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स्वर्गखण्ड ]
. मार्कण्डेयजी तथा श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको प्रयागकी महिमा सुनाना .
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यमुनामें गोता लगाने और उनका जल पीनेसे कुलकी अनुष्ठानके द्वारा अधिक धर्मकी प्राप्ति बताते हुए सात पीढ़ियाँ पवित्र हो जाती है। जिसकी वहाँ मृत्यु होती प्रयागकी ही अधिक प्रशंसा क्यों कर रहे हैं? यह मेरा है, वह परमगतिको प्राप्त होता है। यमुनाके दक्षिण संशय हैं। इस सम्बन्धमें आपने जैसा देखा और सुना किनारे विख्यात अग्नितीर्थ है; उसके पश्चिम धर्मराजका हो, उसके अनुसार इस संशयका निवारण कीजिये। तीर्थ है, जिसे हरवरतीर्थ भी कहते हैं। वहाँ स्नान करनेसे मार्कण्डेयजीने कहा-राजन् ! मैंने जैसा देखा मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं तथा जो वहाँ मृत्युको प्राप्त होते हैं, और सुना है, उसके अनुसार प्रयागका माहात्म्य बतलाता वे फिर जन्म नहीं लेते।
हूँ, सुनो। प्रत्यक्षरूपसे, परोक्ष तथा और जिस प्रकार इसी प्रकार यमुनाके दक्षिण-तटपर हजारों तीर्थ हैं। सम्भव होगा, मैं उसका वर्णन करूंगा। शास्त्रको प्रमाण अब मैं उत्तर-तटके तीर्थोका वर्णन करता हूँ। युधिष्ठिर! मानकर आत्माका परमात्माके साथ जो योग किया जाता उत्तरमें महात्मा सूर्यका विरज नामक तीर्थ है, जहाँ इन्द्र है, उस योगकी प्रशंसा की जाती है। हजारों जन्मोंके
आदि देवता प्रतिदिन सन्ध्योपासन करते हैं। देवता तथा पश्चात् मनुष्योंको उस योगकी प्राप्ति होती है। इसी प्रकार विद्वान् पुरुष उस तीर्थका सेवन करते हैं। तुम भी सहस्रों युगोंमें योगकी उपलब्धि होती है। ब्राह्मणोंको श्रद्धापूर्वक दानमें प्रवृत्त होकर उस तीर्थमें स्नान करो। सब प्रकारके रत्न दान करनेसे मानवोंको योगकी वहाँ और भी बहुत-से तीर्थ हैं, जो सब पापोंको उपलब्धि होती है। प्रयागमें मृत्यु होनेपर यह सब कुछ हरनेवाले और शुभ हैं। उनमें स्नान करके मनुष्य स्वर्गमे स्वतः सुलभ हो जाता है। जैसे सम्पूर्ण भूतोंमें व्यापक जाते हैं तथा जिनकी वहाँ मृत्यु होती है, वे मोक्ष प्राप्त कर ब्रह्मकी सर्वत्र पूजा होती है, उसी प्रकार सम्पूर्ण लोकोंमें लेते हैं। गङ्गा और यमुना-दोनों ही समान फल विद्वानोद्वारा प्रयाग पूजित होता है। नैमिषारण्य, पुष्कर, देनेवाली मानी गयी हैं; केवल श्रेष्ठताके कारण गङ्गा गोतीर्थ, सिन्धु-सागर संगम, कुरुक्षेत्र, गया और सर्वत्र पूजित होती हैं। कुन्तीनन्दन ! तुम भी इसी प्रकार गङ्गासागर तथा और भी बहुत-से तीर्थ एवं पवित्र सब तीर्थोंमें स्नान करो, इससे जीवनभरका पाप तत्काल पर्वत-कुल मिलाकर तीस करोड़ दस हजार तीर्थ नष्ट हो जाता है। जो मनुष्य सबेरे उठकर इस प्रसङ्गका प्रयागमें सदा निवास करते है। ऐसा विद्वानोंका कथन पाठ या श्रवण करता है, वह भी सब पापोंसे मुक्त होकर है। वहाँ तीन अग्निकुण्ड हैं, जिनके बीच होकर गङ्गा स्वर्गलोकको जाता है।
प्रयागसे निकलती हैं। वे सब तीथोंसे युक्त हैं। वायु युधिष्ठिर बोले-मुने ! मैंने ब्रह्माजीके कहे हुए देवताने देवलोक, भूलोक तथा अन्तरिक्षमें साढ़े तीन पुण्यमय पुराणका श्रवण किया है, उसमें सैकड़ों, हजारों करोड़ तीर्थ बतलाये हैं। गङ्गाको उन सबका स्वरूप
और लाखों तीर्थोका वर्णन आया है। सभी तीर्थ माना गया है।* प्रयाग, प्रतिष्ठानपुर (झूसी), कम्बल पुण्यजनक और पवित्र बताये गये हैं तथा सबके द्वारा और अश्वतर नागोंके स्थान तथा भोगवती-ये उत्तम गतिकी प्राप्ति बतायी गयी है। पृथ्वीपर नैमिषारण्य प्रजापतिकी वेदियाँ हैं। युधिष्ठिर ! वहाँ देवता, मूर्तिमान और आकाशमें पुष्करतीर्थ पवित्र है। लोकमें प्रयाग यज्ञ तथा तपस्वी ऋषि रहते और प्रयागकी पूजा करते और कुरुक्षेत्र दोनोंको ही विशेष स्थान दिया गया है। हैं। प्रयागका यह माहात्म्य धन्य है, यही स्वर्ग प्रदान आप उन सबको छोड़कर केवल एककी ही प्रशंसा क्यों करनेवाला है, यही सेवन करनेयोग्य है, यही सुखरूप है, कर रहे हैं? आप प्रयागसे परम दिव्य गति तथा यही पुण्यमय है, यही सुन्दर है और यही परम उत्तम, मनोवाञ्छित भोगोंकी प्राप्ति बताते हैं। थोड़े-से धर्मानुकूल एवं पावन है। यह महर्षियोंका गोपनीय
* तिसः कोट्यर्द्धकोटीश तीर्थानां वायुरब्रवीत् दिवि भुष्यन्तरिक्षे च तत्सर्व जाह्नवी स्मृता ।। (४७१७)