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- अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . . [ संक्षिप्त पयपुराण ............... ..............................mmmmmmmmmmmmmmm जम्बूमार्ग आदि तीर्थ, नर्मदा नदी, अमरकण्टक पर्वत तथा कावेरी-सङ्गमकी महिमा
वसिष्ठजी कहते हैं-राजन् ! पृथ्वीको परिक्रमा गोदानका फल मिलता है तथा महादेवजीकी कृपासे आरम्भ करनेवाले मनुष्यको पहले जम्बूमार्गमें प्रवेश शिवगणोंका आधिपत्य प्राप्त होता है। नर्मदा नदीमें करना चाहिये। वह पितरों, देवताओं तथा ऋषियोंद्वारा जाकर देवताओं तथा पितरोंका तर्पण करके मनुष्य पूजित तीर्थ है। जम्बूमार्गमें जाकर मनुष्य अश्वमेघ अनिष्टोम यज्ञका फल पाता है। यज्ञका फल प्राप्त करता है और अन्तमें विष्णुलोकको युधिष्ठिर बोले-द्विजश्रेष्ठ नारदजी! मैं पुनः जाता है। जो मनुष्य प्रतिदिन छठे पहरमें एक बार भोजन नर्मदाका माहात्म्य सुनना चाहता हूँ। करते हुए पाँच गततक उस तीर्थमें निवास करता है,, नारदजीने कहा-राजन् ! नर्मदा सब नदियोंमें उसकी कभी दुर्गति नहीं होती तथा वह परम उत्तम श्रेष्ठ है। वह समस्त पापोंका नाश करनेवाली तथा सिद्धिको प्राप्त होता है। जम्बूमार्गसे चलकर स्थावर-जङ्गम सम्पूर्ण भूतोंको तारनेवाली है। सरस्वतीका तुण्डूलिकाश्रमकी यात्रा करनी चाहिये। वहाँ जानेसे जल तीन सप्ताहतक स्रान करनेसे, यमुनाका जल एक मनुष्य दुर्गतिमें नहीं पड़ता तथा स्वर्गलोक उसका सप्ताहतक गोता लगानेसे और गङ्गाजीका जल स्पर्शके सम्मान होता है। राजन् ! जो अगस्त्याश्रममें जाकर समय ही पवित्र करता है; किन्तु नर्मदाका जल देवताओं और पितरोंकी पूजा करता और वहाँ तीन रात दर्शनमात्रसे पवित्र कर देता है। नर्मदा तीनों लोकोंमें उपवास करके रहता है, उसे अप्रिष्टोम यज्ञका फल रमणीय तथा पावन नदी है। महाराज ! देवता, असुर, मिलता है। तथा जो शाक या फलसे जीवन-निर्वाह गन्धर्व और तपोधन ऋषि- ये नर्मदाके तटपर तपस्या करते हुए वहाँ निवास करता है, वह परम उत्तम करके परम सिद्धिको प्राप्त हो चुके हैं। युधिष्ठिर ! वहाँ कार्तिकेयजीके धामको प्राप्त होता है। राजाओंमें श्रेष्ठ स्रान करके शौच-संतोष आदि नियमोंका पालन करते दिलीप ! लक्ष्मीसे सेवित तथा समस्त लोकोद्वारा पूजित हुए जो जितेन्द्रियभावसे एक रात भी उसके तटपर कन्याश्रम तीर्थ धर्मारण्यके नामसे प्रसिद्ध है, वह निवास करता है, वह अपनी सौ पीढ़ियोंका उद्धार कर पुण्यदायक और प्रधान क्षेत्र है; वहाँ पहुँचकर उसमें देता है। जो मनुष्य जनेश्वर तीर्थमें स्रान करके प्रवेश करने मात्रसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। विधिपूर्वक पिण्डदान देता है, उसके पितर महाप्रलयतक जो नियमानुकूल आहार करके शौच-संतोष आदि तृप्त रहते हैं। अमरकण्टक पर्वतके चारों ओर कोटि नियमोका पालन करते हुए वहाँ देवता तथा पितरोंका रुद्रोंकी प्रतिष्ठा हुई है; जो वहाँ सान करता और चन्दन पूजन करता है, वह सम्पूर्ण कामनाओंको पूर्ण करनेवाले एवं फूल-माला आदि चढ़ाकर रुद्रकी पूजा करता है, यज्ञका फल पाता है। उस तीर्थकी परिक्रमा करके उसपर रुद्रकोटिस्वरूप भगवान् शिव प्रसन्न होते हैं, ययाति-पतन नामक स्थानको जाना चाहिये। वहाँको इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। पर्वतके पश्चिम भागमें यात्रा करनेसे अश्वमेघ यज्ञका फल प्राप्त होता है। - स्वयं भगवान् महेश्वर विराजमान हैं। वहाँ स्नान करके ___तदनन्तर, नियमानुकूल आहार और आचारका पवित्र हो ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए जितेन्द्रियभावसे पालन करते हुए [उज्जैनमें स्थित] महाकाल तीर्थकी शास्त्रीय विधिके अनुसार श्राद्ध करना चाहिये तथा वहीं यात्रा करे । वहाँ कोटितीर्थमें नान करके मनुष्य अश्वमेध तिल और जलसे पितरों तथा देवताओंका तर्पण भी यज्ञका फल प्राप्त करता है। वहाँसे धर्मश पुरुषको करना चाहिये। पाण्डुनन्दन | जो ऐसा करता है, उसकी भद्रवट नामक स्थानमें जाना चाहिये, जो भगवान् सातवीं पीढ़ीतकके सभी लोग स्वर्गमें निवास करते हैं। उमापतिका तीर्थ है। वहाँकी यात्रा करनेसे एक हजार राजा युधिष्ठिर ! सरिताओंमें श्रेष्ठ नर्मदाकी लंबाई