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भूमिखण्ड]
• कुचलका च्यवनको अपने पूर्व-जीवनका वृत्तान्त बताकर ज्ञानका उपदेश करना.
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भूमिखण्ड । अब भूमिखण्डके माहात्म्यका वर्णन आरम्भ साधक इस पुण्यमय पुराणका श्रवण करें। जिसने पुण्यके करता हूँ। जो श्रेष्ठ मनुष्य इस खण्डके एक श्लोकका भी साधनभूत इस पद्मपुराणका श्रवण किया, उसने चतुर्वर्गक श्रवण करता है, उसके एक दिनका पाप नष्ट हो जाता है। समस्त साधनोंको सिद्ध कर लिया। इसका श्रवण जो श्रेष्ठ बुद्धिसे युक्त पुरुष इसके एक अध्यायको सुनता करनेवाले मनुष्यके ऊपर कभी भारी वित्रका आक्रमण है, उसे पर्वके अवसरपर ब्राह्मणोंको एक हजार गोदान नहीं होता। धर्मपरायण पुरुषोंको पूरी पुराणसंहिताका देनेका फल मिलता है। साथ ही उसपर भगवान् श्रीविष्णु श्रवण करना चाहिये। इससे धर्म, अर्थ, काम और भी प्रसन्न होते हैं। जो इस पद्मपुराणका प्रतिदिन पाठ मोक्षकी भी सिद्धि होती है। भूमिखण्डका श्रवण करके करता है, उसपर कलियुगमें कभी विनोका आक्रमण नहीं मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है तथा रोग, दुःख और होगा। ब्राह्मणो ! अश्वमेध यज्ञका जो फल बतलाया शत्रुओके भयसे भी छुटकारा पाकर सदा सुखका अनुभव जाता है, इस पद्मपुराणके पाठसे उसी फलकी प्राप्ति होती करता है। पदापुराणमें पहला सृष्टिखण्ड, दूसरा है। पुण्यमय अश्वमेध यज्ञ कलियुगमें नहीं होता, अतः भूमिखण्ड, तीसरा स्वर्गखण्ड, चौथा पातालखण्ड और उस समय यह पुराण ही अवमेधके समान फल देनेवाला पाँचवाँ सब पापोंका नाश करनेवाला उत्तरखण्ड है।* है। कलियुगमें मनुष्य प्रायः पापी होते हैं, अतः उन्हें ब्राह्मणो! इन पाँचों खण्डोंको सुननेका अवसर बड़े नरकके समुद्र में गिरना पड़ता है। इसलिये उनको चाहिये भाग्यसे प्राप्त होता है। सुननेपर ये मोक्ष प्रदान करते कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन चारों पुरुषार्थकि है-इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।
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॥भूमिखण्ड समाप्त ।
*प्रथम सृष्टिखण्ड हि भूमिखण्ड द्वितीयकम् । तृतीयं स्वर्गखण्डं च पातालं च चतुर्थकम् ॥ (पशम चोत्तर खण्डं सर्वपापप्रणाशनम् । .........
...... ॥ (१२५।४८-४९)