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• अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . 1 [संक्षिप्त पापुराण ..... .............................................. ...............
और वीरभद्रको मुक्केसे मारने लगे। फिर दोनोंने एक किया, किन्तु महादेवजी उस महान् अस्त्रको हँसते-हँसते दूसरेपर मुष्टिकाप्रहार आरम्भ किया। दोनों ही परस्पर पी गये। इससे शत्रुघ्नको बड़ा आश्चर्य हुआ। वे सोचने विजयके अभिलाषी और एक-दूसरेके प्राण लेनेको लगे-'अब क्या करना चाहिये?' वे इस प्रकार विचार उतारू थे। इस प्रकार रात-दिन लगातार युद्ध करते उन्हें कर ही रहे थे कि देवाधिदेवोंके शिरोमणि भगवान् शिवने चार दिन व्यतीत हो गये। पाँचवें दिन पुष्कलको बड़ा शत्रुघ्नकी छातीमें एक अग्निके समान तेजस्वी बाण भोंक क्रोध हुआ और उन्होंने वीरभद्रका गला पकड़कर उन्हें दिया। उससे मूर्च्छित होकर शत्रुघ्न रणभूमिमें गिर पड़े। पृथ्वीपर दे मारा। उनके प्रहारसे महाबली वीरभद्रको उस समय योद्धाओंसे भरी हुई उनकी सारी सेनामें बड़ी पीड़ा हुई। फिर उन्होंने भी पुष्कलके पैर पकड़कर हाहाकार मच गया। शत्रुधको बाणोंसे पीड़ित एवं उन्हें बारम्बार घुमाया और पृथ्वीपर पछाड़कर मार मूर्छित होकर गिरा देख हनुमान्जीने पुष्कलके शरीरको डाला। महाबली वीरभद्रने पुष्कलके मस्तकको, जिसमें रथपर सुला दिया और सेवकोंको उनकी रक्षामें तैनात कुण्डल जगमगा रहे थे, त्रिशूलसे काट दिया। इसके करके वे स्वयं संहारकारी शिवसे युद्ध करनेके लिये बाद वे जोर-जोरसे गर्जना करने लगे। यह देखकर सभी आये। हनुमानजी श्रीरामचन्द्रजीका स्मरण करके अपने लोग थर्रा उठे। रणभूमिमें जो युद्ध-कुशल वीर थे, पक्षके योद्धाओंका हर्ष बढ़ाते हुए रोषके मारे अपनी उन्होंने वीरभद्रके द्वारा पुष्कलके मारे जानेका समाचार पूँछको जोर-जोरसे हिला रहे थे। शत्रुघ्रसे कहा।
युद्धके मुहानेपर रुद्रके समीप पहुँचकर महावीर पुष्कलके वधका वृत्तान्त सुनकर महावीर शत्रुघ्नको हनुमानजी देवाधिदेव महादेवजीका वध करनेकी इच्छासे बड़ा दुःख हुआ। वे शोकसे काँप उठे। उन्हें दुःखी बोले-'रुद्र ! तुम रामभक्तका वध करनेके लिये उद्यत जानकर भगवान् शङ्करने कहा- शत्रुघ्न ! तू युद्धमे होकर धर्मके प्रतिकूल आचरण कर रहे हो; इसलिये मैं शोक न कर । वीर पुष्कल धन्य है, जिसने महाप्रलयकारी तुम्हें दण्ड देना चाहता हूँ। मैंने पूर्वकालमें वैदिक वीरभद्रके साथ पाँच दिनोंतक युद्ध किया। ये वीरभद्र वे ऋषियोंके मुंहसे अनेकों बार सुना है कि पिनाकधारी रुद्र ही हैं, जिन्होंने मेरे अपमान करनेवाले दक्षको क्षणभरमें सदा ही श्रीरघुनाथजीके चरणोंका स्मरण करते रहते हैं; मार डाला था; अतः महाबलवान् राजेन्द्र ! तू शोक त्याग किन्तु वे सभी बातें आज झूठी साबित हुई। क्योंकि दे और युद्ध कर । शत्रुघ्नने शोक छोड़ दिया। उन्हें शङ्करके तुमने राम भक्त शत्रुनके साथ युद्ध किया है।' प्रति बड़ा क्रोध हुआ। उन्होंने चढ़ाये हुए धनुषको हाथमें हनुमानजीके ऐसा कहनेपर महेश्वर बोले-'कपिश्रेष्ठ ! लेकर महेश्वरपर बाणोका प्रहार आरम्भ किया। उधरसे तुम वीरोमें प्रधान और धन्य हो । तुमने जो कुछ कहा है, शङ्करने भी बाण छोड़े। दोनोंके बाण आकाशमें छा गये। वह सत्य है । देवदानव-वन्दित ये भगवान् श्रीरामचन्द्रजी वाण-युद्धमें दोनोंकी क्षमता देखकर सब लोगोंको यह वास्तवमें मेरे स्वामी हैं। किन्तु मेरा भक्त वीरमणि उनके विश्वास हो गया कि अब सबको मोहमें डालनेवाला अश्वको ले आया है और उस अश्वके रक्षक शत्रुघ्न, जो लोक-संहारकारी प्रलयकाल आ पहुँचा । दर्शक कहने शत्रुवीरोंका दमन करनेवाले हैं, इसके ऊपर चढ़ आये लगे-'ये तीनों लोकोंकी उत्पत्ति और प्रलय करनेवाले हैं। इस अवस्थामें मैं वीरमणिकी भक्तिके वशीभूत होकर रुद्र हैं, तो वे भी महाराज श्रीरामचन्द्रके छोटे भाई है। न उसकी रक्षाके लिये आया हूँ; क्योंकि भक्त अपना ही जाने क्या होगा। इस भूतलपर किसकी विजय होगी?' स्वरूप होता है। अतः जिस किसी तरह भी सम्भव हो,
इस प्रकार शत्रुघ्न और शिवमें ग्यारह दिनोंतक उसकी रक्षा करनी चाहिये; यही मर्यादा है।' परस्पर युद्ध होता रहा । बारहवें दिन राजा शत्रुघ्नने क्रोध चण्डीपति भगवान् शङ्करके ऐसा कहनेपर भरकर महादेवजीका वध करनेके लिये ब्रह्मास्त्रका प्रयोग हनुमानजी बहुत कुपित हुए और उन्होंने एक बड़ी शिला