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भूमिखण्ड ]
• कुञ्जल पक्षी और उसके पुत्र कपिछलका संवाद .
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दुःख और संताप होता है। जो पापात्मा एक बार भी उस प्रश्नका समाधान कीजिये। मुने ! सोते समय मैंने एक तरहके फूलोंसे देवताओंकी पूजा करता है, उसे वे निश्चय दारुण स्वप्न देखा है, मानो किसीने मेरे सामने आकर ही दुःख देते है।
- कहा है-'अव्यक्तस्वरूप भगवान् हृषीकेश संसारमे - भगवान् श्रीविष्णुने पापी विहुण्डके पराक्रम और जायेंगे-वहाँ जन्म: ग्रहण करेंगे। महामते! दुःसाहसपर दृष्टि डालकर देवर्षि नारदको उसके पास ऐसा स्वप्र देखनेका क्या कारण है? आप ज्ञानवानोंमें भेजा। उस समय वह दुरात्मा दानव कामोदाके पास जा श्रेष्ठ हैं, कृपया बताइये। रहा था। नारदजी उसके समीप जाकर हंसते हुए बोले- नारदजीने कहा-भद्रे ! मनुष्य जो स्वप्र देखते 'दैत्यराज ! कहाँ जा रहे हो? इस समय तुम बड़े हैं, वह तीन प्रकारका होता है-वातिक (वातज); उतावले और व्यग्र जान पड़ते हो।' विहुण्डने ब्रह्मकुमार पैत्तिक (पित्तज) और कफज । सुन्दरी ! देवताओंको न नारदजीको हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा- नींद आती है न स्वप्न । मनुष्य शुभ और अशुभ नाना "द्विजश्रेष्ठ ! मैं कामोद पुष्पके लिये चला हूँ।' यह प्रकारके स्वप्न देखता है। वे सभी स्वप्न कर्मसे प्रेरित सुनकर नारदजीने कहा-दैत्य ! तुम कामोद नामक होकर दृष्टिपथमें आते हैं। पर्वत तथा ऊँचे-नीचे नाना श्रेष्ठ नगरमे कदापि न जाना; क्योंकि वहाँ सम्पूर्ण प्रकारके दुर्गम स्थानोंका दर्शन होना वातिक स्वप्न है। देवताओंको विजय दिलानेवाले परम बुद्धिमान् भगवान् अब कफाधिक्यके कारण दिखायी देनेवाले स्वप्न बता श्रीविष्णु रहते हैं। दानव ! जिस उपायसे कामोद नामक रहा हूँ। जल, नदी, तालाब तथा पानीके विभिन्न फूल तुम्हारे हाथ लग सकते हैं, वह मैं बता रहा हूँ। वे स्थान-ये सब कफज स्वपके अन्तर्गत है। देवि ! दिव्य पुष्प गङ्गाजीके जलमें गिरेंगे और प्रवाहके पावन अग्नि तथा बहुत-से उत्तम सुवर्णका जो दर्शन होता है, जलके साथ बहते हुए तुम्हारे पास आ जायेंगे। वे उसे पैत्तिक स्वप्न समझो। अब मैं भावी (भविष्यमें तुरंत देखनेमें बड़े सुन्दर होंगे। तुम उन्हें पानीसे निकाल फल देनेवाले) स्वप्रका वर्णन करता है-प्रातःकाल जो लाना। इस प्रकार उन फूलोंका संग्रह करके अपना कर्मप्रेरित शुभ या अशुभ स्वप्न दिखायी देता है, वह मनोरथ सिद्ध करो।'
क्रमशः लाभ और हानिको व्यक्त करनेवाला है। दानवश्रेष्ठ विहुण्डसे यह कहकर धर्मात्मा नारदजी सुन्दरी ! इस प्रकार मैंने तुमसे स्वप्रकी अवस्थाएँ कामोद नगरकी ओर चल दिये। जाते-जाते उन्हें वह बतायीं। भगवान् श्रीविष्णुके सम्बन्धमें यह बात अवश्य दिव्य नगर दिखायी दिया। उस नगरमें प्रवेश करके वे होनेवाली है, इसी कारण तुम्हें दुःस्वप्न दिखायी दिया है। कामोदाके घर गये और उससे मिले। कामोदाने स्वागत कामोदा बोली-नारदजी ! सम्पूर्ण देवता भी आदिके द्वारा मुनिको प्रसत्र किया और मीठे वचनोंमें जिनका अन्त नहीं जानते, उन्हें भी जिनके स्वरूपका ज्ञान कुशलसमाचार पूछा । द्विजश्रेष्ठ नारदजीने कामोदाके दिये नहीं है, जिनमें सम्पूर्ण विश्वका लय होता है, जिन्हें हुए दिव्य सिंहासनपर बैठकर उससे पूछा-'भगवान् विश्वात्मा कहते हैं और सारा संसार जिनकी मायासे मुग्ध श्रीविष्णुके तेजसे प्रकट हुई कल्याणमयी देवी! हो रहा है, वे मेरे स्वामी जगदीश्वर श्रीविष्णु संसारमें क्यों तुम यहाँ सुखसे रहती हो न? किसी तरहका कष्ट तो जन्म ले रहे हैं? नहीं है?' -*
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नारदजीने कहा-देवि ! इसका कारण सुनो; कामोदा बोली-महाभाग ! मैं आप-जैसे महर्षि भृगुके शापसे भगवान् संसारमें अवतार लेनेवाले महात्माओं तथा भगवान् श्रीविष्णुकी कृपासे सुखपूर्वक हैं। [यही बात बतानेके लिये उन्होंने मुझे तुम्हारे पास जीवन व्यतीत कर रही हूँ। इस समय आपसे कुछ भेजा है। इसीलिये तुम्हें दुःस्वप्रका दर्शन हुआ है। प्रश्नोत्तर करनेका कारण उपस्थित हुआ है; आप मेरे बेटा ! यों कहकर नारदजी ब्रह्मलोकको चले गये।