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अर्थयस्व हवीकेशं यदीच्छसि परं पदम्
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
ब्रह्मस्थूणा आदि तीर्थों तथा प्रयागकी महिमा; इस प्रसङ्गके पाठका माहात्म्य
स्मरणशक्ति और मेधाकी प्राप्ति होती है। वहीं कालञ्जरतीर्थमें जानेसे सहस्र गोदानोंका फल मिलता है।
नारदजी कहते हैं - युधिष्ठिर! ब्रह्मस्थूणा नामक तीर्थमें जाकर तीन राततक उपवास करनेवाला मनुष्य सहस्र गोदानोंका फल पाता और स्वर्गलोकको जाता है। कुब्जा वनमें जाकर ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए एकाग्रचित्त हो स्नान करके तीन रात उपवास करनेवालेको सहस्र गोदानोंका फल मिलता है। इसके बाद देवहृदमें जहाँसे कृष्णवेणा नदी निकलती है, स्नान करे। फिर ज्योतिर्मात्र ( जातिमात्र) हृदमें तथा कन्याश्रममें स्नान करे। कन्याश्रममें जानेमात्रसे सौ अग्निष्टोम यज्ञोंका फल मिलता है। सर्वदेवहदमें स्नान करनेसे सहस्र गोदानोंका फल प्राप्त होता है तथा जातिमात्र हृदमें नहानेसे मनुष्यको पूर्वजन्मका स्मरण हो जाता है। इसके बाद परम पुण्यमयी वाणी तथा नदियोंमें श्रेष्ठ पयोष्णी (मन्दाकिनी) में जाकर देवताओं तथा पितरोंका पूजन करनेवाला मनुष्य सहस्र गोदानोंका फल पाता है।
महाराज ! तदनन्तर, दण्डकारण्य में जाकर गोदावरीमें स्नान करना चाहिये। वहाँ शरभङ्ग मुनि तथा महात्मा शुकके आश्रमकी यात्रा करनेसे मनुष्य कभी दुर्गतिमें नहीं पड़ता और अपने कुलको पवित्र कर देता है। तत्पश्चात् सप्तगोदावरीमें स्नान करके नियमोंका पालन करते हुए नियमानुकूल भोजन करनेवाला पुरुष महान् पुण्यको प्राप्त होता और देवलोकको जाता है। वहाँसे देवपथकी यात्रा करे। इससे मानव देवसत्रका पुण्य प्राप्त कर लेता है। तुङ्गकारण्यमें जाकर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जितेन्द्रिय भावसे रहे। युधिष्ठिर! तुङ्गकारण्यमें प्रवेश करनेवाले पुरुष अथवा स्त्रीका सारा पाप तत्काल नष्ट हो जाता है। धीर पुरुषको उचित है कि वह नियमोंका पालन तथा नियमानुकूल भोजन करते हुए एक मासतक वहाँ निवास करे। इससे वह ब्रह्मलोकको जाता और अपने कुलको भी पवित्र कर देता है। मेधा-वनमें जाकर देवताओं और पितरोंका तर्पण करना चाहिये। इससे अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता तथा
महाराज ! तत्पश्चात् पर्वतश्रेष्ठ चित्रकूटपर मन्दाकिनी नदीकी यात्रा करे। वह सब पापोंको दूर करनेवाली है। उसमें स्नान करके देवताओं तथा पितरोंके पूजनमें तत्पर रहनेवाला मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल पाता और परम गतिको प्राप्त होता है। वहाँसे परम उत्तम भर्तृस्थान नामक तीर्थमें जाना चाहिये। वहाँ जानेमात्रसे ही मनुष्यको सिद्धि प्राप्त होती है। उस तीर्थकी प्रदक्षिणा करके शिवस्थानकी यात्रा करनी चाहिये। वहाँ एक विख्यात कूप है, जिसमें चारों समुद्रोंका निवास है। वहाँ स्नान करके उस कूपकी प्रदक्षिणा करे; इससे पवित्र हुआ जितात्मा पुरुष परम गतिको प्राप्त होता है। तदनन्तर, महान् शृङ्गवेरपुरकी यात्रा करे। वहाँ गङ्गामें स्नान करके ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए इन्द्रियोंको संयममें रखनेवाले पुरुषके पाप धुल जाते हैं और वह वाजपेय यज्ञका फल पाता है। वहाँसे परम बुद्धिमान् भगवान् शङ्करके मुञ्जवट नामक स्थानकी यात्रा करे। वहाँ जाकर महादेवजीकी पूजा और प्रदक्षिणा करनेसे मनुष्य गणपति पदको प्राप्त होता है।
इसके बाद ऋषियोंद्वारा प्रशंसित प्रयागतीर्थकी यात्रा करे, जहाँ ब्रह्माजीके साथ साक्षात् भगवान् माधव विराजमान हैं। गङ्गा सब तीर्थोके साथ प्रयागमें आयी हैं। और वहाँ तीनों लोकोंमें विख्यात तथा सम्पूर्ण जगत्को पवित्र करनेवाली सूर्यनन्दिनी यमुना गङ्गाजीके साथ मिली हैं। गङ्गा और यमुनाके बोचकी भूमि पृथ्वीका जघन (कटिसे नीचेका भाग) मानी गयी है। और प्रयाग जघनके बीचका उपस्थ भाग है, ऐसी ऋषियोंकी मान्यता है। वहाँ प्रयाग, उत्तम प्रतिष्ठानपुर (झूसी), कम्बल और अश्वतर नामक नागोका स्थान, भोगवतीतीर्थ तथा प्रजापतिकी वेदी आदि पवित्र स्थान बताये गये हैं। वहाँ यज्ञ और वेद मूर्तिमान् होकर रहते हैं। प्रयागसे बढ़कर पवित्र तीर्थ तीनों लोकोंमें नहीं है। प्रयाग अपने प्रभावके