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पातकोंकी शुद्धि करनेवाला है। मनुष्यको ध्यानयुक्त होकर अनन्यचित्तसे इसका जप और चिन्तन करना चाहिये । प्रतिदिन इसका जप करनेवाले पुरुषको नित्यप्रति गङ्गास्नानका फल मिलता है। इसलिये सुस्थिर और एकाग्रचित होकर इसका जप करना उचित है।*
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अवयस्य इषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
शतनाम स्तोत्रको पढ़ता है, वह परमगतिको प्राप्त होता है। बेटा! माघ स्नान करनेवाला पुरुष यदि भगवान्की पूजा करके उनका ध्यान करता और इस स्तोत्रका जप अथवा श्रवण करता है तो वह मदिरा पान आदिसे होनेवाले पापोंका भी त्याग करके परमपदको प्राप्त होता है। बिना किसी विघ्नके उसे विष्णुपदकी प्राप्ति हो जाती है जो मनुष्य श्राद्ध कालमें भोजन करनेवाले ब्राह्मणोंके सामने इस पापनाशक शतनाम स्तोत्रका पाठ करता है, उसके पितर संतुष्ट होकर परमगतिको प्राप्त होते हैं। यह स्तोत्र सुख तथा मोक्ष प्रदान करनेवाला है। निश्चय ही इसका जप करना चाहिये। जपकर्ता मनुष्य भगवान् श्रीविष्णुकी कृपासे पूर्ण सिद्ध हो जाता है—उसे सब प्रकारकी सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
सुखकी इच्छा रखनेवाले पुरुषको चाहिये कि जहाँ शालग्रामकी शिला तथा द्वारकाकी शिला (गोमतीचक्र) हों, उन दोनों शिलाओंके समीप पूर्वोक्त स्तोत्रका जप करे। ऐसा करनेसे वह संसारमें नाना प्रकारके सुख भोगकर अन्तमें अपने सहित एक सौ एक पीढ़ीका उद्धार कर देता है। जो कार्तिकमें प्रतिदिन प्रातः स्नान करके मधुसूदनकी पूजा करता और भगवान् के सामने
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इस प्रकार
शतनामस्तोत्रका पाठ मूल नमाम्यहं हषीकेशं केशवं जयन्तं विजय कृष्णमनन्तं अनर्थ स्वपहर्तार नारसिंहं श्रीराम माधवं मोक्षं हरि मुरारिं गोविन्दं पद्मनाभं अच्युत सबलं चन्द्रवक्त्रं मुकुन्द चापि वैकुण्ठमेकरूपं
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क्षमारूपं
गोप्रियं गोहित
य यज्ञाङ्गं
वेदर्श वेदरूपं तं विद्यावासं च वाराहं
पुष्करं पुष्कराक्षे सर्वसौख्यं महासौख्यं सांख्ये च
असुरारि
लोकनार्थ पद्महस्तं
गदाधरम् । गुहावासं
महाजनम् ॥
वृन्दानार्थ
गोगणाश्रयम् ॥
बृहत्कार्य परात्मानं पराधी
पापनाशनम् । गोपीनार्थ कार्यमानुषम् । नमामि
कपिलं
नित्यं
मनोवाक्कायकर्मभिः ॥
नानी शतेनापि तु पुण्यकर्ता यः स्तौति कृष्णं मनसा स्थिरेण स याति लोकं मधुसूदनस्य विहाय दोषानिह पुण्यभूतः ॥ नाम्रां शतं महापुण्यं सर्वपातकशोधनम् । अनन्यमनसा नित्यमेव नरः
पुण्य गङ्गास्नानफलं लभेत् । तस्मात्तु
ध्यायेज्जपेद्धधानसमन्वितः ॥ समाहितमना जपेत् ॥
सुस्थिरो भूत्वा
(८७ १९ – २५)
पावनं
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वामनं
मधुसूदनम् । सूदनं
तथा विष्णुं श्रियः प्रियम् । श्रीपति
जनार्दनम् । सर्वज्ञ
कवि
प्रजापतिम् आनन्द
व्याप्तपरावरम् । योगेश्वरं
धुवम्। वासुदेवं यशवर्धनम् । यज्ञस्यापि सुरेश्वरम् । प्रत्यक्ष धरणीधरम् । प्रद्युनं पुरुषोत्तमम् | योगरूपं
सर्वदैत्यानां
पुण्यं
श्रीद
विश्वेश्वरं
श्रीधरं
सर्ववेत्तारं
ज्ञानसम्पन्न
जगद्योनि
महादेवं
7812 च कामपाले
सुभोक्तार
महास
च
महाशानं
सर्ववास
गोपस
निखिल
सर्वेशं
विश्वात्मानं
श्रीनिवास
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
ज्ञानद
ब्रह्मरूपं
ब्रह्मण्यं
पुण्यवास
गोपाल
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अफ
शङ्खपाणि
व्यासध्यात
योगीशमजितं
नारायणमनामयम् ॥
सुरार्चितम् ॥
महोदयम् ॥
सर्वदायकम् ॥
197
ज्ञानदायकम् ॥
महेश्वरम् ॥ ब्राह्मणप्रियम् ॥
वेदवेदाङ्गपारगम् ॥
421
पुरातनम् ॥
महेश्वरम् ॥
प्रियम् ॥
67
314 Y
अपन