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स्वर्गखण्ड ]
• नर्मदाके तटवर्ती तीर्थोका वर्णन .
भगवान् शिवके धाममें निवास करता है। चाहिये। माघकृष्ण चतुर्दशीको जो वहाँ स्नान करता और
राजेन्द्र ! शक्रतीर्थसे कपिलातीर्थकी यात्रा करनी दिनमें उपवास करके रातमें भोजन करता है, उसे चाहिये। वह बड़ा ही उत्तम तीर्थ है। जो वहाँ नानके गर्भवासकी पीड़ा नहीं भोगनी पड़ती। पश्चात् कपिला गौका दान करता है, उसे सम्पूर्ण पृथ्वीके तदनन्तर ! सोमतीर्थमें जाकर स्रान करे। वहाँ दानका फल प्राप्त होता है। नर्मदेश्वर नामक तीर्थ सबसे गोता लगाने मात्रसे मनुष्य सब पापोंसे छुटकारा पा जाता श्रेष्ठ है। ऐसा तीर्थ आजतक न हुआ है न होगा। वहाँ है। महाराज ! जो उस तीर्थमें चान्द्रायण व्रत करता है, स्नान करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त होता है तथा वह सब पापोंसे शुद्ध होकर सोमलोकमें जाता है। मनुष्य इस पृथ्वीपर सर्वत्र प्रसिद्ध राजाके रूपमें जन्म सोमतीर्थसे स्तम्भतीर्थमें जाकर स्नान करे । ऐसा करनेसे ग्रहण करता है। वह सब प्रकारके शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न मनुष्य सोमलोकमें प्रतिष्ठित होता है। इसके बाद तथा समस्त व्याधियोंसे रहित होता है। नर्मदाके उत्तर विष्णुतीर्थकी यात्रा करे । वह बहुत ही उत्तम तीर्थ है और तटपर एक बहुत ही सुन्दर तथा रमणीय तीर्थ है, उसका योधनीपुरके नामसे विख्यात है। वहाँ भगवान् वासुदेवने नाम है-आदित्यायतन । उसे साक्षात् भगवान् शङ्करने करोड़ों असुरोंके साथ युद्ध किया था। युद्धभूमिमें उस प्रकट किया है। वहाँ स्नान करके यथाशक्ति दिया हुआ तीर्थकी उत्पत्ति हुई है। वहाँ स्रान करनेसे भगवान् विष्णु दान उस तीर्थक प्रभावसे अक्षय हो जाता है। दरिद्र, प्रसन्न होते हैं। जो वहाँ एक दिन-रात उपवास करता है, रोगी तथा पापी मनुष्य भी वहाँ स्रान करके सब पापोंसे उसका ब्रह्महत्या-जैसा पाप भी दूर हो जाता है। तत्पश्चात् मुक्त होते और भगवान् सूर्यके लोकमें जाते हैं। वहाँसे तापसेश्वर नामक उत्तम तीर्थमें जाना चाहिये; वह मासेश्वर तीर्थमें जाकर स्रान करना चाहिये। वहाँके अमोहक तीर्थके नामसे विख्यात है। वहाँ पितरोका जलमें डुबकी लगाने मात्रसे स्वर्गलोककी प्राप्ति होती है तर्पण तथा पूर्णिमा और अमावास्याको विधिपूर्वक श्राद्ध तथा जबतक चौदह इन्द्रोंकी आयु व्यतीत नहीं होती, करना चाहिये। वहाँ स्रानके पश्चात् पितरोंको पिण्डदान तबतक मनुष्य स्वर्गलोकमें निवास करता है। तदनन्तर करना आवश्यक है। उस तीर्थमे जलके भीतर हाथीके मासेश्वर तीर्थके पास ही जो नागेश्वर नामका तपोवन है, समान आकारवाली बड़ी-बड़ी चट्टानें हैं। उनके ऊपर उसमें निवास करे और वहाँ एकाग्रचित्त हो नान करके विशेषतः वैशाख मासमें पिण्डदान करना चाहिये। ऐसा पवित्र हो जाय। जो ऐसा करता है, वह अनन्त कालतक करनेसे जबतक यह पृथ्वी कायम रहती है, तबतक नाग-कन्याओंके साथ विहार करता है। तत्पश्चात् पितरोंको पूर्ण तृप्ति बनी रहती है। महाराज ! वहाँसे कुबेरभवन नामक तीर्थकी यात्रा करे। वहाँसे कालेश्वर सिद्धेश्वर नामक उत्तम तीर्थकी यात्रा करे। वहाँ स्रान नामक उत्तम तीर्थमें जाय, जहाँ महादेवजीने कुबेरको वर करनेसे मनुष्य गणेशजीके निकट जाता है। उस तीर्थमे देकर संतुष्ट किया था। महाराज ! वहाँ स्नान करनेसे जहाँ जनार्दन नामसे प्रसिद्ध लिङ्ग है, वहाँ स्नान करनेसे सब प्रकारकी सम्पत्ति प्राप्त होती है। उसके बाद पश्चिम विष्णुलोकमें प्रतिष्ठा होती है। सिद्धेश्वरमें अन्धोन तीर्थके दिशाको ओर मारुतालय नामक उत्तम तीर्थकी यात्रा करे समीप स्नान, दान, ब्राह्मण-भोजन तथा पिण्डदान करना
और वहाँ स्रान करके पवित्र एवं एकाग्रचित्त होकर उचित है। उसके आधे योजनके भीतर जिसकी मृत्यु बुद्धिमान् पुरुष यथाशक्ति सुवर्ण और अनका दान करे। होती है, उसे मुक्ति प्राप्त होती है। अन्धोनमें विधिपूर्वक ऐसा करनेसे वह पुष्पक विमानके द्वारा वायुलोकमें जाता पिण्डदान देनेसे पितरोंको तबतक तृप्ति बनी रहती है, है। युधिष्ठिर ! माघ मासमें यमतीर्थकी यात्रा करनी जबतक चन्द्रमा और सूर्य की सत्ता है। उत्तरायण प्राप्त
१. यह सोमतीर्थ दूसरा है। पहले जिसका वर्णन आया है, वह इससे भिन्न है।