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अर्चयस्व इषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
पवित्र वन थे, उनमें विचरण करने लगा। उसके चित्तपर कामका आवेश छा रहा था। बहुत खोजनेपर भी उसे कामोद नामक वृक्ष कहीं नहीं दिखायी दिया। वह स्वयं इधर-उधर जाकर पूछ-ताछ करता रहा; किन्तु सर्वत्र लोगों के मुँहसे उसे यही उत्तर मिलता था कि 'यहाँ कामोद वृक्ष नहीं है।' दुष्टात्मा विहुण्ड उस वृक्षका पता लगाता हुआ शुक्राचार्यके पास गया और भक्तिपूर्वक मस्तक झुकाकर पूछने लगा - - ब्रह्मन् ! मुझे फूलोंसे लदे सुन्दर कामोद वृक्षका पता बताइये।'
शुक्राचार्य बोले- दानव ! कामोद नामका कोई वृक्ष नहीं है। कामोदा तो एक स्त्रीका नाम है। वह जब किसी प्रसङ्गसे अत्यन्त हर्षमें भरकर हँसती है, तब उसके मनोहर हास्यसे सुगन्धित, श्रेष्ठ तथा दिव्य कामोद पुष्प उत्पन्न होते हैं। उनका रंग अत्यन्त पीला होता है तथा वे दिव्य गन्धसे युक्त होते हैं। उनमेंसे एक फूलके द्वारा भी जो भगवान् शङ्करकी पूजा करता है, उसकी बड़ी से बड़ी कामनाको भी भगवान् शिव पूर्ण कर देते हैं। कामोदाके रोदनसे भी वैसे ही सुन्दर फूल उत्पन्न होते हैं; किन्तु उनमें सुगन्ध नहीं होती। अतः उनका स्पर्श नहीं करना चाहिये।
[ संक्षिप्त पद्यपुराण
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जो पवित्र, दिव्यगन्धसे युक्त और देवता तथा दानवोंके लिये दुर्लभ सुन्दर फूल उत्पन्न होते हैं, उन्हें सम्पूर्ण देवता क्यों चाहते हैं ? उन हास्यजनित फूलोंसे पूजित होनेपर भगवान् शङ्कर क्यों सन्तुष्ट होते हैं ? उस फूलका क्या गुण है ? कामोदा कौन है और वह किसकी पुत्री है ?
कुञ्जल बोला- पूर्वकालकी बात है, देवताओं और बड़े-बड़े दैत्योंने अमृतके लिये परस्पर उत्तम सौहार्द स्थापित करके उद्यमपूर्वक क्षीरसागरका मन्थन किया। देवताओं और दैत्योंके मथनेसे चार कन्याएँ प्रकट हुई। फिर कलशमें रखा हुआ पुण्यमय अमृत दिखायी पड़ा। उपर्युक्त कन्याओंमेंसे एकका नाम लक्ष्मी था, दूसरी वारुणी नामसे प्रसिद्ध थी, तीसरीका नाम कामोदा और चौथीका ज्येष्ठा था। कामोदा अमृतकी लहरसे प्रकट हुई थी । वह भविष्यमें भगवान् श्रीविष्णुकी प्रसन्नताके लिये वृक्षरूप धारण करेगी और सदा ही श्रीविष्णुको आनन्द देनेवाली होगी। वृक्षरूपमें वह परम पवित्र तुलसीके नामसे विख्यात होगी। उसके साथ भगवान् जगन्नाथ सदा ही रमण करेंगे। जो तुलसीका एक पत्ता भी ले जाकर श्रीकृष्णभगवान्को समर्पित करेगा, उसका भगवान् बड़ा उपकार मानेंगे और 'मैं इसे क्या दे डालूँ ?' यह सोचते हुए वे उसके ऊपर बहुत प्रसन्न होंगे।
शुक्राचार्यकी यह बात सुनकर विहुण्डने पूछा'भृगुनन्दन ! कामोदा कहाँ रहती है ?"
शुक्राचार्य बोले – सम्पूर्ण पातकोंका शोधन करनेवाले परम पावन गङ्गाद्वार (हरिद्वार) नामक तीर्थके पास कामोद नामक पुर है, जिसे विश्वकर्माने बनाया था। उस कामोद नगरमें दिव्य भोगोंसे विभूषित एक सुन्दरी स्त्री रहती है, जो सम्पूर्ण देवताओंसे पूजित है। वह भाँति-भाँति के आभूषणोंसे अत्यन्त सुशोभित जान पड़ती है। तुम वहीं चले जाओ और उस युवतीकी पूजा करो। साथ ही किसी पवित्र उपायका अवलम्बन करके उसे हँसाओ ।
इस प्रकार पूर्वोक्त चार कन्याओंमेंसे जो कामोदा नामसे प्रसिद्ध देवी है, वह जब हर्षसे गद्रद होकर बोलती और हँसती है, तब उसके मुखसे सुनहरे रंगके सुगन्धित फूल झड़ते हैं। वे फूल बड़े सुन्दर होते हैं। कभी कुम्हलाते नहीं हैं। जो उन फूलोंका यत्नपूर्वक संग्रह करके उनके द्वारा भगवान् शङ्कर, ब्रह्मा तथा विष्णुकी पूजा करता है, उसके ऊपर सब देवता संतुष्ट होते हैं और वह जो-जो चाहता है, वही वही उसे अर्पण करते हैं। इसी प्रकार जब कामोदा किसी दुःखसे दुःखी होकर रोने लगती है, तब उसकी आँखोंके आँसुओंसे भी फूल पैदा होते और झड़ते हैं। महाभाग ! वे फूल भी देखने में बड़े मनोहर होते हैं; किन्तु उनमें सुगन्ध नहीं कपिञ्जलने पूछा—पिताजी! कामोदाके हास्यसे होती। वैसे फूलोंसे जो शङ्करका पूजन करता है, उसे
यह कहकर शुक्राचार्य चुप हो गये और वह महातेजस्वी दानव अपना कार्य सिद्ध करनेके लिये उद्यत हुआ।