________________ 448 * अर्बयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण तथा जो ब्रह्मा आदिके लिये भी दुर्लभ है, ऐसा स्वरूप तुलसीको सुगन्धसे मतवाले हुए भंवरे मड़राया करते हैं। इन्हें कैसे प्राप्त हो गया ? भगवान् विष्णुके निकट शङ्ख, चक्र, गदा और कमल आदि परिकर दिव्य शरीर रहनेवाले उनके पार्षदोंके हाथ, जिस प्रकार शङ्ख, चक्र, गदा, शार्ङ्गधनुष तथा कमलसे सुशोभित होते हैं तथा उनके शरीरपर जैसे वनमाला शोभा पाती है, उसी प्रकार ये भील भी क्यों दिखायी दे रहे हैं? इस प्रकार सन्देहमें पड़ जानेपर मैंने उनसे पूछा- 'सज्जनो ! आपलोग कौन हैं? और यह चतुर्भुज स्वरूप आपको कैसे प्राप्त हुआ है?' मेरा प्रश्न सुनकर वे लोग बहुत हंसे और कहने लगे-'ये महाशय ब्राह्मण होकर भी यहाँक पिण्डदानकी अद्भुत महिमा नहीं जानते।' यह सुनकर मैंने कहा-'कैसा पिण्ड और किसको दिया जाता है? चतुर्भुज-शरीर धारण करनेवाले महात्माओ! मुझे इसका रहस्य बताओ। मेरी बात सुनकर उन महात्माओंने, जिस तरह उन्हें चतुर्भुज स्वरूपकी प्राप्ति हुई थी, वह सारा वृत्तान्त कह सुनाया। किरात बोले-ब्राह्मण ! हमलोगोंका वृत्तान्त सुनो; हमारा एक बालक प्रतिदिन जामुन आदि वृक्षोंके फल खाता और अन्य बालकोंके साथ विचरा करता धारण करके जिनके चरणोंकी आराधना करते हैं तथा था। एक दिन घूमता-धामता वह यहाँ आया और नारद आदि देवर्षि जिनके श्रीविग्रहकी सेवामें लगे रहते शिशुओंके साथ ही इस पर्वतके मनोहर शिखरपर चढ़ हैं, ऐसे भगवान्की उस बालकने झाँकी की। वहाँ गया। ऊपर जाकर उसने देखा, एक अद्भुत देव-मन्दिर भगवान्की उपासनामें लगे हुए देवताओंमेंसे कुछ लोग है, उसकी दीवार सोनेकी बनी हुई है। जिसमें गारुत्मत गाते थे, कुछ नाच रहे थे और कुछ लोग अद्भुत रूपसे आदि नाना प्रकारकी मणियाँ जड़ी हुई हैं। वह अपनी अट्टहास कर रहे थे। वे सभी विश्व-वन्दित भगवान्को मनोहर कान्तिसे सूर्यकी भांति अन्धकारका नाश कर रहा रिझाने में ही लगे हुए थे। भगवान्को देखकर हमारा है। उसे देखकर बालकको बड़ा विस्मय हुआ और उसने बालक उनके निकट चला गया। देवताओने अच्छी तरह मन-ही-मन सोचा-'यह क्या है, किसका घर है? पूजा करके श्रीरमा-वल्लभ भगवान्को धूप और नैवेद्य जरा चलकर देखू तो सही, यह महात्माओंका कैसा अर्पण किया तथा आदरपूर्वक उनकी आरती करके स्थान है?' ऐसा विचारकर वह बड़भागी बालक भगवत्-कृपाका अनुभव करते हुए वे सब लोग मन्दिरके भीतर घुस गया। वहाँ जाकर उसने देवाधिदेव अपने-अपने स्थानको चले गये। उस बालकके पुरुषोत्तमका दर्शन किया, जिनके चरणोंमें देवता और सौभाग्यवश वहाँ भगवान्को भोग लगाया हुआ भात असुर सभी मस्तक झुकाते हैं। जिनका श्रीविग्रह किरीट, (महाप्रसाद) गिरा हुआ था, जो मनुष्योंके लिये अलभ्य हार, केयूर और अवेयक (कण्ठा) आदिसे सुशोभित और देवताओंके लिये भी दुर्लभ है; वही उसे मिल रहता है। जो कानों में अत्यन्त उज्ज्वल और मनोहर गया। उसको खाकर बालकने भगवान्के श्रीविग्रहका कुण्डल धारण करते हैं। जिनके युगल चरण-कमलोंपर दर्शन किया। इससे उसे चतुर्भुज रूपकी प्राप्ति हो गयी