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• अर्चयस्व हपीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्मपुराण
निःसन्देह यही मेध्य, पवित्र और पावन है। वहीं मधुपुर होता है। समस्त देवताओंके तीर्थोंमें स्नान करनेमात्रसे नामक तीर्थ है, वहाँ स्नान करनेसे सहस्र गोदानोंका फल मनुष्य सम्पूर्ण दुःखोंसे मुक्त होकर श्रीशिवकी भांति प्राप्त होता है। नरश्रेष्ठ ! वहाँसे सरस्वती और अरुणाके क्रान्तिमान् होता है। तत्पश्चात् तीर्थसेवी पुरुष अस्थिपुरमें सङ्गममें, जो विश्वविख्यात तीर्थ है, जाना चाहिये। वहाँ जाय और उस पावन तीर्थमें पहुँचकर देवताओं तथा तीन राततक उपवास करके रहने और नान करनेसे पितरोका तर्पण करे। इससे उसे अनिष्टोम यज्ञका फल ब्रह्महत्या छूट जाती है। साथ ही तीर्थसेवी पुरुषको मिलता है। भरतश्रेष्ठ ! वहीं गङ्गाह्रद नामक कूप है, अमिष्टोम और अतिरात्र यज्ञका फल मिलता है और वह जिसमें तीन करोड़ तीर्थोका निवास है। राजन् ! उसमें अपनी सात पीढ़ियोतकका उद्धार कर देता है, इसमें स्नान करनेसे मनुष्य ब्रह्मलोकको प्राप्त होता है। तनिक भी सन्देह नहीं है। वहाँसे शतसहस्र तथा आपगामें नान और महेश्वरका पूजन करके मनुष्य परम साहस्त्रक-इन दोनों तीर्थोंमें जाना चाहिये। वे दोनों गतिको पाता है और अपने कुलका भी उद्धार कर देता तीर्थ भी वहीं है तथा सम्पूर्ण लोकोंमें उनकी प्रसिद्धि है। है। तत्पश्चात् तीनों लोकोंमें विख्यात स्थाणुवट-तीर्थ में उन दोनोंमें स्रान करनेसे मनुष्य सहस्र गोदानोंका फल जाना चाहिये; वहाँ स्रान करके रात्रिमें निवास करनेसे पाता है। वहाँ जो दान या उपवास किया जाता है, वह मनुष्य रुद्रलोकको प्राप्त होता है। जो नियम-परायण, सहसगुना अधिक फल देनेवाला होता है। तदनन्तर सत्यवादी पुरुष एकरात्र नामक तीर्थमें जाकर एक रात परम उत्तम रेणुकातीर्थमें जाना चाहिये और वहाँ निवास करता है, वह ब्रह्मलोकमें प्रतिष्ठित होता है। देवताओं तथा पितरोंके पूजनमें तत्पर हो स्रान करना राजेन्द्र ! वहाँसे उस त्रिभुवनविख्यात तीर्थमें जाना चाहिये। ऐसा करनेसे मनुष्यका हृदय सब पापोंसे शुद्ध चाहिये, जहाँ तेजोराशि महात्मा आदित्यका आश्रम है। हो जाता है तथा उसे अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता है। जो मनुष्य उस तीर्थमें स्नान करके भगवान् सूर्यका पूजन जो क्रोध और इन्द्रियोंको जीतकर विमोचन-तीर्थमें स्नान करता है, वह सूर्यलोकमें जाता और अपने कुलका करता है, वह प्रतिग्रहजनित समस्त पापोंसे मुक्त हो उद्धार कर देता है। जाता है।
युधिष्ठिर ! इसके बाद सत्रिहिता नामक तीर्थकी तदनन्तर जितेन्द्रिय हो ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए यात्रा करनी चाहिये, जहाँ ब्रह्मा आदि देवता तथा पञ्चवट-तीर्थमें जाकर [स्रान करनेसे] मनुष्यको महान् तपोधन ऋषि महान् पुण्यसे युक्त हो प्रतिमास एकत्रित पुण्य होता है तथा वह स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है। होते हैं। सूर्यग्रहणके समय सत्रिहितामें नान करनेसे सौ जहाँ स्वयं योगेश्वर शिव विराजमान हैं, वहाँ उन अश्वमेध यज्ञोंके अनुष्ठानका फल होता है । पृथ्वीपर तथा देवेश्वरका पूजन करके मनुष्य वहाँको यात्रा करनेमात्रसे आकाशमें जितने भी तीर्थ, जलाशय, कूप तथा पुण्यसिद्धि प्राप्त कर लेता है। कुरुक्षेत्रमें इन्द्रिय-निग्रह तथा मन्दिर हैं, वे सब प्रत्येक मासकी अमावास्याको निशय ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए स्नान करनेसे मनुष्यका ही सत्रिहितामें एकत्रित होते हैं। अमावास्या तथा हृदय सब पापोंसे शुद्ध हो जाता है और वह रुद्रलोकको सूर्यग्रहणके समय वहाँ केवल स्रान तथा श्राद्ध प्राप्त होता है। इसके बाद नियमित आहारका भोजन तथा करनेवाला मानव सहस्र अश्वमेध यज्ञके अनुष्ठानका शौचादि नियमोंका पालन करते हुए स्वर्गद्वारकी यात्रा फल प्राप्त करता है। स्त्री अथवा पुरुषका जो कुछ भी करे। ऐसा करनेसे मनुष्य अनिष्टोम यज्ञका फल पाता दुष्कर्म होता है, वह सब वहाँ स्नान करनेमात्रसे नष्ट हो
और ब्रह्मलोकको जाता है। महाराज ! नारायण तथा जाता है इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। उस तीर्थमें पद्मनाभके क्षेत्रोंमें जाकर उनका दर्शन करनेसे तीर्थसेवी स्नान करनेवाला पुरुष विमानपर बैठकर ब्रह्मलोकमें पुरुष शोभायमान रूप धारण करके विष्णुधामको प्राप्त जाता है। पृथ्वीपर नैमिषारण्य पवित्र है; तथा तीनों