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स्वर्गखण्ड ] • गृहस्थधर्ममें भक्ष्याभक्ष्यका विचार तथा दान-धर्मका वर्णन . namaARRITAMARIKAAREntent..............teentertainmentarnarana.............
सुयोग्य पात्रके मिलनेपर अपनी शक्तिके अनुसार ब्राह्मणोंको घी और अन्नसहित जलका घड़ा दान करता दान अवश्य करना चाहिये। कुटुम्बको भोजन और वस्त्र है, वह भयसे छुटकारा पा जाता है। जो सुवर्ण और देनेके बाद जो बच रहे, उसीका दान करना चाहिये; तिलसहित जलके पात्रोंसे सात या पाँच ब्राह्मणोंको तृप्त अन्यथा कुटुम्बका भरण-पोषण किये बिना जो कुछ करता है, वह ब्रह्महत्यासे छूट जाता है। माघ मासके दिया जाता है, वह दान दानका फल देनेवाला नहीं कृष्णपक्ष द्वादशी तिथिको उपवास करे और श्वेत वस्त्र होता। वेदपाठी, कुलीन, विनीत, तपस्वी, व्रतपरायण धारण करके काले तिलोंसे अग्निमें हवन करे। तत्पश्चात् एवं दरिद्रको भक्तिपूर्वक दान देना चाहिये।* जो एकाग्रचित्त हो ब्राह्मणोंको तिलोंका ही दान करे। इससे अग्निहोत्री ब्राह्मणको भक्तिपूर्वक पृथ्वीका दान करता है; द्विज जन्मभरके किये हुए सब पापोंको पार कर जाता है। वह उस परमधामको प्राप्त होता है जहाँ जाकर जीव कभी अमावास्या आनेपर देवदेवेश्वर भगवान् श्रीविष्णुके शोक नहीं करता । जो मनुष्य वेदवेत्ता ब्राह्मणको गत्रोंसे उद्देश्यसे जो कुछ भी बन पड़े, तपस्वी ब्राह्मणको दान दे भरी हुई तथा जौ और गेहूँकी खेतीसे लहलहाती हुई और सबका शासन करनेवाले इन्द्रियोंके स्वामी भगवान् भूमि दान करता है, वह फिर इस संसारमें जन्म नहीं श्रीविष्णु प्रसन्न हों, यह भाव रखे। ऐसा करनेसे सात लेता। जो दरिद्र ब्राह्मणको गौके चमड़े बराबर भूमि भी जन्मोंका किया हुआ पाप तत्काल नष्ट हो जाता है। प्रदान करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। जो कृष्णपक्षकी चतुर्दशी तिथिको सान करके भूमिदानसे बढ़कर इस संसारमें दूसरा कोई दान नहीं है। ब्राह्मणके मुखमें अन्न डालकर इस प्रकार भगवान् केवल अन्नदान उसकी समानता करता है और विद्यादान शङ्करकी आराधना करता है, उसका पुनः इस संसारमें उससे अधिक है। जो शान्त, पवित्र और धर्मात्मा जन्म नहीं होता । विशेषतः कृष्णपक्षकी अष्टमी तिथिको ब्राह्मणको विधिपूर्वक विद्यादान करता है, वह ब्रह्म- नान करके चरण धोने आदिके द्वारा विधिपूर्वक पूजा लोकमें प्रतिष्ठित होता है। गृहस्थ ब्राह्मणको अत्रदान करनेके पश्चात् धार्मिक ब्राह्मणको 'मुझपर महादेवजी करके मनुष्य उत्तम फलको प्राप्त होता है। गृहस्थको अन्न प्रसन्न हों इस उद्देश्यसे अपना द्रव्य दान करना चाहिये। ही देना चाहिये, उसे देकर मानव परमगतिको प्राप्त होता ऐसा करनेवाला पुरुष सब पापोंसे मुक्त हो परमगतिको है। वैशाखकी पूर्णिमाको विधिपूर्वक उपवास करके प्राप्त होता है। भक्त द्विजोंको उचित है कि वे कृष्ण
शान्त, पवित्र एवं एकाग्रचित्त होकर काले तिलों और पक्षकी चतुर्दशी, अष्टमी तथा विशेषतः अमावास्याके विशेषतः मधुसे सात या पाँच ब्राह्मणोंकी पूजा करे तथा दिन भगवान् महादेवजीकी पूजा करें। जो एकादशीको इससे धर्मराज प्रसन्न हों-ऐसी भावना करे। जब मनमें निराहार रहकर द्वादशीको ब्राह्मणके मुखमें अन्न दे यह भाव स्थिर हो जाता है, उसी क्षण मनुष्यके इस प्रकार पुरुषोत्तमकी अर्चना करता है, वह परमपदको जीवनभरके किये हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। काले प्राप्त होता है। यह शुक्लपक्षकी द्वादशी भगवान् विष्णुकी मृगचर्मपर तिल, सोना, मधु और घी रखकर जो तिथि है। इस दिन भगवान् जनार्दनकी प्रयत्नपूर्वक ब्राह्मणको दान देता है, वह सब पापोंसे तर जाता है। जो आराधना करनी चाहिये। भगवान् शङ्कर अथवा विशेषतः वैशाखकी पूर्णिमाको धर्मराजके उद्देश्यसे श्रीविष्णुके उद्देश्यसे जो कुछ भी पवित्र ब्राह्मणको दान
यतु पापोपशान्त्यर्थं दीयो विदुषां करे । नैमित्तिकं तदुदिष्टं दानं सद्धिरनुत्तमम्॥ अपत्यविजयैश्वर्यसुखार्थ यत्प्रदीयते । दान तत्काम्यमाख्यातमूपिभिर्धर्मचित्तकैः ॥ यदीश्वरस्य प्रीत्यर्थ ब्रह्मवित्सु प्रदीयते । चेतसा धर्मयुक्तेन दानं तद् विमलं शिवम् ॥ (५७।४-८) * श्रोत्रियाय कुलीनाय विनीताय तपस्विने । व्रतस्थाय दरिद्राय प्रदेयं भक्तिपूर्वकम् ॥ (५७।११)