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स्वर्गखण्ड]
. श्रीहरिके पुराणमय स्वरूपका वर्णन तथा पद्मपुराण और स्वर्गखण्डका माहात्म्य .
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(१४) वामनपुराण त्वचा माना गया है। (१५) है, उसने मानो समूची पृथ्वी दानमें दे दी है, निरन्तर कूर्मपुराणको पीठ तथा (१६) मत्स्यपुराणको मेदा कहा भगवान् विष्णुके सहस्र-नामोंका पाठ किया है, सम्पूर्ण जाता है। (१७) गरुडपुराण मज्जा बताया गया है और वेदोंका अध्ययन तथा उसमें बताये हुए भिन्न-भिन्न (१८) ब्रह्माण्डपुराणको अस्थि (हड्डी) कहते हैं। इसी पुण्यकर्मोका अनुष्ठान कर लिया है, बहुत-से प्रकार पुराणविग्रहधारी सर्वव्यापक श्रीहरिका आविर्भाव अध्यापकोंको वृत्ति देकर पढ़ानेके कार्यमें लगाया है, हुआ है।* उनके हृदय-स्थानमें पदापुराण है, जिसे भयभीत मनुष्योंको अभयदान किया है, गुणवान् ज्ञानी सुनकर मनुष्य अमृतपद-मोक्ष-सुखका उपभोग करता तथा धर्मात्मा पुरुषोंको आदर दिया है, ब्राह्मणों और है। यह पद्मपुराण साक्षात् भगवान् श्रीहरिका स्वरूप है; गौओंके लिये प्राणोंका परित्याग किया है तथा उस इसके एक अध्यायका भी पाठ करके मनुष्य सब पापोंसे बुद्धिमान्ने और भी बहुतेरे उत्तम कर्म किये हैं। तात्पर्य मुक्त हो जाता है।
.. यह कि स्वर्गखण्डके श्रवणसे उक्त सभी शुभकर्मोंका स्वर्गखण्डका श्रवण करके महापातकी मनुष्य भी फल प्राप्त हो जाता है। स्वर्गखण्डका पाठ करनेसे केंचुलसे छूटे हुए सर्पकी भाँति समस्त पापोंसे मुक्त हो मनुष्यको नाना प्रकारके भोग प्राप्त होते हैं तथा वह जाते हैं। कितना ही बड़ा दुराचारी और सब धर्मोसे तेजोमय शरीर धारण करके ब्रह्मलोकमें जाता और वहीं बहिष्कृत क्यों न हो, स्वर्गखण्डका श्रवण करके वह ज्ञान पाकर मोक्षको प्राप्त हो जाता है। बुद्धिमान् मनुष्य पवित्र हो जाता है—इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। उत्तम पुरुषोंके साथ निवास, उत्तम तीर्थमें स्रान, उत्तम द्विजो ! समस्त पुराणोंको सुनकर मनुष्य जिस फलको वार्तालाप तथा उत्तम शास्त्रका श्रवण करे। उन प्राप्त करता है, वह सब केवल पद्मपुराणको सुनकर ही शास्त्रोंमें पद्मपुराण महाशास्त्र है, यह सम्पूर्ण वेदोंका फल प्राप्त कर लेता है। कैसी अद्भुत महिमा है! समूचे देनेवाला है। इसमें भी स्वर्गखण्ड महान् पुण्यका फल पद्मपुराणको सुननेसे जिस फलकी प्राप्ति होती है, वहीं प्रदान करनेवाला है। फल मनुष्य केवल स्वर्गखण्डको सुनकर प्राप्त कर लेता ओ संसारके मनुष्यो! मेरी बात सुनोहै। माघमासमें मनुष्य प्रतिदिन प्रयागमें स्नान करके जैसे गोविन्दको भजो और एकमात्र देवेश्वर विष्णुको प्रणाम पापसे मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार इस स्वर्गखण्डके करो। यदि कामनाकी उत्ताल तरङ्गोंको सुखपूर्वक पार श्रवणसे भी वह पापोंसे छुटकारा पा जाता है। जिस करना चाहते हो तो एकमात्र हरिनामका, जिसकी कहीं पुरुषने भरी सभामें इस स्वर्गखण्डको सुना और सुनाया तुलना नहीं है, उच्चारण करो।
स्वर्गखण्ड समाप्त
* एक पुराण रूप वै तत्र पायं परं महत् । ब्राह्म मूर्धा हरेरेव हदयं पद्मसंज्ञकम्॥
वैष्णवं दक्षिणो बाहुः शैवं वामो महेशितुः । ऊरू भागवतं प्रोक्तं नाभिः स्थानारदीयकम्। मार्कण्डेयं च दक्षाशिर्वामो ह्यानेयमुच्यते । भविष्य दक्षिणो जानुर्विष्णोरेव महात्मनः ।। ब्रह्मवैवर्तसंशं तु वामजानुल्दाहतः । लैनं तु गुल्फकं दक्षं वाराहं वामगुल्फकम्॥ स्कान्दं पुराणं लोमानि त्वगस्य वामनं स्मृतम् । कौम पृष्ठ समाख्यातं मात्स्य मेदः प्रकीर्पते ॥
मज्जा तु गारुडं प्रोक्तं ब्रह्माण्डमस्थि गीयते । एवमेवाभवद्विष्णुः पुराणावयवो हरिः ॥ (६२।२-७) सिद्धिः सह बसेद्धीमान् सत्तीर्थे सानमाचरेत् । कुदिव सदालाप सच्छासं शृणुयानरः ।।(६२ । २४)