________________
२६४
. अयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पयपुराण
फूलोकी वर्षा कर रहे थे।
तीखे बाणसे शूकरपर प्रहार किया। उसकी छाती छिद तदनन्तर वे समस्त शूर, क्रूर और भयंकर व्याध गयी और वह राजाके हाथसे घायल होकर पृथ्वीपर गिर हाथोंमें पाश लिये उस शूकरीकी ओर चले। शूकरी पड़ा। गिरते ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गये। पुत्रके अपने चार बच्चोंको घेरकर खड़ी थी। उस महासमरमें शोक और मोहसे अत्यन्त व्याकुल होकर शूकरी उसकी कुटुम्बसहित अपने पतिको मारा गया देख वह शोकसे लाशपर गिर पड़ी; फिर संभलकर उसने अपने थुथूनसे मोहित होकर पुत्रोंसे बोली-'बच्चो ! जबतक मैं यहाँ ऐसा प्रहार किया, जिससे अनेकों शूरवीर धरतीपर सो खड़ी हैं, तबतक शीघ्र गतिसे अन्यत्र भाग जाओ।' यह गये। कितने ही व्याध धराशायी हुए, कितने ही भाग सुनकर उनमेंसे ज्येष्ठ पुत्रने कहा-'मैं जीवनके लोभसे गये और कितने ही कालके गालमें चले गये। शूकरी अपनी माताको संकटमें छोड़कर चला जाऊँ, यह कैसे अपने दाढ़ोंके प्रहारसे राजाकी विशाल सेनाको हो सकता है। माँ! यदि मैं ऐसा करूँ तो मेरे जीवनको खदेड़ने लगी। धिक्कार है। मैं अपने पिताके वैरका बदला लूँगा। युद्धमें यह देख काशीनरेश देवराजकी पुत्री महारानी शत्रुको परास्त करूँगा। तुम मेरे तीनों छोटे भाइयोंको सुदेवाने अपने पतिसे कहा-'प्राणनाथ ! इस शूकरीने लेकर पर्वतकी कन्दरामें चली जाओ। जो माता-पिताको आपकी बहुत बड़ी सेनाका विध्वंस कर डाला; फिर भी विपत्तिमें छोड़कर जाता है, वह पापात्मा है। उसे आप इसकी उपेक्षा क्यों कर रहे हैं? मुझे इसका कारण कोटि-कोटि कोड़ोंसे भरे हुए नरकमें गिरना पड़ता है।' बताइये।' महाराजने उत्तर दिया-'प्रिये ! यह स्त्री है। बेटेकी बात सुनकर शूकरी दुःखसे आतुर होकर स्त्रीके वधसे देवताओंने बहुत बड़ा पाप बताया है; बोली-'आह, मेरे बच्चे ! मैं महापापिनी तुझे छोड़कर इसीलिये मैं इस शूकरीको न तो स्वयं मारता हूँ और न कैसे जा सकती है। मेरे ये तीन पुत्र भले ही चले जायें। किसी दूसरेको ही इसे मारनेके लिये भेज रहा हूँ। इसके
ऐसा निश्चय करके उन दोनों माँ-बेटेने शेष तीन वधके कारण होनेवाले पापसे मुझे भय लगता है।' यों बच्चोंको आगे कर लिया और व्याधोंके देखते-देखते वे कहकर महाबुद्धिमान् राजा चुप हो गये। व्याधोंमें एकका विकट मार्गसे जाने लगे। समस्त शुकर अपने तेज और नाम भार्गव था; उसने देखा-शूकरी समस्त वीरोंका बलसे जोशमें आकर वारंवार गरज रहे थे। इसी बीचमें संहार कर रही है, बड़े-बड़े सूरमा भी उसके सामने टिक वे शूरवीर व्याध वेगसे चलकर वहाँ आ पहुँचे। शूकरी नहीं पाते हैं। यह देख व्याधने बड़े वेगसे एक पैने
और शूकर-दोनों माँ-बेटे व्याधोका मार्ग रोककर खड़े बाणका प्रहार किया और उस शूकरीको बाँध डाला। हो गये। व्याध तलवार, बाण और धनुष लिये अधिक शूकरीने भी झपटकर व्याधको पछाड़ दिया। व्याधने समीप आ गये और तीखे तोमर, चक्र तथा मुसलोंका गिरते-गिरते शूकरीपर तेज धारवाली तलवारका भरपूर प्रहार करने लगे। ज्येष्ठ पुत्र माताको पीछे करके हाथ जमाया। वह बुरी तरहसे घायल होकर गिर पड़ी व्याधोंके साथ युद्ध करने लगा। कितनोंको दाढ़ोंसे और धीरे-धीरे साँस लेती हुई मूर्च्छित हो गयी। कुचलकर उसने मार डाला । कितनोंको थूथुनोंको चोटसे रानी सुदेवाने उस पुत्रवत्सला शूकरीको जब धराशायी कर दिया और कितनोंको खुरोंके अप्रभागसे धरतीपर गिरकर बेहोश होते और ऊपरको श्वास लेते मारकर मौतके घाट उतार दिया। बहुत-से शूरवीर देखा तो उनका हृदय करुणासे भर आया। वे उस रणभूमिमें ढेर हो गये। राजा इक्ष्वाकु संग्राममें सूअरको दुःखिनौके पास गयीं और ठंडे जलसे उसका मुंह धोया, युद्ध करते देखकर और उसे पिताके समान ही शूरवीर फिर समस्त शरीरपर पानी डाला। इससे शूकरीको कुछ जानकर स्वयं उसके सामने आये। महातेजस्वी, प्रतापी होश हुआ। उसने रानीको पवित्र एवं शीतल जलसे मनुकुमारके हाथमें धनुष-बाण थे। उन्होंने अर्धचन्द्राकार अपने शरीरका अभिषेक करते देख मनुष्योंकी बोलीमें