुमान्जीके चलाये हुए शालको तिल-तिल करके काट डाला। तब हनुमानजीने उसके ऊपर बहुत-सी शिलाएँ फेंकी; परन्तु उन सबको भी उसने क्षणभरमें चूर्ण कर दिया। यह देख हनुमान्जीके हृदयमें बहुत क्रोध हुआ। वे यह सोचकर कि यह राजकुमार बहुत पराक्रमी है; उसके पास आये और उसे हाथसे पकड़कर आकाशमें उड़ गये। अब चम्पक आकाशमें ही खड़ा होकर हनुमानजीसे युद्ध करने लगा। उसने बाहुयुद्ध करके कपिश्रेष्ठ हनुमानजीको बहुत चोट पहुँचायी। उसका बल देखकर हनुमान्जीने हँसते-हँसते पुनः उसका एक पैर पकड़ लिया और उसे सौ बार घुमाकर हाथीके हौदेपर पटक दिया। वहाँसे धरतीपर गिरकर वह बलवान् राजकुमार मूर्च्छित हो गया। उस समय चम्पकके अनुगामी सैनिक