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पातालखण्ड ]
. शत्रुन आदिका घोड़ेसहित आरण्यक मुनिके आश्रमपर जाना .
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सेना साथ ले सीताके लिये लङ्कापुरीको चारों ओरसे घेर अतिकायका वध हुआ। अष्टमीसे द्वादशीतक पाँच लिया। तृतीयासे दशमीपर्यन्त आठ दिनोंतक सेनाका दिनोंमें निकुम्भ और कुम्भ मौतके घाट उतारे गये। उसके घेरा पड़ा रहा। एकादशीके दिन शुक और सारण सेनामें बाद तीन दिनोंमें मकराक्षका वध हुआ। फाल्गुन कृष्ण घुस आये थे। पौष-कृष्ण द्वादशीको शार्दूलके द्वारा द्वितीयाके दिन इन्द्रजित्ने लक्ष्मणपर विजय पायी। फिर वानर-सेनाकी गणना हुई। साथ ही उसने प्रधान-प्रधान तृतीयासे सप्तमीतक पाँच दिन लक्ष्मणके लिये दवा वानरोंकी शक्तिका भी वर्णन किया। शत्रुसेनाकी संख्या आदिके प्रवन्धमें व्यय रहनेके कारण श्रीरामने युद्धको जानकर रावणने त्रयोदशीसे अमावास्यापर्यन्त तीन बंद रखा। तदनन्तर त्रयोदशीपर्यन्त पाँच दिनोंतक युद्ध दिनोंतक लङ्कापुरीमें अपने सैनिकोंको युद्धके लिये करके लक्ष्मणने विख्यात बलशाली इन्द्रजित्को युद्धमें उत्साहित किया। माघ-शुक्ल प्रतिपदाको अङ्गद दूत मार डाला। चतुर्दशीको दशग्रीव रावणने यज्ञकी दीक्षा बनकर रावणके दरबारमें गये। उधर रावणने मायाके ली और युद्धको स्थगित रखा। फिर अमावास्याके दिन द्वारा सीताको, उनके पतिके कटे हुए मस्तक आदिका वह युद्धके लिये प्रस्थित हुआ। चैत्र शुक्ल प्रतिपदासे दर्शन कराया। माघकी द्वितीयासे लेकर अष्टमीपर्यन्त लेकर पञ्चमीतक रावण युद्ध करता रहा; उसमें पाँच सात दिनोंतक राक्षसों और वानरोंमें घमासान युद्ध होता दिनोंके भीतर बहुत-से राक्षसोंका विनाश हुआ। षष्ठीसे रहा । माघ शुक्ला नवमीको रात्रिके समय इन्द्रजित्ने युद्धमे अष्टमीतक महापार्श्व आदि राक्षस मारे गये। चैत्र शुक्ल श्रीराम और लक्ष्मणको नाग-पाशसे बाँध लिया। इससे नवमीके दिन लक्ष्मणजीको शक्ति लगी। तब श्रीरामने प्रधान-प्रधान वानर जब सब ओरसे व्याकुल और क्रोधमें भरकर दशशीशको मार भगाया। फिर अञ्जनाउत्साहहीन हो गये तो दशमीको नाग-पाशका नाश नन्दन हनुमानजी लक्ष्मणकी चिकित्साके लिये द्रोण पर्वत करनेके लिये वायुदेवने श्रीरामचन्द्रजीके कानमें गरुड़के उठा लाये । दशमीके दिन श्रीरामचन्द्रजीने भयङ्कर युद्ध मन्त्रका जप और उनके स्वरूपका ध्यान बता दिया। किया, जिसमें असंख्य राक्षसोंका संहार हुआ। ऐसा करनेसे एकादशीको गरुड़जीका आगमन हुआ। एकादशीके दिन इन्द्रके भेजे हुए मातलि नामक सारथि फिर द्वादशीको श्रीरामचन्द्रजीके हाथसे धूम्राक्षका वध श्रीरामचन्द्रजीके लिये रथ ले आये और उसे युद्धक्षेत्रमें हुआ। त्रयोदशीको भी उन्हींके द्वारा कम्पन नामका भक्तिपूर्वक उन्होंने श्रीरघुनाथजीको अर्पण किया। राक्षस युद्धमें मारा गया। माघ शुक्ल चतुर्दशीसे कृष्ण तदनन्तर श्रीरामचन्द्रजी चैत्र शुक्ल द्वादशीसे कृष्णपक्षकी पक्षकी प्रतिपदातक तीन दिनमें नीलके द्वारा प्रहस्तका चतुर्दशीतक अठारह दिन रोषपूर्वक युद्ध करते रहे। वध हुआ। माघ कृष्ण द्वितीयासे चतुर्थीपर्यन्त तीन अन्ततोगत्वा उस द्वैरथयुद्धमें रामने रावणका वध किया। दिनोंतक तुमुल युद्ध करके श्रीरामने रावणको रणभूमिसे उस तुमुल संग्राममें श्रीरघुनाथजीने ही विजय प्राप्त की। भगा दिया। पञ्चमीसे अष्टमीतक चार दिनोंमें रावणने माघ शुक्ल द्वितीयासे लेकर चैत्रकृष्ण चतुर्दशीतक सतासी कुम्भकर्णको जगाया और जागनेपर उसने आहार ग्रहण दिन होते हैं, इनके भीतर केवल पंद्रह दिन युद्ध बंद किया। फिर नवमीसे चतुर्दशीपर्यन्त छः दिनोंतक युद्ध रहा। शेष बहत्तर दिनोंतक संग्राम चलता रहा। रावण करके श्रीरामने कुम्भकर्णका वध किया। उसने बहुत-से आदि राक्षसोंका दाहसंस्कार अमावास्याके दिन हुआ। वानरोंको भक्षण कर लिया था। अमावास्याके दिन वैशाख शुक्ल प्रतिपदाको श्रीरामचन्द्रजी युद्धभूमिमें ही कुम्भकर्णकी मृत्युके शोकसे रावणने युद्धको बंद रखा। ठहरे रहे। द्वितीयाको लङ्काके राज्यपर विभीषणका उसने अपनी सेना पीछे हटा ली। फाल्गुन शुक्ल अभिषेक किया गया । तृतीयाको सीताजीकी अग्निपरीक्षा प्रतिपदासे चतुर्थीतक चार दिनोंके भीतर विसतन्तु आदि हुई और देवताओंसे वर मिला। इस प्रकार लक्ष्मणके पाँच राक्षस मारे गये। पञ्चमीसे सप्तमीतकके युद्धमें बड़े भाई श्रीरामने लङ्कापति रावणको थोड़े ही दिनोंमें