________________ पातालखण्ड ] * श्रीरामका नगर-प्रवेश, माताओंसे मिलना,राज्य-ग्रहण तथा रामराज्यकी सुव्यवस्था . 415 महाराज श्रीरामके निकट उपस्थित हुए। उस समय उनके पुरवासिनी स्त्रियाँ बोलीं-सखियो ! वनवासिनी हाथ सोनेकी मुद्राओंसे सुशोभित हो रहे थे तथा वे शूद्र, भीलोंकी कन्याएँ भी धन्य हो गयीं, जिन्होंने अपने जो ब्राह्मणोंके भक्त, अपने जातीय आचारमें दृढ़तापूर्वक नीलकमलके समान लोचनोंद्वारा श्रीरामचन्द्रजीके स्थित और धर्म-कर्मका पालन करनेवाले थे, अयोध्या- मुखारविन्दका मकरन्द पान किया है। अपने सौभाग्यसे पुरीके स्वामी श्रीरामचन्द्रजीके पास गये / व्यवसायी लोग इन कन्याओने महान् अभ्युदय प्राप्त किया है। अरी! जो अपने-अपने कर्ममें स्थित थे, वे सब भी भेंटमें देनेके वीरोचित तेजसे युक्त श्रीरघुनाथजीके मुखकी ओर तो लिये अपनी-अपनी वस्तु लेकर महाराज श्रीरामके समीप देखो, जो कमलकी सुषमाको लज्जित करनेवाले सुन्दर गये। इस प्रकार राजा भरतका संदेश पाकर आनन्दकी नेत्रोंसे सुशोभित हो रहा है। उसे देखकर धन्य हो बाढ़में डूबे हुए पुरवासी नाना प्रकारके कौतुकोंमें प्रवृत्त जाओगी। अहो ! ब्रह्मा आदि देवता भी जिनका दर्शन होकर अपने महाराजके निकट आये। तदनन्तर नहीं कर पाते, वे ही आज हमारी आँखोंके सामने हैं। श्रीरामचन्द्रजीने भी अपने-अपने विमानपर बैठे हुए अवश्य ही हमलोग अत्यन्त बड़भागिनी है। देखो, इनके सम्पूर्ण देवताओंसे घिरकर मनोहर रचनासे सुशोभित मुखपर कैसी सुन्दर मुसकान है, मस्तकपर किरीट शोभा अयोध्यापुरीमें प्रवेश किया। आकाशमार्गसे विचरण पा रहा है; ये लाल-लाल ओठ बन्धूक-पुष्पकी अरुण करनेवाले वानर भी उछलते-कूदते हुए श्रीरघुनाथजीके प्रभाको अफ्नी शोभासे तिरस्कृत कर रहे हैं तथा इनकी पीछे-पीछे उस उत्तम नगरमें गये / उस समय उन सबकी ऊँची नासिका मनोहर जान पड़ती है। पृथक्-पृथक् शोभा हो रही थी। कुछ दूर जाकर इस प्रकार अधिक प्रेमके कारण उपर्युक्त बातें श्रीरामचन्द्रजी पुष्पक विमानसे उतर गये और शीघ्र ही कहनेवाली अवधपुरीकी रमणियाँ भगवान्के दर्शनकर श्रीसीताके साथ पालकीपर सवार हुए: उस समय वे प्रसन्न होने लगीं। तदनन्तर, जिनका प्रेम बहुत बढ़ा हुआ अपने सहायक परिवारद्वारा चारों ओरसे घिरे हुए थे। था, उन पुरवासी मनुष्योंको अपने दृष्टिपातसे संतुष्ट जोर-जोरसे बजाये जाते हुए वीणा, पणव और भेरी आदि बाजोंके द्वारा उनकी बड़ी शोभा हो रही थी। सूत, मागध और वन्दीजन उनकी स्तुति कर रहे थे; सब लोग कहते थे-'रघुनन्दन ! आपकी जय हो, सूर्य-कुलभूषण श्रीराम ! आपकी जय हो, देव ! दशरथ-नन्दन ! आपकी जय हो, जगत्के स्वामी श्रीरघुनाथजी ! आपकी जय हो।' इस प्रकार हर्षमें भरे पुरवासियोंकी कल्याणमयी बातें भगवान्को सुनायी दे रही थीं। उनके दर्शनसे सब लोगोंके शरीरमें रोमाश हो आया था, जिससे वे बड़ी शोभा पा रहे थे। क्रमशः आगे बढ़कर भगवान्की सवारी गली और चौराहोंसे सुशोभित नगरके प्रधान मार्गपर जा पहुँची, जहाँ चन्दन-मिश्रित जलका छिड़काव हुआ था और सुन्दर फूल तथा पल्लव बिछे थे। उस समय नगरकी कुछ स्त्रियाँ खिड़कीके सामनेकी छज्जोंका सहारा लेकर भगवानकी मनोहर छवि निहारती हुई आपसमें कहने लगी