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पातालखण्ड ] • शत्रुघ्नके द्वारा विद्युन्माली, उग्रदंष्ट्रका वध, उसके द्वारा चुराये हुए अश्वकी प्राप्ति •
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अत्यन्त मनोरम नाम सुनकर सत्यवान्के हृदयमें बड़ी शत्रुनके पास चल दिये। इतनेहीमें श्रीरामके छोटे भाई प्रसन्नता हुई। उनकी वाणी गद्गद हो गयी। वे कहने शत्रुघ्न भी राजधानीमें आ पहुंचे। राजा सत्यवान् लगे-'जिन भगवान् श्रीरामको मैं सदा अपने हृदयमें मन्त्रियोंके साथ उनके पास आये और चरणोंमें पड़कर धारण करता हूँ, मनमें चिन्तन करता हूँ, उन्हींका अश्व उन्हें अपना समृद्धिशाली राज्य अर्पण कर दिया। शत्रुनजीके साथ मेरे नगरमें आया है। उसके पास शत्रुघ्नने राजा सत्यवानको श्रीरामभक्त जानकर उनका श्रीरामके चरणोंकी सेवा करनेवाले हनुमानजी भी होंगे, विशाल राज्य उन्हींके पुत्रको, जिसका नाम रुक्म था, दे जो कभी भी श्रीरघुनाथजीको अपने मनसे नहीं बिसारते। दिया। सत्यवान् हनुमानजीसे मिलनेके पश्चात् जहाँ शत्रुघ्न है, जहाँ वायुनन्दन हनुमान्जी है तथा जहाँ श्रीरामसेवक सुबाहुसे मिले तथा और भी जितने रामश्रीरामचन्द्रजीके चरणकमलोंकी सेवामें रहनेवाले अन्य भक्त वहाँ पधारे थे, उन सबको हृदयसे लगाकर उन्होंने लोग मौजूद हैं, वहीं मैं भी जाता हूँ।' उन्होंने मन्त्रीको अपने-आपको कृतार्थ माना। फिर शत्रुघ्नजीके साथ आज्ञा दी–'तुम समूचे राज्यका बहुमूल्य धन लेकर होकर वे मन-ही-मन बड़े प्रसन्न हुए। इतनेहीमें वीर शीघ्र ही मेरे साथ आओ। मैं श्रीरघुनाथजीके श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा सुरक्षित वह अश्व दूर निकल गया; अतः अश्वकी रक्षा अथवा श्रीरामचरणोंकी सुदुर्लभ सेवा शूरवीरोंसे घिरे हुए शत्रुघ्नजी भी राजा सत्यवान्को साथ करनेके लिये जाऊँगा।' यह कहकर वे सैनिकोंके साथ लेकर वहाँसे चल दिये।
शत्रुघ्नके द्वारा विद्युन्माली और उग्रदंष्ट्रका वध तथा उसके द्वारा चुराये हुए अश्वकी प्राप्ति ___ शेषजी कहते हैं-मुनिवर ! रथियोंमें श्रेष्ठ शत्रुघ्न चारों ओरसे घेरकर खड़े थे। उन राक्षसोंके मुख दूषित
आदि बहुसंख्यक राजे-महाराजे करोड़ों रथोंके साथ चले एवं विकराल थे, दाढ़ें लम्बी थीं और आकृति बड़ी जा रहे थे, इसी समय उस मार्गपर सहसा अत्यन्त भयानक थी। वे ऐसे दिखायी दे रहे थे, मानो शत्रुघ्नकी भयङ्कर अन्धकार छा गया; जिसमें बुद्धिमान् पुरुषोंको भी सेनाको निगल जानेके लिये तैयार हों। तब सैनिकोंने अपने या परायेकी पहचान नहीं हो पाती थी। तदनन्तर राजाओंमें श्रेष्ठ शत्रुघ्नसे निवेदन किया-राजन् ! एक पातालनिवासी विद्युन्माली नामक राक्षस निशाचरोंके राक्षसने घोड़ेको पकड़ लिया है, अब आपको जैसा समुदायसे घिरा हुआ वहाँ आया। वह रावणका हितैषी उचित जान पड़े वैसा कीजिये।' उनकी बात सुनकर सुहृद् था। उसने घोड़ेको चुरा लिया। फिर तो दो ही शत्रुघ्न अत्यन्त रोषमें भर गये और बोले- 'कौन ऐसा अड़ीके पश्चात् वह सारा अन्धकार नष्ट हो गया। आकाश पराक्रमी राक्षस है, जिसने मेरे घोड़ेको पकड़ रखा है?' स्वच्छ दिखायी देने लगा। शत्रुन आदि वीरोंने एक- फिर वे मन्त्रीसे बोले- 'मन्त्रिवर ! बताओ, इस दूसरेसे पूछा-'घोड़ा कहाँ है?' उस अश्वराजके राक्षससे लोहा लेनेके लिये किन-किन वीरोंको नियुक्त विषयमें परस्पर पूछ-ताछ करते हुए वे सब लोग कहने करना चाहिये, जो उसका वध करनेके लिये उत्साह लगे-'अश्वमेधका अश्व कहाँ है? किस दुर्बुद्धिने रखनेवाले, अत्यन्त शूर, महान् शस्त्र धारण करनेवाले उसका अपहरण किया है ?' वे इस प्रकार कह ही रहे तथा प्रधान अस्त्रवेत्ताओंमें श्रेष्ठ हो।' थे कि राक्षसराज विद्युन्माली अपने समस्त योद्धाओंके सुमतिने कहा-हमारी सेनामें कुमार पुष्कल साथ दिखायी दिया। उसके योद्धा रथपर विराजमान हो महान् वीर, अस्त्र-शस्त्रोंके ज्ञाता और शत्रुओंको ताप अपने शौर्यसे शोभा पा रहे थे। विद्युन्माली स्वयं एक देनेवाले हैं; अतः ये ही विजयके लिये उद्यत हो युद्धमें श्रेष्ठ विमानपर बैठा था और प्रधान-प्रधान राक्षस उसे उस राक्षसको जीतनेके लिये जायें। इनके सिवा