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अर्थयस्व इषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् -
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शेषजी कहते हैं— इस प्रकार अनेक तरहकी बातें करते हुए दूतसे राजाने कहा- 'यदि मैं मन, वाणी और क्रियाद्वारा श्रीरामका ही भजन करता हूँ, तो वे मुझे शीघ्र दर्शन देंगे, अन्यथा श्रीरामभक्त हनुमान् आदि वीर मुझे बलपूर्वक बाँध लें और घोड़ेको छीन ले जायें।
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युद्धमें चम्पकके द्वारा पुष्कलका बाँधा जाना, हनुमान्जीका चम्पकको मूर्च्छित करके पुष्कलको छुड़ाना, सुरथका हनुमान् और शत्रुघ्न आदिको जीतकर अपने नगरमें ले जाना तथा श्रीरामके आनेसे सबका छुटकारा होना
शेषजी कहते हैं— अङ्गदके मुखसे सुरथका सन्देश सुनकर युद्धकी कलामें निपुणता रखनेवाले समस्त योद्धा संग्रामके लिये तैयार हो गये। सभी वीर उत्साहसे भरे थे, सब-के-सब रण-कर्म में कुशल थे। वे नाना प्रकारके स्वरोंमें ऐसी गर्जनाएँ करते थे, जिन्हें सुनकर कायरोको भय होता था। इसी समय राजा सुरथ अपने पुत्रों और सैनिकोंके साथ युद्धक्षेत्रमें आये। जैसे समुद्र प्रलयकालमें पृथ्वीको जलसे आप्लावित कर देता है, उसी प्रकार वे हाथी, रथ, घोड़े और पैदल योद्धाओंको साथ ले सारी पृथ्वीको आच्छादित करते हुए दिखायी दिये। उनकी सेनामें शङ्ख-नाद और विजयगर्जनाका कोलाहल छा रहा था। इस प्रकार राजा सुरथको युद्धके लिये उद्यत देख शत्रुघ्नने सुमतिसे - 'महामते। ये राजा अपनी विशाल सेनासे घिरकर आ पहुँचे अब हमलोगोंका जो कर्तव्य हो उसे बताओ।'
कहा
सुमतिने कहा- - अब यहाँ सब प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंका ज्ञान रखनेवाले पुष्कल आदि युद्ध-विशारद वीरोंको अधिक संख्यामें उपस्थित होकर शत्रुओंसे लोहा लेना चाहिये। वायुनन्दन हनुमानजी महान् शौर्यसे सम्पन्न हैं; अतः ये ही राजा सुरथके साथ युद्ध करें।
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
शेषजी कहते हैं- प्रधान मन्त्री सुमति इस प्रकारकी बातें बता ही रहे थे कि सुरथके उद्धत राजकुमार रण भूमिमें पहुँचकर अपनी धनुषकी टङ्कार
दूत ! तुम जाओ, राजा शत्रुघ्रसे मेरी कही हुई बातें सुना दो अच्छे-अच्छे योद्धा तैयार हों, मैं अभी युद्धके लिये चलता हूँ।' यह सुनकर वीर अङ्गद मुस्कराते हुए वहाँसे चल दिये। वहाँ पहुँचकर राजा सुरथकी कही हुई बातें उन्होंने ज्यों-की-त्यों कह सुनायीं।
करने लगे। उन्हें देखकर पुष्कल आदि महाबली योद्धा धनुष लिये अपने-अपने रथोंपर बैठकर आगे बढ़े। उत्तम अस्त्रोंके ज्ञाता वीर पुष्कल चम्पकके साथ भिड़ गये और महावीरजीसे सुरक्षित होकर द्वैरथ युद्धकी रीतिसे लड़ने लगे। जनककुमार लक्ष्मीनिधिने कुशध्वजको साथ लेकर मोहकका सामना किया। रिपुञ्जयके साथ विमल, दुर्वारके साथ सुबाहु, प्रतापीके साथ प्रतापाश्य, बलमोदसे अङ्गद, हर्यक्षसे नीलरल, सहदेवसे सत्यवान्, भूरिदेवसे महाबली राजा वीरमणि और असुतापके साथ उग्राश्व युद्ध करने लगे। ये सभी युद्ध कर्ममें कुशल, सब प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंमें प्रवीण तथा बुद्धिविशारद थे; अतः सबने घोर द्वन्द्वयुद्ध किया । वात्स्यायनजी ! इस प्रकार घमासान युद्ध छिड़ जानेपर सुरथके पुत्रोंद्वारा शत्रुघ्नकी सेनाका भारी संहार हुआ। युद्ध आरम्भ होनेके पहले पुष्कलने चम्पकसे कहा'राजकुमार ! तुम्हारा क्या नाम है ? तुम धन्य हो, जो मेरे साथ युद्ध करनेके लिये आ पहुँचे।'
चम्पकने कहा - वीरवर ! यहाँ नाम और कुलसे युद्ध नहीं होगा; तथापि मैं तुम्हें अपने नाम और बलका परिचय देता हूँ। श्रीरघुनाथजी ही मेरी माता तथा वे ही मेरे पिता हैं, श्रीराम हो मेरे बन्धु और श्रीराम ही मेरे स्वजन हैं। मेरा नाम रामदास है, मैं सदा श्रीरामचन्द्रजीकी ही सेवामें रहता हूँ। भक्तोंपर कृपा करनेवाले श्रीरामचन्द्रजी ही मुझे इस युद्धसे पार लगायेंगे। अब लौकिक दृष्टिसे अपना परिचय देता