________________ * अयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पद्मपुराण तथा राज्य और सम्पत्तियाँ प्राप्त की हैं। संसारमें वही विभीषण तो धर्मात्मा थे; अतः उन्होंने उत्तम तपस्याका माता धन्य, सौभाग्यवती तथा महान् अभ्युदयसे अनुष्ठान किया। तदनन्तर देवाधिदेव भगवान् ब्रह्माजीने सुशोभित होनेवाली है, जिसके पुत्रने अपने गुणोंसे प्रसन्न होकर रावणको बहुत बड़ा राज्य दिया और उसका महापुरुषोंका पद प्राप्त कर लिया हो।' रावण दुरात्माओंमें स्वरूप तीनों लोकोंमें प्रकाशमान एवं सुन्दर बना दिया, सबसे श्रेष्ठ था, उसने अपनी माताके क्रोधपूर्ण वचन जो देवता और दानव दोनोंसे सेवित था। कुबेरकी बुद्धि सुनकर तपस्या करनेका निश्चय किया और उससे कहा। सदा धर्ममें ही लगी रहती थी। रावणने वर पानेके रावण बोला-माँ ! कौड़ेकी-सी हस्ती रखने- अनन्तर अपने भाई कुबेरको बहुत सताया। उनका वाला वह कुबेर क्या चीज है? उसकी थोड़ी-सी तपस्या विमान छीन लिया तथा उनकी लङ्कानगरीपर भी हठात् किस गिनतीमें है ? लङ्काकी क्या बिसात है? तथा बहुत अधिकार जमा लिया। उसने समस्त लोकोंको सन्ताप थोड़े सेवकोंवाला उसका राज्य भी किस कामका है? पहुँचाया। देवता स्वर्गसे भाग गये। उस निशाचरने यदि मैं अन्न, जल, निद्रा और क्रीडाका सर्वदा परित्याग ब्राह्मण-वंशका भी विनाश किया और मुनियोंकी तो वह करके ब्रह्माजीको सन्तुष्ट करनेवाली दुष्कर तपस्याके द्वारा जड़ ही काटता फिरता था। तब उसके अत्याचारसे सम्पूर्ण लोकोंको अपने वशमें न कर लूँ तो मुझे अत्यन्त दुःखी होकर इन्द्र आदि समस्त देवता ब्रह्माजीके पितृलोकके विनाशका पाप लगे। पास गये तथा दण्डवत्-प्रणाम करके उनकी स्तुति करने तत्पश्चात् कुम्भकर्ण और विभीषणने भी तपस्याका लगे। जब सबने आदरपूर्वक प्रिय वचनोंद्वारा उनका निश्चय किया। फिर रावण अपने भाइयोंको साथ लेकर स्तवन किया तो भगवान् ब्रह्माने प्रसन्न होकर कहापर्वतीय वनमें चला गया। वहाँ उसने सूर्यकी ओर ऊपर 'देवगण ! मैं तुम्हारा कौन-सा कार्य करूं?' तब दृष्टि लगाये एक पैरसे खड़ा होकर दस हजार वर्षांतक देवताओंने ब्रह्माजीसे अपना अभिप्राय निवेदन कियाघोर तपस्या की। कुम्भकर्णने भी बड़ा कठोर तप किया। रावणसे प्राप्त होनेवाले अपने कष्ट और पराजयका वर्णन किया। उनकी बातें सुनकर ब्रह्माजीने क्षणभर विचार किया, फिर देवताओंको साथ लेकर वे कैलास-पर्वतपर गये। उस पर्वतके पास पहुँचकर इन्द्र आदि देवता वहाँकी विचित्रता देखकर मुग्ध हो गये और खड़े होकर उन्होंने शङ्करजीकी इस प्रकार स्तुति की-'भगवन् ! आप भव (उत्पादक), शर्व (संहारक) तथा नीलग्रीव (कण्ठमें नील चिह्न धारण करनेवाले) आदि नामसे प्रसिद्ध हैं, आपको नमस्कार है। स्थूल और सूक्ष्मरूप धारण करनेवाले आपको प्रणाम है तथा अनेकों रूपोंमें प्रतीत होनेवाले आपको नमस्कार है।' सब देवताओंके मुखसे यह स्तुतियुक्त वाणी सुनकर भगवान् शङ्करने नन्दीसे कहा-'देवताओंको मेरे पास बुला लाओ।' आज्ञा पाकर नन्दीने उसी समय देवताओंको बुलाया। अन्तःपुरमें पहुँचकर उन्होंने आश्चर्यचकित दृष्टिसे भगवान्का दर्शन किया। देवताओंके साथ प्रणाम करके ब्रह्माजी शिवजीके सामने