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स्वर्गखण्ड]
- सुगन्ध आदि तीर्थोकी महिमा तथा काशीपुरीका माहात्म्य .
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जाना चाहिये। वहाँ समुद्रके जलमें स्नान करके तीन निवास करते हैं। नैमिष-तीर्थमें जानेकी इच्छा राततक उपवास करनेवाला मनुष्य सहस्र गोदानोंका करनेवालेका ही आधा पाप नष्ट हो जाता है तथा उसमें फल पाता और स्वर्गलोकको जाता है। तदनन्तर प्रविष्ट हुआ मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। ब्रह्मावर्त तीर्थकी यात्रा करे। वहाँ ब्रह्मचर्यका पालन भारत ! धीर पुरुषको उचित है कि वह तीर्थ-सेवनमें करते हुए एकाग्रचित्त हो नान करनेसे मनुष्य अश्वमेध तत्पर हो एक मासतक नैमिषारण्यमें निवास करे। यज्ञका फल पाता और स्वर्गलोकमें जाता है। उसके बाद भूमण्डलमें जितने तीर्थ हैं, वे सभी नैमिषारण्यमें यमुनाप्रभव नामक तीर्थमें जाय । वहाँ यमुनाजलमें स्नान विद्यमान रहते हैं। जो वहाँ स्नान करके नियमपूर्वक रहते करनेसे मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल पाकर ब्रह्मलोकमें हुए नियमानुकूल आहार ग्रहण करता है, वह मानव प्रतिष्ठित होता है। दवीसंक्रमण नामक तीर्थ तीनों राजसूय यज्ञका फल पाता है। इतना ही नहीं, वह अपने लोकोंमें विख्यात है। वहाँ पहुँचकर स्नान करनेसे कुलकी सात पीढ़ियोंतकको पवित्र कर देता है। अश्वमेध यज्ञके फल और स्वर्गलोककी प्राप्ति होती है। गोद्रेद-तीर्थमें जाकर तीन राततक उपवास भृगुतुङ्ग-तीर्थमें जानेसे भी अश्वमेध यज्ञका फल मिलता करनेवाला मनुष्य वाजपेय यज्ञका फल पाता और है। वीरप्रमोक्ष नामक तीर्थकी यात्रा करके मनुष्य सब सदाके लिये ब्रह्मस्वरूप हो जाता है। सरस्वतीके तटपर पापोंसे छुटकारा पा जाता है। कृत्तिका और मघाके दुर्लभ जाकर देवता और पितरोका तर्पण करना चाहिये। ऐसा तीर्थमें जाकर पुण्य करनेवाला पुरुष अग्निष्टोम और करनेवाला पुरुष सारस्वत-लोकोंमें जाकर आनन्द भोगता अतिरात्र यज्ञोका फल पाता है।
है- इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। तत्पश्चात् बाहुदा तत्पश्चात् सन्ध्या-तीर्थमें जाकर जो परम उत्तम नदीकी यात्रा करे। वहाँ एक रात निवास करनेवाला विद्या-तीर्थमें स्नान करता है, वह सम्पूर्ण विद्याओमें मनुष्य स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है और उसे देवसत्र पारंगत होता है। महाश्रम तीर्थ सब पापोंसे छुटकारा नामक यज्ञका फल मिलता है । इसके बाद सरयू नदीके दिलानेवाला है। वहाँ रात्रिमें निवास करना चाहिये । जो उत्तम तीर्थ गोप्रतार (गुप्तार) घाटपर जाना चाहिये । जो मनुष्य वहाँ एक समय भी उपवास करता है, उसे उत्तम मनुष्य उस तीर्थमें स्नान करता है, वह सब पापोंसे शुद्ध लोकोंमें निवास प्राप्त होता है। जो तीन दिनपर एक समय होकर स्वर्गलोकमें पूजित होता है। कुरुनन्दन ! गोमती उपवास करते हुए एक मासतक महाश्रम-तीर्थमें निवास नदीके रामतीर्थमें स्नान करके मनुष्य अश्वमेध यज्ञका करता है, वह स्वयं तो भवसागरके पार हो ही जाता है, फल पाता और अपने कुलका उद्धार कर देता है। वहीं अपने आगे-पीछेकी दस-दस पीढ़ियोंको भी तार देता शतसाहस्रक नामका तीर्थ है; जो वहाँ स्नान करके है। परमपवित्र देववन्दित महेश्वरका दर्शन करके मनुष्य नियमसे रहता और नियमानुकूल भोजन करता है, उसे सब कर्तव्योंसे उऋण हो जाता है। उसके बाद सहस्र गोदानोंका पुण्य-फल प्राप्त होता है। धर्मज्ञ पितामहद्वारा सेवित वेतसिका-तीर्थके लिये प्रस्थान करे। युधिष्ठिर ! वहाँसे ऊर्ध्वस्थान नामक उत्तम तीर्थमें जाना वहाँ जानेसे मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल पाता और चाहिये। वहाँ कोटितीर्थमें स्नान करके कार्तिकेयजीका परमगतिको प्राप्त होता है।
पूजन करनेसे मनुष्यको सहस्र गोदानोंका फल मिलता है तत्पश्चात् ब्राह्मणिका-तीर्थमें जाकर ब्रह्मचर्यका तथा वह तेजस्वी होता है। उसके बाद काशीमें जाकर पालन करते हुए एकाग्रचित्त हो स्नानादि करनेसे मनुष्य भगवान् शंकरकी पूजा और कपिलाकुण्डमें स्नान करनेसे कमलके समान रंगवाले विमानपर बैठकर ब्रह्मलोकको राजसूय यज्ञका फल प्राप्त होता है। जाता है। उसके बाद द्विजोंद्वारा सेवित पुण्यमय नैमिष- युधिष्ठिर बोले-मुने ! आपने काशीका माहात्म्य तीर्थकी यात्रा करे । वहाँ ब्रह्माजी देवताओंके साथ सदा बहुत थोड़ेमें बताया है, उसे कुछ विस्तारके साथ कहिये।