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. अर्थयस्व बीकेशं यदीच्छमि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्यपुराण
करनेवाला तीर्थ है। इसके बाद स्वर्गबिन्दु नामसे प्रसिद्ध आहारपर भी संयम रखता है, वह उस तीर्थके प्रभावसे तीर्थमें जाना उचित है । वहाँ स्रान करनेसे मनुष्यको कभी ब्रह्महत्यासे मुक्त हो जाता है। जो सागरेश्वरका दर्शन दुर्गति नहीं देखनी पड़ती । वहाँसे भारभूत नामक तीर्थको करता है, उसे समस्त तीर्थोंमें स्नान करनेका फल मिल यात्रा करे और वहाँ पहुँचकर उपवासपूर्वक भगवान् जाता है। केशिनी-तीर्थसे एक योजनके भीतर समुद्रके विरूपाक्षकी पूजा करे। ऐसा करनेसे वह रुद्रलोकमें 8वरमें साक्षात् भगवान् शिव विराजमान हैं। उनको सम्मानित होता है। राजन् ! जो उस तीर्थ उपवास करता देखनेसे सब तीर्थोके दर्शनका फल प्राप्त हो जाता है तथा है, वह पुनः गर्भ में नहीं आता। वहाँसे परम उत्तम अटवी दर्शन करनेवाला पुरुष सब पापोंसे मुक्त हो रुद्रलोकमें तीर्थमें जाय । वहाँ स्रान करके मनुष्य इन्द्रका आधा जाता है। महाराज ! अमरकण्टकसे लेकर नर्मदा और सिंहासन प्राप्त करता है। तदनन्तर, सब पापोंका नाश समुद्रके सङ्गमतक जितनी दूरी है, उसके भीतर दस करोड़ करनेवाले शङ्गतीर्थकी यात्रा करे। वहाँ सान करनेमात्रसे तीर्थं विद्यमान है। एक तीर्थसे दूसरे तीर्थको जानेके जो निश्चय ही गणेशपदकी प्राप्ति होती है। पश्चिम-समुद्रके मार्ग हैं, उनका करोड़ों ऋषियोंने सेवन किया है। साथ जो नर्मदाका सङ्गम है, वह तो मुक्तिका दरवाजा ही अग्निहोत्री, दिव्यज्ञान-सम्पत्र तथा ज्ञानी-सब प्रकारके खोल देता है। वहाँ देवता, गन्धर्व, ऋषि, सिद्ध और मनुष्योंने तीर्थयात्राएँ की है। इससे तीर्थयात्रा मनोवाञ्छित चारण तीनों सन्ध्याओंके समय उपस्थित होकर फलको देनेवाली मानी गयी है। पाण्डुनन्दन ! जो पुरुष देवताओंके स्वामी भगवान् विमलेश्वरकी आराधना करते प्रतिदिन भक्तिपूर्वक इस अध्यायका पाठ या श्रवण करता हैं। विमलेश्वरसे बढ़कर दूसरा कोई तीर्थ न हुआ है न है, वह समस्त तीर्थोंमें स्नानके पुण्यका भागी होता है। होगा। जो लोग वहाँ उपवास करके विमलेश्वरका दर्शन साथ ही नर्मदा उसके ऊपर सदा प्रसन्न रहती है। इतना ही करते हैं, वे सब पापोंसे शुद्ध हो रुद्रलोकमें जाते हैं। नहीं, भगवान् रुद्र तथा महामुनि मार्कण्डेयजी भी उसके
राजेन्द्र ! वहाँसे परम उत्तम केशिनी-तीर्थकी यात्रा ऊपर प्रसन्न होते हैं। जो तीनों सन्ध्याओंके समय इस करनी चाहिये। जो मनुष्य वहाँ स्रान करके एक रात प्रसङ्गका पाठ करता है, उसे कभी नरकका दर्शन नहीं उपवास करता है तथा मन और इन्द्रियोंको वशमें करके होता तथा वह किसी कुत्सित योनिमें भी नहीं पड़ता।
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विविध तीर्थोकी महिमाका वर्णन
युधिष्ठिर बोले-नारदजी ! महर्षि वसिष्ठके वहाँ साक्षात् अग्निदेव नित्य निवास करते हैं। उस श्रेष्ठ बताये हुए अन्यान्य तीर्थोंका, जिनका नाम श्रवण करनेसे तीर्थमें शुद्ध एवं एकाग्रचित्त होकर स्रान करनेसे मानव ही पाप नष्ट हो जाते हैं, मुझसे वर्णन कीजिये। नारदजीने अग्निष्टोम और अतिरात्र यज्ञका फल प्राप्त करता है। कहा-'धर्मज्ञ युधिष्ठिर ! हिमालयके पुत्र अर्बुद उसके बाद सरस्वती और समुद्रके सङ्गममें जाकर स्रान पर्वतकी यात्रा करनी चाहिये, जहाँ पूर्वकालमें पृथ्वीमें करनेसे मनुष्य सहस्र गोदानका फल पाता और स्वर्गछेद था। वहाँ महर्षि वसिष्ठका आश्रम है, जो तीनों लोकमें प्रतिष्ठित होता है। जो वरुण देवताके उस तीर्थमें लोकोंमें विख्यात है। वहाँ एक रात निवास करनेसे स्नान करके एकाग्रचित्त हो तीन राततक वहाँ निवास सहस्र गोदानका फल मिलता है। ब्रह्मचर्यके पालन- तथा देवता और पितरोंका तर्पण करता है, वह चन्द्रमाके पूर्वक पिङ्गातीर्थमें आचमन करनेसे कपिला जातिकी सौ समान कान्तिमान् होता और अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त गौओके दानका फल प्राप्त होता है। तत्पश्चात् करता है। प्रभासक्षेत्रमें जाना चाहिये। वह विश्वविख्यात तीर्थ है। भरतश्रेष्ठ ! वहाँसे वरदान नामक तीर्थकी यात्रा