________________ 438 * अर्चयस्य हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पयपुराण कह सुनायीं / वे तीन रात्रितक वहाँ ठहरे रहे। इसके बाद किसीसे भय नहीं था। गौओंके थन घड़ोंके समान उन्होंने राजाके साथ वहाँसे जानेका विचार किया। उनका ARATRINASI अभिप्राय जानकर सुमदने शीघ्र ही अपने पुत्रको राज्यपर अभिषिक्त कर दिया तथा उन महाबुद्धिमान् नरेशने शत्रुनके सेवकोंको बहुत-से वस्त्र, रत्न और नाना प्रकारके धन दिये। तत्पश्चात् शत्रुघ्रने धनुष धारण किये हुए राजा सुमदको साथ लेकर अपने बहुज्ञ मन्त्रियों, पैदल योद्धाओं, हाथियों और अच्छे घोड़े जुते हुए अनेकों रथोंके साथ वहाँसे यात्रा आरम्भ की। श्रीरघुनाथजीके प्रतापका आश्रय लेकर वे हँसते-हँसते मार्ग तय करने लगे। पयोष्णी नदीके तीरपर पहुंचकर उन्होंने अपनी चाल तेज कर दी तथा शत्रुओपर प्रहार करनेवाले समस्त योद्धा भी पीछे-पीछे उनका साथ देने लगे। वे तपस्वी ऋषियोंके भाँति-भाँतिके आश्रम देखते तथा वहाँ श्रीरघुनाथजीके गुणगान सुनते हुए यात्रा कर रहे थे। उस समय उन्हें चारों ओर मुनियोंकी यह कल्याणमयी वाणी सुनायी पड़ती थी-'यह यज्ञका अश्व चला जा रहा है, जो श्रीहरिके अंशावतार दिखायी देते थे। उनका विग्रह नन्दिनीकी भाँति सम्पूर्ण श्रीशत्रुघ्नजीके द्वारा सब ओरसे सुरक्षित है। भगवान्का कामनाओंको पूर्ण करनेवाला था और वे अपने खुरोंसे अनुसरण करनेवाले वानर तथा भगवद्भक्त भी उसकी उठी हुई धूलके द्वारा वहाँको भूमिको पवित्र करती थीं। रक्षा कर रहे हैं।' जिनकी चित्तवृत्तियाँ भक्तिसे निरन्तर हाथोंमें समिधा धारण करनेवाले श्रेष्ठ मुनिवरोंने वहाँकी प्रभावित रहती हैं, उन महर्षियोंकी पूर्वोक्त बातें सुनकर भूमिको धार्मिक क्रियाओंका अनुष्ठान करनेके योग्य बना शत्रुनजीको बड़ा सन्तोष हुआ। आगे जाकर उन्होंने एक रखा था। उस आश्रमको देखकर शत्रुघ्रजीने सब विशुद्ध आश्रम देखा, जो निरन्तर होनेवाली वेदोंकी बातोंको जाननेवाले श्रीराममन्त्री सुमतिसे पूछा। ध्वनिसे उसको श्रवण करनेवाले मनुष्योंका सारा शत्रुघ्रजी बोले-सुमते ! यह सामने किस अमङ्गल नष्ट किये देता था। वहाँका सम्पूर्ण आकाश मुनिका आश्रम शोभा पा रहा है? यहाँ सब जन्तु अग्निहोत्रके समय दी जानेवाली आहुतिके धूमसे पवित्र आपसका वैर-भाव छोड़कर एक ही साथ निवास करते हो गया था। श्रेष्ठ मुनियोंके द्वारा स्थापित किये हुए है तथा यह मुनियोंकी मण्डलीसे भी भरा-पूरा दिखायी अनेकों यज्ञसम्बन्धी यूप उस आश्रमको सुशोभित कर देता है। मैं मुनिकी वार्ता सुनूंगा तथा उनका वृत्तान्त रहे थे। वहाँ सिंह भी पालन करनेयोग्य गौओंकी रक्षा श्रवण करके अपनेको पवित्र करूंगा। करते थे। चूहे अपने रहनेके लिये बिल नहीं खोदते थे; महात्मा शत्रुघ्नके ये उत्तम वचन सुनकर परम क्योंकि वहाँ उन्हें बिल्लियोंसे भय नहीं था। साँप सदा मेधावी श्रीरघुनाथजीके मन्त्री सुमतिने कहामोरों और नेवलोंके साथ खेलते रहते थे। हाथी और 'सुमित्रानन्दन ! इसे महर्षि च्यवनका आश्रम समझो। सिंह एक-दूसरेके मित्र होकर उस आश्रमपर निवास यह बड़े-बड़े तपस्वियोंसे सुशोभित तथा वैरशून्य करते थे। मृग वहाँ प्रेमपूर्वक चरते रहते थे, उन्हें जन्तुओंसे भरा हुआ है। मुनियोकी पत्रियाँ भी यहाँ