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पातालखण्ड ] • राजकुमार दमनद्वारा घोड़ेका पकड़ा जाना तथा पुष्कलद्वारा पराजित होना
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जीतकर बलपूर्वक यहाँसे घोड़ेको छुड़ा ले जायें।' राजकुमारका वचन सुनकर सेवकको बड़ा रोष हुआ, तथापि वह हँसता हुआ वहाँसे लौट गया और राजाके पास जाकर उसने दमनकी कही हुई सारी बातें ज्यों की त्यों सुना दीं। उसे सुनते ही महाबली प्रतापाग्र्यकी आँखें क्रोधसे लाल हो गयीं और वे चार घोड़ोंसे सुशोभित सुवर्णमय रथपर सवार हो बड़े-बड़े वीरोंको साथ ले राजकुमारसे युद्ध करनेके लिये चले। उनकी सहायतामें बहुत बड़ी सेना थी। आगे बढ़कर वे धनुषपर टङ्कार देने लगे। उस समय रोषपूर्ण नेत्रोंवाले राजा प्रतापाय्यके पीछे-पीछे बहुत से घुड़सवार और हाथीसवार भी गये । निकट जाकर प्रतापाभ्यने युद्धके लिये उद्यत राजकुमारको सम्बोधित करके कहा-' - कुमार! तू तो अभी बालक है। क्या तूने ही हमारे श्रेष्ठ घोड़ेको बाँध रखा है ? अरे! समस्त वीरशिरोमणि जिनके चरणोंकी सेवा करते हैं, उन महाराज श्रीरामचन्द्रजीको तू नहीं जानता ? दैत्यराज रावण भी जिनके अद्भुत प्रतापको नहीं सह सका, उन्होंके घोड़ेको ले जाकर तूने अपने नगरमें पहुँचा दिया है! जान ले, मैं तेरे सामने आया हुआ काल हूँ, तेरा घोर शत्रु हूँ। छोकरे! तू अब तुरंत चला जा और घोड़े को छोड़ दे, फिर जाकर बालकोंकी भाँति खेल-कूदमें जी बहला।'
दमनका हृदय बड़ा विशाल था, वह प्रतापाय्यकी ऐसी बातें सुनकर मुसकराया और उनकी सेनाको तिनकेके समान समझता हुआ बोला- 'महाराज ! मैंने बलपूर्वक आपके घोड़ेको बाँधा और अपने नगरमें पहुँचा दिया है, अब जीते जी उसे लौटा नहीं सकता। आप बड़े बलवान् हैं तो युद्ध कीजिये। आपने जो यह कहा- 'तू अभी बालक है, इसलिये जाकर खेल कूदमें जी बहला' उसके लिये इतना ही कहना है कि अब आप युद्धके मुहानेपर ही मेरा खेल देखिये।'
इतना कहकर सुबाहु कुमारने अपने धनुषपर प्रत्यचा चढ़ायी और राजा प्रतापाश्यकी छातीको लक्ष्य करके सौ बाणोंका संधान किया। परन्तु राजा प्रतापायने अपने हाथकी फुर्ती दिखाते हुए उन सभी
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बाणोंके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। यह देखकर राजकुमार दमनको बड़ा क्रोध हुआ और वह बाणोंकी वर्षा करने लगा। तदनन्तर, दमनने अपने धनुषपर तीन सौ बाणोंका संधान किया और उन्हें शत्रुपर चलाया। उन्होंने प्रतापाय्यकी छाती छेद डाली और रक्तमें नहाकर वे उसी भाँति नीचे गिरे, जैसे श्रीरामचन्द्रजीकी भक्तिसे विमुख हुए पुरुषोंका पतन हो जाता है। इसके बाद राजकुमारने शङ्खध्वनिके साथ गर्जना की। उसका पराक्रम देखकर प्रतापाग्र्य क्रोधसे जल उठे और बोले— 'वीर! अब तू मेरा अद्भुत पराक्रम देख।' यो कहकर उन्होंने तुरंत तीखे बाणोंकी बौछार आरम्भ कर दी। वे बाण घोड़े और पैदल-सबके ऊपर पड़ते दिखायी देने लगे। उस समय राजकुमार दमनने प्रतापाग्र्यकी बाणवर्षाको रोककर कहा - 'आर्य ! यदि आप शूरवीर हैं तो मेरी एक ही मार सह लीजिये। मैं अभिमानपूर्वक प्रतिज्ञा करके एक बात कहता हूँ, इसे सुनिये - वीरवर! यदि मैं इस बाणके द्वारा आपको रथसे नीचे न गिरा दूँ तो जो लोग युक्तिवादमें कुशल होनेके कारण मतवाले होकर वेदोंकी निन्दा करते हैं, उनका वह नरकमें डुबोनेवाला पाप मुझे ही लगे।' यह कहकर उसने कालके समान भयङ्कर, आगकी ज्वालाओंसे व्याप्त एवं अत्यन्त तीक्ष्ण बाण तरकशसे निकालकर अपने धनुषपर चढ़ाया। वह कालाग्निके समान देदीप्यमान हो रहा था। राजकुमारने अपने शत्रुके हृदयको निशाना बनाया और बाण छोड़ दिया। वह बड़े वेगसे शत्रुकी ओर चला। प्रतापाग्र्यने जब देखा कि शत्रुका बाण मुझे गिरानेके लिये आ रहा है, तो उन्होंने उसे काट डालनेके लिये कई तीखे बाण अपने धनुषपर चढ़ाये। किन्तु राजकुमारका बाण प्रतापाश्यके सब बाणोंको बीचसे काटता हुआ उनके धैर्ययुक्त हृदयतक पहुँच ही गया। हृदयपर चोट करके वह उसके भीतर घुस गया। राजा प्रतापाग्र्य उसकी चोट खाकर पृथ्वीपर गिर पड़े। उन्हें मूर्च्छित - चेतनाहीन एवं रथकी बैठकसे धरतीपर गिरा देख सारथिने उठाकर रथपर बिठाया और युद्धभूमिसे बाहर ले गया। उस समय राजाकी सेनामें