________________ 426 * अजयस्व हकिशे यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पापुराण . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. आये। श्रीरघुनाथजीने बड़े आनन्दके साथ उठकर उनका ऋषि बोले-ब्राह्मणको सदा यज्ञ करना और वेद स्वागत किया और उन्हें प्रणाम करके अर्घ्य तथा आसन पढ़ाना आदि कार्य करना चाहिये। वह ब्रह्मचर्यआदि देकर उन सबकी विधिवत् पूजा की। फिर गौ और आश्रममें वेदोंका अध्ययन पूर्ण करके इच्छा हो तो सुवर्ण निवेदन करके वे बोले-'महर्षियो / मेरे बड़े विरक्त हो जाय और यदि ऐसी इच्छा न हो तो भाग्य हैं, जो आपके दर्शन हुए।' गृहस्थ-आश्रममें प्रवेश करे। नीच पुरुषोंकी सेवासे शेषजी कहते हैं-ब्रह्मन् ! इस प्रकार जब वहाँ जीविका चलाना ब्राह्मणके लिये सदा त्याज्य है। वह बड़े-बड़े ऋषियोंका समुदाय एकत्रित हुआ तो उनमें वर्ण आपत्तिमें पड़नेपर भी कभी सेवा-वृत्तिसे जीवन-निर्वाह और आश्रमके अनुकूल धर्मविषयक चर्चा होने लगी। न वात्स्यायनजीने पूछा-भगवन् ! वहाँ धर्मके . र सन्तान-प्राप्तिकी इच्छासे ऋतुकालमें अपनी पत्नीके साथ समागम करना उचित माना गया है। दिनमें स्त्रीके सम्बन्धमें क्या-क्या बातें हुई? कौन-सी अद्भुत बात साथ सम्पर्क करना पुरुषोंकी आयुको नष्ट करनेवाला है। बतायी गयी ? उन महात्माओने सब लोगोंपर दया करके श्राद्धका दिन और सभी पर्व स्त्री-समागमके लिये किस विषयका वर्णन किया ? निषिद्ध है, अतः बुद्धिमान् पुरुषोंको इनका त्याग करना शेषजीने कहा-मुने! महापुरुषोंमें श्रेष्ठ चाहिये। जो मोहवश उक्त समयमें भी स्त्रीके साथ दशरथनन्दन भगवान् श्रीरामने सब मुनियोंको एकत्रित सम्पर्क करता है; वह उत्तम धर्मसे भ्रष्ट हो जाता है। जो देखकर उनसे समस्त वर्णों और आश्रमोंके धर्म पूछे। पुरुष केवल ऋतुकालमें स्त्रीके साथ समागम करता है श्रीरघुनाथजीके पूछनेपर उन महर्षियोंने जिन-जिन महान् तथा अपनी ही पत्नीमें अनुराग रखता है [परायी स्त्रीकी गुणकारी धर्मोका वर्णन किया, उन सबको मैं विधिपूर्वक ओर कुदृष्टि नहीं डालता], उस उत्तम गृहस्थको इस बतलाऊँगा, आप ध्यान देकर सुनें। जगत्में सदा ब्रह्मचारी ही समझना चाहिये। स्त्रीके रजस्वला होनेसे लेकर सोलह रात्रियाँ ऋतु कहलाती हैं, उनमें पहली चार रातें निन्दित हैं; [अतः उनमें स्त्रीका स्पर्श नहीं करना चाहिये] शेष बारह रातोंमेंसे जो सम संख्यावाली अर्थात् छठी और आठवीं आदि रातें हैं, उनमें स्त्री-समागम करनेसे पुत्रकी उत्पत्ति होती है तथा विषम संख्यावाली अर्थात् पाँचवीं, सातवीं आदि रात्रियाँ कन्याकी उत्पत्ति करानेवाली हैं। जिस दिन चन्द्रमा अपने लिये दूषित हों, उस दिनको छोड़कर तथा मघा और मूलनक्षत्रका भी परित्याग करके विशेषतः पुंल्लिङ्ग नामवाले श्रवण आदि नक्षत्रोंमें शुद्ध भावसे पत्नीके साथ समागम करे: इससे चारों पुरुषार्थकि साधक शुद्ध एवं सदाचारी पुत्रका जन्म होता है। थोड़ी-सी भी कीमत लेकर कन्याको बेचनेवाला पुरुष पापी माना गया है। ब्राह्मणके लिये व्यापार, राजाकी सेवा, वेदाध्ययनका त्याग, निन्दित विवाह और नित्य कर्मका लोप-ये दोष कुलको नीचे गिरानेवाले