________________ पातालखण्ड ] , श्रीराम-दरबारमें अगस्त्यजीका आगमन, देवताओंकी प्रार्थनासे भगवान्का अवतार . 423 खड़े हो गये और उन देवदेवेश्वरसे बोले- करूँगा। भूमण्डलमें एक अयोध्या नामकी पुरी है, जो 'शरणागतवत्सल महादेव ! आप देवताओंकी अवस्था- बड़े-बड़े दान और यज्ञ आदि शुभ-कर्मोका अनुष्ठान पर दृष्टि डालिये और इनके ऊपर कृपा कीजिये। दुष्ट करनेवाले सूर्यवंशी राजाओंद्वारा सुरक्षित है; वह अपनी राक्षस रावणका वध करनेके लिये जो उद्योग हो सके, रजतमयी भूमिसे सुशोभित हो रही है। उस पुरीमें दशरथ वह कीजिये।' ब्रह्माजीके दैन्य और शोकसे युक्त वचन नामसे प्रसिद्ध एक राजा है, जो इस समय दसों दिशाओंको सुनकर शङ्करजी भी देवताओंके साथ भगवान् जीतकर पृथ्वीके राज्यका पालन कर रहे हैं। यद्यपि वे श्रीविष्णुके स्थानपर आये। वहाँ देवता, नाग किन्नर और राज्यलक्ष्मीसे सम्पन्न और शक्तिशाली हैं, तथापि मुनि सबने मिलकर भगवान्की स्तुति की-देवताओंके अभीतक उन्हें कोई सन्तान नहीं है। महान् बलशाली राजा स्वामी माधव ! आपकी जय हो, भक्तजनोंका दुःख दूर दशरथ पुत्र-प्राप्तिकी इच्छासे वन्दनीय ऋष्यशृङ्गमुनिको करनेवाले परमेश्वर ! आपकी जय हो, महादेव ! हमपर प्रार्थनापूर्वक बुलावेंगे और उनके आचार्यत्वमें विधिपूर्वक कृपा कीजिये और अपने इन सेवकोंपर दृष्टि डालिये।' पुत्रेष्टि यज्ञका अनुष्ठान करेंगे। तदनन्तर मैं आपलोगोंके हितके लिये राजाकी तीन रानियोंके गर्भसे चार स्वरूपोंमें प्रकट होऊँगा। राजा भी पूर्व-जन्ममें तपस्या करके मुझसे इस बातके लिये प्रार्थना कर चुके हैं। मेरे चारों स्वरूप क्रमशः, राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्नके नामसे प्रसिद्ध होंगे। उस समय मैं रावणका बल, वाहन और जड़-मूलसहित संहार कर डालूंगा। आपलोग भी अपने-अपने अंशसे भालू और वानरके रूपमें प्रकट होकर पृथ्वीपर सर्वत्र विचरते रहिये।' ___ इस प्रकार आकाशवाणी करके भगवान् मौन हो गये। उनका वचन सुनकर सब देवताओंका चित्त प्रसन्न हो गया। परम मेधावी देवाधिदेव भगवान्ने जैसा कहा था, उसीके अनुसार देवताओंने कार्य किया। उन्होंने अपने-अपने अंशसे ऋक्ष और वानरका रूप धारण करके समूची पृथ्वीको भर दिया / महाराज ! देवताओंका दुःख दूर करनेवाले जो महान् देव श्रीविष्णु कहलाते हैं, वे आप A. ही हैं। आप ही मानवशरीरधारी भगवान् है / महामते ! ये रुद्र आदि सम्पूर्ण देवताओंने जब इस प्रकार उच्च- भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न आपहीके अंश है। आपने स्वरसे स्तवन किया तो उनके वचन सुनकर देवाधिदेव देवताओंको पीड़ा देनेवाले दशाननका वध किया है। उस श्रीविष्णुने देवसमुदायके दुःखपर अच्छी तरह विचार दैत्यकी ब्रह्म-राक्षस जाति थी, उसीका आपके द्वारा वध किया। तत्पश्चात् वे मेघके समान गम्भीर वाणीसे उनका हुआ है। नरश्रेष्ठ ! आप जगत्के उत्पत्ति-स्थान और शोक शान्त करते हुए बोले-ब्रह्मा, रुद्र और इन्द्र आदि सम्पूर्ण विश्वके आत्मा हैं। आपके राजा होनेसे देवता, देवताओ ! मैं आपलोगोंके हितकी बात बता रहा हूँ, असुर और मनुष्योंसहित समस्त संसारको सुख प्राप्त हुआ सुनिये; रावणके द्वारा जो आपको भय प्राप्त हुआ है, उसे मैं है। पापके स्पर्शसे रहित श्रीरघुनाथजी ! आपने जो कुछ जानता हूँ, अब अवतार धारण करके मैं उस भयका नाश पूछा है, वह सब मैंने बतला दिया।"