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अर्जयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
मुनिवरो ! अब दक्षिण भारतके जनपदोंका वर्णन किया जाता है। द्रविड (तमिलनाड), केरल (मलावार ), प्राच्य, मूषिक, बालमूषिक, कर्णाटक, महिषक किष्किन्ध, झल्लिक, कुन्तल, सौहृद
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पर्णाशा, मानवी, वृषभा तथा भाषा द्विजवरो! ये तथा नलकानन, कोकुट्टक, चोल, कोण, मणिवालव, सभङ्ग,
और भी बहुत-सी बड़ी-बड़ी नदियाँ है।
कलङ्क, कुकुर, अङ्गार, मारिष ध्वजिनी, उत्सव, संकेत, त्रिगर्भ, माल्यसेनि, व्यूढक, कोरक, प्रोष्ठ, सङ्गवेगघर, विन्द्य, रुलिक, बल्वल, मलर, अपरवर्तक, कालद, चण्डक, कुरट, मुशल, तनवाल, सतीर्थ, पूर्ति, सृञ्जय, अनिदाय, शिवाट तपान, सूतप ऋषिक, विदर्भ ( बरार), तङ्गण और परतङ्गण अब उत्तर एवं अन्य दिशाओंमें रहनेवाले म्लेच्छोंके स्थान बताये जाते हैं— यवन (यूनानी) और काम्बोज – ये बड़े क्रूर म्लेच्छ हैं। कृषृह, पुलट्य, हूण, पारसिक (ईरान) तथा दशमानिक इत्यादि अनेकों जनपद हैं। इनके सिवा क्षत्रियोंके भी कई उपनिवेश हैं वैश्यों और शूद्रोंके भी स्थान हैं। शूरवीर आभीर, दरद तथा काश्मीर जातिके लोग पशुओंके साथ रहते हैं। खाण्डीक, तुषार, पद्माव गिरिगह्वर, आत्रेय, भारद्वाज, स्तनपोषक, द्रोषक और कलिङ्ग – ये किरातोंकी जातियाँ हैं और इनके नामसे भित्र-भित्र जनपद हुए हैं] तोमर, हन्यमान और करभञ्जक आदि अन्य बहुत-से जनपद हैं। यह पूर्व और उत्तरके जनपदोंका वर्णन हुआ। ब्राह्मणो! इस प्रकार संक्षेपसे ही मैंने सब देशोंका परिचय दिया है। इस अध्यायका पाठ और श्रवण त्रिवर्ग, (धर्म, अर्थ और काम) रूप महान् फलको देनेवाला है।
अब जनपदोंका वर्णन करता हूँ, सुनिये। कुरु, पाचाल, शाल्व, मात्रेय, जाङ्गल, शूरसेन (मथुराके आसपासका प्रान्त), पुलिन्द, बौध, माल, सौगन्ध्य, चेदि, मत्स्य (जयपुरके आसपासका भूखण्ड), करूष, भोज, सिन्धु (सिंध), उत्तम, दशार्ण, मेकल, उत्कल, कोशल, नैकपृष्ठ, युगंधर, मद्र, कलिङ्ग, काशि, अपरकाशि, जठर, कुकुर, कुन्ति, अवन्ति (उज्जैनके आसपासका देश), अपरकुन्ति, गोमन्त मल्लक, पुण्ड्र, नृपवाहिक, अश्मक, उत्तर, गोपराष्ट्र, अधिराज्य, कुशट्ट, मल्लराष्ट्र, मालव (मालवा), उपवास्य, वक्रा, वक्रातप, मागध, सद्य, मलज, विदेह ( तिरहुत), विजय, अङ्ग (भागलपुर के आसपासका प्रान्त), वङ्ग (बंगाल), यकृल्लोमा, मल्ल, सुदेष्ण, प्रह्लाद, महिष, शशक, बाह्निक (बलख), वाटधान, आभीर, कालतोयक, अपरान्त, परान्त, पङ्कल, चर्मचण्डक, अटवीशेखर, मेरुभूत, उपावृत्त, अनुपावृत्त, सुराष्ट्र (सूरतके आसपासका देश), (केकय, कुट्ट, माहेय, कक्ष, सामुद्र, निष्कुट, अन्ध, बहु, अन्तर्गिरि, बहिर्गिरि, मलद, सत्वतर, प्रावृषेय, भार्ग, भार्गव, भासुर, शक, निषाद, निषेध, आनर्स (द्वारकाके आसपासका देश), नैर्ऋत पूर्णल, पूतिमत्स्य, कुन्तल, कुशक, तीरग्रह, ईजिक, कल्पकारण, तिलभाग, मसार, मधुमत्त, ककुन्दक काश्मीर, सिन्धुसौवीर, गान्धार (कंधार), दर्शक, अभीसार, कुद्रुत, सौरिल दव, दर्वावात, जामरथ, उरग, बलरट्ट, सुदामा, सुमल्लिक, बन्ध, करीकष, कुलिन्द, गन्धिक, वानायु दश, पार्श्वरोमा कुशबिन्दु कच्छ, गोपालकच्छ, कुरुवर्ण, किरात, बर्बर, सिद्ध, ताम्रलिप्तिक, औइम्लेच्छ, सैरिन्द्र और पर्वतीय। ये सब उत्तर भारतके जनपद बताये गये हैं।
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द्विजवरो ! प्राचीन कालमें राजा युधिष्ठिरके साथ जो देवर्षि नारदका संवाद हुआ था, उसका वर्णन करता हूँ; आपलोग श्रवण करें। महारथी पाण्डवोंके राज्यका अपहरण हो चुका था। वे द्रौपदीके साथ वनमें निवास करते थे। एक दिन उन्हें परम महात्मा देवर्षि नारदजीने दर्शन दिया। पाण्डवोंने उनका स्वागत-सत्कार किया । नारदजी उनकी की हुई पूजा स्वीकार करके युधिष्ठिरसे बोले – 'धर्मात्माओंमें श्रेष्ठ ! तुम क्या चाहते हो ?' यह सुनकर धर्मनन्दन राजा युधिष्ठिरने भाइयोंसहित हाथ जोड़ देवतुल्य नारदजीको प्रणाम किया और कहा'महाभाग ! आप सम्पूर्ण लोकोंद्वारा पूजित है। आपके संतुष्ट हो जानेपर मैं अपनेको कृतार्थ मानता हूँ मुझे किसी बातको आवश्यकता नहीं है। मुनिश्रेष्ठ ! जो