________________ पातालखण्ड ] . अगस्त्यका अश्वमेध यज्ञकी सलाह देना तथा ऋषियोंद्वारा धर्मकी चर्चा . 425 अपनी विशद कीर्तिका विस्तार करके दूसरे मनुष्योंको भी अनुष्ठान अवश्य करना चाहिये। मुनिके इस वचनसे पवित्र कीजिये। उन्होंने यज्ञके सभी मनोहर सम्भार एकत्रित किये। श्रीरामचन्द्रजीने कहा-विप्रवर ! आप इस तत्पश्चात् महाराज श्रीराम मुनियोंके साथ समय मेरी अश्वशालाका निरीक्षण कीजिये और देखिये, सरयू-तटपर आये और सोनेके हलोसे चार योजन उसमें ऐसे उत्तम लक्षणोंसे सम्पन्न घोड़े हैं या नहीं। लंबी-चौड़ी बहुत बड़ी भूमिको जोता। इसके बाद उन भगवान्की बात सुनकर दयालु महर्षि उठकर खड़े I हो गये और यज्ञके योग्य उत्तम घोड़ोंको देखनेके लिये चल दिये। श्रीरामचन्द्रजीके साथ अश्वशालामें जाकर TUDIO SIDHDSSSSSSSS पुरुषोत्तमने यज्ञके लिये अनेकों मण्डप बनवाये और योनि एवं मेखलासे युक्त कुण्डका विधिवत् निर्माण LATLAMPAIDA] करके उसे अनेकों रत्रोंसे सुसज्जित एवं सब प्रकारकी उन्होंने देखा, वहाँ चित्र-विचित्र शरीरवाले अनेकों शोभासे सम्पन्न बनाया। महान् तपस्वी एवं परम प्रकारके अश्व थे, जो मनके समान वेगवान् और अत्यन्त सौभाग्यशाली मुनिवर वसिष्ठने सब कार्य वेदशास्त्रकी बलवान् प्रतीत होते थे। उसमें ऊपर बताये हुए रंगके विधिके अनुसार सम्पन्न कराया। उन्होंने अपने शिष्योंको एक-दो नहीं, सैकड़ों घोड़े थे, जिनकी पूँछ पीली और महर्षियोंके आश्रमोंपर भेजकर कहलाया कि श्रीरघुनाथजी मुख लाल थे। साथ ही वे सभी तरहके शुभ लक्षणोंसे अश्वमेधयज्ञका अनुष्ठान करनेके लिये उद्यत हुए हैं। सम्पन्न दिखायी देते थे। उन्हें देखकर अगस्त्यजी अतः आप सब लोग उसमें पधारें। इस प्रकार आमन्त्रित बोले-'रघुनन्दन ! आपके यहाँ अश्वमेधके योग्य होकर वे सभी तपस्वी महर्षि भगवान् श्रीरामके दर्शनके बहुत-से सुन्दर घोड़े हैं; अतः आप विस्तारके साथ उस लिये अत्यन्त उत्कण्ठित होकर वहाँ आये। नारद, यज्ञका अनुष्ठान कीजिये / महाराज श्रीराम ! आप महान् असित, पर्वत, कपिलमुनि, जातूकर्ण्य, अङ्गिरा, सौभाग्यशाली हैं। देवता और असुर-सभी आपके आष्टिषेण, अत्रि, गौतम, हारीत, याज्ञवल्क्य तथा संवर्त चरणोंपर मस्तक झुकाते हैं; अतः आपको इस यज्ञका आदि महात्मा भी भगवान् श्रीरामके अश्वमेध यज्ञमें