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पातालखण्ड]
- गुप्तचरोसे अपवादकी बात सुनकर सीताको वनमें छोड़ आनेका आदेश .
असाध्य है। उदाहरणके लिये-'उन्होंने समुद्रको वशमें इसके सिवा, एक अन्य गुप्तचर अपने सामने किया और उसपर पुल बाँधा । फिर वानरोंसे लङ्कापुरीका धोबीका घर देखकर वहीं महाराज श्रीरामका यश विध्वंस कराया और अपने शत्रु रावणको मारकर वे सुननेकी इच्छासे गया। किन्तु उस घरका स्वामी धोबी जानकीजीको यहाँ ले आये। इस प्रकार श्रीरामने क्रोधमें भरा था। उसकी पत्नी दूसरेके घरमे दिनका महापुरुषोंके आचारका पालन किया है।' पत्नीके ये मधुर अधिक समय व्यतीत करके आयी थी। उसने आँखें वचन सुनकर पति मुसकराये और उससे इस प्रकार लाल-लाल करके पल्लीको धिक्कारा और उसे लात बोले-'मुग्धे रावणको मारना और समुद्रका दमन मारकर कहा-“निकल जा मेरे घरसे; जिसके यहाँ सारा आदि जितने कार्य हैं, वे श्रीरामचन्द्रजीके लिये कोई दिन बिताया है, उसीके घर चली जा । तू दुष्टा है, पतिकी महान् कर्म नहीं है। महान् परमेश्वर ही ब्रह्मा आदिकी आज्ञाका उल्लङ्घन करनेवाली है; इसलिये मैं तुझे नहीं प्रार्थनासे लीलापूर्वक इस पृथ्वीपर अवतीर्ण हुए हैं और रसूंगा।' उस समय उसकी माताने कहा-'बेटा ! बहू बड़े-बड़े पापोंका नाश करनेवाले उत्तम चरित्रका विस्तार घरमें आ गयी है, इस बेचारीका त्याग मत करो। यह करते हैं। कौसल्याका आनन्द बढ़ानेवाले श्रीरामको तुम सर्वथा निरपराध है: इसने कोई कुकर्म नहीं किया है।' मनुष्य न समझो। वे ही इस जगत्को सृष्टि, पालन और धोबी क्रोधमें तो था ही, उसने माताको जवाब संहार करते हैं। केवल लीला करनेके लिये ही उन्होंने दिया-'मैं राम-जैसा नहीं हूँ, जो दूसरेके घरमें रही हुई मनुष्य-विग्रह धारण किया है। हमलोग धन्य हैं, जो प्यारी पल्लीको फिरसे ग्रहण कर लूँ। वे राजा हैं; जो कुछ प्रतिदिन श्रीरामके मुख-कमलका दर्शन करते हैं, जो भी करेंगे, सब न्याययुक्त ही माना जायगा। मैं तो दूसरेके ब्रह्मादि देवोंके लिये भी दुर्लभ है। हमें यह सौभाग्य प्राप्त घरमें निवास करनेवाली भार्याको कदापि नहीं ग्रहण कर है, इसलिये हम बड़े पुण्यात्मा है।' गुप्तचरने दरवाजेपर सकता।' धोबीकी बात सुनकर गुप्तचरको बड़ा क्रोध खड़े होकर इस प्रकारकी बहुत-सी बातें सुनी। हुआ और उसने तलवार हाथमें लेकर उसे मार M u nni डालनेका विचार किया। परन्तु सहसा उसे
श्रीरामचन्द्रजीके आदेशका स्मरण हो आया। उन्होंने आज्ञा दी थी, 'मेरी किसी भी प्रजाको प्राणदण्ड न देना।' इस बातको समझकर उसने अपना क्रोध शान्त कर लिया। उस समय रजककी बातें सुनकर उसे बहुत दुःख हुआ था, वह कुपित हो बारम्बार उच्छ्वास खींचता हुआ उस स्थानपर गया, जहाँ उसके साथी अन्य गुप्तचर मौजूद थे। वे सब आपसमें मिले और सबने एकदूसरेको अपना सुना हुआ श्रीरामचन्द्रजीका विश्ववन्दित चरित्र सुनाया। अन्तमें उस धोबीकी बात सुनकर उन्होंने आपसमें सलाह की और यह निश्चय किया कि दुष्टोंकी कही हुई बातें श्रीरघुनाथजीसे नहीं कहनी चाहिये। ऐसा विचार करके वे घरपर जाकर सो रहे। उन्होंने अपनी बुद्धिसे यह स्थिर किया था कि कल प्रातःकाल महाराजसे यह समाचार कहा जायगा।
शेषजी कहते हैं-श्रीरघुनाथजीने प्रातःकाल