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• अर्चयस्थ हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[ संक्षिप्त परापुराण
करनेवाले शत्रुघ्रके मनमें बड़ा विस्मय हुआ। वे नरकमें, जिसका विस्तार दस हजार योजन है, पड़ता है। शौनकसे बोले-'कर्मकी बात बड़ी गहन है, जिससे जो गौओंसे द्रोह करता है, उसे यमराजके किङ्कर नरकमें सात्त्विक नामधारी ब्राह्मण अपने महान् कर्मसे स्वर्गमें डालकर पकाते हैं; वह भी थोड़े समयतक नहीं, गौओंके पहुँचकर भी पुनः राक्षसभावको प्राप्त हो गया। स्वामिन् ! शरीरमें जितने रोएँ होते हैं, उतने ही हजार वर्षांतक । जो आप कोंक अनुसार जैसी गति होती है, उसका वर्णन इस पृथ्वीका राजा होकर दण्ड न देने योग्य पुरुषको दण्ड कीजिये ! जिस कर्मके परिणामसे जैसे नरककी प्राप्ति देता है तथा लोभवश (अन्यायपूर्वक) ब्राह्मणको भी होती है, उसे बताइये।'
शारीरिक दण्ड देता है, उसे सूअरके समान मुँहवाले दुष्ट शौनकने कहा-रघुकुलश्रेष्ठ ! तुम धन्य हो, जो यमदूत पीड़ा देते हैं। तत्पश्चात् वह शेष पापोंसे छुटकारा तुम्हारी बुद्धि सदा ऐसी बातोंको जानने और सुनने में लगी पानेके लिये दुष्ट योनियोंमें जन्म ग्रहण करता है। जो रहती है। इसमें संदेह नहीं कि तुम इस विषयको मनुष्य मोहवश ब्राह्मणों तथा गौओंके थोड़े-से भी द्रव्य, भलीभांति जानते हो; तो भी लोगोंके हितके लिये मुझसे धन अथवा जीविकाको लेते या लूटते हैं, वे परलोकमें पूछ रहे हो। महाराज ! कोंके स्वरूप विचित्र हैं तथा जानेपर अन्धकूप नामक नरकमें गिराये जाते हैं। वहाँ उनकी गति भी नाना प्रकारको है; मैं उसका वर्णन करता उनको महान् कष्ट भोगना पड़ता है। जो जीभके लिये हूँ, सुनो। इस विषयका श्रवण करनेसे मनुष्यको मोक्षकी आतुर हो लोलुपतावश स्वयं ही मधुर अन्न लेकर खा प्राप्ति हो सकती है।
जाता है, देवताओं तथा सुहदोंको नहीं देता, वह निश्चय जो दुष्ट बुद्धिवाला पुरुष पराये धन, परायी संतान ही 'कृमिभोजन' नामक नरकमें पड़ता है। जो मनुष्य और परायी स्त्रीको भोग-बुद्धिसे बलात्पूर्वक अपने सुवर्ण आदिका अपहरण अथवा ब्राह्मणके धनकी चोरी अधिकारमें कर लेता है, उसको महाबली यमदूत काल- करता है, वह अत्यन्त दुःखदायक 'संदंश' नामक पाशमें बाँधकर तामिस्र नामक नरकमें गिराते हैं और नरकमें गिरता है। जबतक एक हजार वर्ष पूरे नहीं हो जाते, तबतक उसीमें जो मूढ बुद्धिवाला पुरुष केवल अपने शरीरका रखते हैं। यमराजके प्रचण्ड दूत वहाँ उस पापीको खूब पोषण करता है, दूसरेको नहीं जानता, वह तपाये हुए पीटते हैं। इस प्रकार पाप-भोगके द्वारा भलीभाँति केश तेलसे पूर्ण अत्यन्त भयंकर कुम्भीपाक नरकमें डाला उठाकर अन्तमें वह सूअरकी योनिमें जन्म लेता है और जाता है। जो पुरुष मोहवश अगम्या स्त्रीको भार्याउसमें भी महान् दुःख भोगनेके पश्चात् वह फिर मनुष्यको बुद्धिसे भोगना चाहता है, उसे यमराजके दूत उसी स्त्रीकी योनिमें जाता है; परन्तु वहाँ भी अपने पूर्वजन्मके लोहमयी तपायी हुई प्रतिमाके साथ आलिङ्गन करवाते कलङ्कको सूचित करनेवाला कोई रोग आदिका चिह्न हैं। जो अपने बलसे उन्मत्त होकर बलपूर्वक वेदकी धारण किये रहता है। जो केवल दूसरे प्राणियोंसे द्रोह मर्यादाका लोप करते हैं, वे वैतरणी नदीमें डूबकर मांस करके ही अपने कुटुम्बका पोषण करता है, वह और रक्त भोजन करते हैं । जो द्विज होकर शूद्रकी स्त्रीको पापपरायण पुरुष अन्धतामिस्र नरकमें पड़ता है। जो अपनी भार्या बनाकर उसके साथ गृहस्थी चलाता है, वह लोग यहाँ दूसरे प्राणियोंका वध करते हैं, वे रौरव नरकमें निश्चय ही 'पूयोद' नामक नरकमें गिरता है। वहाँ उसे गिराये जाते हैं तथा रुरु नामक पक्षी रोषमें भरकर उनका बहुत दुःख भोगना पड़ता है। जो धूर्त लोगोंको धोखेमें शरीर नोचते हैं। जो अपने पेटके लिये दूसरे जीवोंका डालनेके लिये दम्भका आश्रय लेते हैं, वे मूढ वैशस वध करता है, उसे यमराजकी आज्ञासे महारैरव नामक नामक नरकमें डाले जाते हैं और वहाँ उनपर यमराजकी नरकमें डाला जाता है। जो पापी अपने पिता और मार पड़ती है। जो मूढ सवर्णा (समान गोत्रवाली) ब्राह्मणसे द्वेष करता है, वह महान् दुःखमय कालसूत्र स्त्रीको योनिमें वीर्यपात करते हैं, उन्हें वीर्यकी नहरमें