________________ पातालखण्ड ] . शत्रुघ्न और पुष्कल आदिका घोड़ेके साथ जाना तथा राजा सुमदकी कथा . 433 तरकश-इन सभी वस्तुओंको ले लिया। उन सबको शूरवीरों, अच्छे-अच्छे घोड़ों और सवारोंसे घिरकर बड़ी धारण करके वे वीरोचित शोभासे सम्पन्न दिखायी देने प्रसन्नताके साथ आगे बढ़े। वे घोड़ेके साथ-साथ लगे। उस समय सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रोंके ज्ञानमें प्रवीण, पाञ्चाल, कुरु, उत्तरकुरु और दशार्ण आदि देशोंमें, जो उत्तम योद्धा पुष्कलकी शोभा बहुत बढ़ गयी। पतिव्रता सम्पत्तिमें बहुत बढ़े-चढ़े थे, भ्रमण करते रहे। शत्रुघ्नजी कान्तिमतीने अस्त्र-शस्त्रोंसे शोभायमान अपने पतिको सब प्रकारकी शोभासे सम्पन्न थे। उन्हें उन सभी देशोंमें वीरमालासे विभूषित किया तथा कुङ्कम, अगुरु, कस्तूरी श्रीरामचन्द्रजीके सम्पूर्ण सुयशकी कथा सुनायी पड़ती और चन्दन आदिसे उनकी पूजा करके अनेकों फूलोंके थी, लोग कहते थे-'श्रीरघुनाथजीने रावण नामक हार पहनाये, जो घुटनेतक लटककर पुष्कलकी कान्ति असुरको मारकर अपने भक्तजनोंकी रक्षा की है, अब बढ़ा रहे थे। पूजनके पश्चात् उस सतीने बारम्बार पतिकी पुनः अश्वमेध आदि पवित्र कार्योंका अनुष्ठान आरम्भ आरती उतारी। उसके बाद पुष्कल बोले-'भामिनि ! करके भगवान् श्रीराम त्रिभुवनमें अपने सुयशका विस्तार करते हुए सम्पूर्ण लोकोंकी भयसे रक्षा करेंगे।' इस तरह भगवान्का यशोगान करनेवाले लोगोंपर सन्तुष्ट होकर पुरुषश्रेष्ठ शत्रुघ्रजी उन्हें पुरस्कारके रूपमें सुन्दर हार, नाना प्रकारके रत्न और बहुमूल्य वस्त्र देते थे। श्रीरघुनाथजीके एक सचिव थे, जिनका नाम था सुमति / वे सम्पूर्ण विद्याओंमें प्रवीण और तेजस्वी थे। वे भी शत्रुघ्नजीके अनुगामी होकर आये थे। महाधीर शत्रुघ्न उनके साथ अनेकों गाँवों और जनपदोंमें गये, किन्तु श्रीरघुनाथजीके प्रतापसे कोई भी उस घोड़ेका अपहरण न कर सका। भिन्न-भिन्न देशोंके जो बहुत-से राजे-महाराजे थे, वे यद्यपि महान् बलसे विभूषित तथा चतुरङ्गिणी सेनासे सम्पन्न थे, तथापि मोती और मणियोंसहित बहुत-सी सम्पत्ति साथ ले घोड़ेकी रक्षामें आये हुए शत्रुघ्रजीके चरणोंमें गिर जाते और बारम्बार कहने लगते थे-'रघुनन्दन ! यह राज्य तथा पुत्र, पशु और बान्धवोसहित सारा धन भगवान् श्रीरामका ही है, अब मैं तुम्हारे सामने ही यात्रा करता हूँ।' पत्नीसे ऐसा हमारा इसमें कुछ भी नहीं है।' उनकी ऐसी बातें सुनकर कहकर वे सुन्दर रथपर आरूढ़ हुए और अपने पिता विपक्षी वीरोंका हनन करनेवाले शत्रुघ्रजी वहाँ अपनी भरत तथा नेहविह्वला माता माण्डवीका दर्शन करनेके आज्ञा घोषित कर देते और उन्हें साथ ले आगेके मार्गपर लिये गये। वहाँ जाकर उन्होंने बड़ी प्रसन्नताके साथ बढ़ जाते थे। पिता और माताके चरणोंमें मस्तक झुकाया। फिर पिता ब्रह्मन् ! इस प्रकार क्रमशः आगे-आगे बढ़ते हुए और माताकी आज्ञा लेकर वे पुलकित शरीरसे शत्रुघ्नकी शत्रुघ्नजी घोड़ेके साथ अहिच्छत्रा नगरीके पास जा पहुँचे, सेनामें गये, जो बड़े-बड़े वीरोंसे सुशोभित थी। जो नाना प्रकारके मनुष्योंसे भरी हुई थी। उसमें ब्राह्मणों तदनन्तर शत्रुघ्न श्रीरघुनाथजीके महायज्ञ-सम्बन्धी तथा अन्यान्य द्विजोंका निवास था। अनेकों प्रकारके घोड़ेको आगे करके अनेकों रथियों, पैदल चलनेवाले रत्नोंसे वह पुरी सजायी गयी थी। सोने और स्फटिक HARI