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स्वर्गखण्ड]
• स्नातक और गृहस्थके धोका वर्णन .
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मृत्यु हो जानेपर तीन राततक अनध्याय माना गया है। बात नहीं करनी चाहिये। द्विजको केवल वेदोंके पाठ ये अवसर वेदपाठी ब्राह्मणोंके लिये छिद्ररूप है, अतः मात्रसे ही संतोष नहीं कर लेना चाहिये। जो केवल पाठ अनध्याय कहे गये हैं। इनमें अध्ययन करनेसे राक्षस मात्रमें लगा रह जाता है, वह कीचड़में फँसी हुई गौकी हिंसा करते हैं; अतः इन अनध्यायोंका त्याग कर देना भाँति कष्ट उठाता है। जो विधिपूर्वक वेदका अध्ययन चाहिये। नित्य कर्ममें अनध्याय नहीं होता । संध्योपासन करके उसके अर्थका विचार नहीं करता, वह मूढ़ एवं भी बराबर चलता रहता है। उपाकर्ममें, उत्सर्गमें, शूद्रके समान है। वह सुपात्र नहीं होता* । यदि कोई होमके अन्तमें तथा अष्टकाकी आदि तिथियोंको वायुके सदाके लिये गुरुकुलमें वास करना चाहे तो सदा उद्यत चलते रहनेपर भी स्वाध्याय करना चाहिये। वेदाङ्गों, रहकर शरीर छूटनेतक गुरुकी सेवा करता रहे। वनमें इतिहास-पुराणों तथा अन्य धर्मशास्त्रोंके लिये भी जाकर विधिवत् अग्निमें होम करे तथा ब्रह्मनिष्ठ एवं अनध्याय नहीं है। इन सबको अनध्यायकी कोटिसे एकाग्रचित्त होकर सदा स्वाध्याय करता रहे । वह भिक्षाके पृथक् समझना चाहिये।
अन्नपर निर्भर रहकर योगयुक्त हो सदा गायत्रीका जप और यह मैंने ब्रह्मचारीके धर्मका संक्षेपसे वर्णन किया शतरुद्रिय तथा विशेषतः उपनिषदोंका अभ्यास करता है। पूर्वकालमें ब्रह्माजीने शुद्ध अन्तःकरणवाले ऋषियोंके रहे । वेदाध्ययनके विषयमें जो यह परम प्राचीन विधि है, सामने इस धर्मका प्रतिपादन किया था। जो द्विज वेदका इसका भलीभाँति मैंने आपलोगोंसे वर्णन किया है। अध्ययन न करके दूसरे शास्त्रोंमें परिश्रम करता है, वह पूर्वकालमें श्रेष्ठ महर्षियोंके पूछनेपर दिव्यशक्तिसम्पन्न मूढ़ और वेदबाह्य माना गया है। द्विजातियोंको उससे स्वायम्भुव मनुने इसका प्रतिपादन किया था।
स्नातक और गृहस्थके धर्मोका वर्णन
व्यासजी कहते हैं-ब्राह्मणो! श्रेष्ठ ब्रह्मचारी जूता तथा सोनेके कुण्डल धारण करने चाहिये । ब्राह्मण अपनी शक्तिके अनुसार एक, दो, तीन अथवा चारों वेदों सोनेकी मालाके सिवा दूसरी कोई लाल रङ्गकी माला न तथा वेदाङ्गोंका अध्ययन करके उनके अर्थको भलीभांति धारण करे। वह सदा श्वेत वस्त्र पहने, उत्तम गन्धका हृदयङ्गम करके ब्रह्मचर्य-व्रतकी समाप्तिका स्रान करे ।। सेवन करे और वेष-भूषा ऐसी रखे, जो देखने में प्रिय गुरुको। दक्षिणारूपमें धन देकर उनकी आज्ञा ले सान जान पड़े। धन रहते हुए फटे और मैले वस्त्र न पहने। करना चाहिये। व्रतको पूरा करके मनको काबूमे अधिक लाल और दूसरेके पहने हुए वस्त्र, कुण्डल, रखनेवाला समर्थ पुरुष स्नातक होनेके योग्य है। वह माला, जूता और खड़ाऊँको अपने काममें न लाये। बाँसकी छड़ी, अधोवस्त्र तथा उत्तरीय (चादर) धारण यज्ञोपवीत, आभूषण, कुश और काला मृगचर्म-इन्हें करे। एक जोड़ा यज्ञोपवीत और जलसे भरा हुआ अपसव्य भावसे न धारण करे। अपने योग्य स्त्रीसे कमण्डलु धारण करे। बाल और नख कटाकर स्नान विधिपूर्वक विवाह करे । स्त्री शुभ गुणोंसे युक्त, रूपवती, आदिसे शुद्ध हो उसे छाता, साफ पगड़ी, खड़ाऊँ या सुलक्षणा और योनिगत दोषोंसे रहित होनी चाहिये।
* योऽन्यत्र कुरुते यलमनधीत्य श्रुति द्विजः । स सम्मूढो न सम्भाष्यो वेदबायो द्विजातिभिः॥ न वेदपाठमात्रेण संतुष्टो वै भवेत् द्विजः । पाठमात्रावसनस्तु पङ्के गौरिव सीदति ॥ योऽधीत्य विधिवद्वेद वेदार्थ न विचारयेत् । स सम्मूढः शूद्रकल्पः पात्रतां न प्रपद्यते ॥ (५३ । ८४-८६) विदं वेदी तथा वेदान् वेदाङ्गानि तथा द्विजाः । अधीत्य चाधिगम्याथै ततः सायाद् द्विजोत्तमः ॥ (५४ । १)