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भूमिखण्ड ]
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कुञ्जलका अपने पुत्र
श्रीविष्णुका यजन करते हैं। यज्ञोंमें सब प्रकारके दान दिये जाते हैं। उत्तम यज्ञोंमें पहले अन्न और फिर वस्त्र एवं ताम्बूलका दान किया जाता है। इसके बाद सुवर्णदान, भूमिदान और गोदानकी बात कही जाती है। इस प्रकार उत्तम यज्ञ करके राज़ालोग अपने शुभ कर्मो के फलस्वरूप विष्णुलोकमें जाते हैं। दानसे तृप्तिलाभ करते और संतुष्ट रहते हैं। अतः राजेन्द्र ! आप भी न्यायोपार्जित धनका दान कीजिये। दानसे ज्ञान और ज्ञानसे आपको सिद्धि प्राप्त होगी
जो मनुष्य इस उत्तम और पवित्र आख्यानका श्रवण करेगा, वह सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोकमें जायगा ।
सुबाहुने पूछा- ब्रह्मन् ! मनुष्य किस दुष्कर्मसे नरक में पड़ते हैं और किस शुभकर्मके प्रभावसे स्वर्गमें जाते हैं? यह बात मुझे बताइये।
जैमिनिने कहा- जो द्विज लोभसे मोहित हो पावन ब्राह्मणत्वका परित्याग करके कुकर्मसे जीविका चलाते हैं, वे नरकगामी होते हैं। जो नास्तिक हैं, जिन्होंने धर्मकी मर्यादा भङ्ग की है; जो काम भोगके लिये उत्कण्ठित, दाम्भिक और कृतघ्न हैं; जो ब्राह्मणोंको धन देनेकी प्रतिज्ञा करके भी नहीं देते, चुगली खाते अभिमान रखते और झूठ बोलते हैं; जिनकी बातें परस्पर विरुद्ध होती हैं; जो दूसरोंका धन हड़प लेते, दूसरोंपर कलङ्क लगानेके लिये उत्सुक रहते और परायी सम्पत्ति देखकर जलते हैं, वे नरकमें जाते हैं। जो मनुष्य सदा प्राणियों के प्राण लेनेमें लगे रहते, परायी निन्दामें प्रवृत्त होते; कुएँ, बगीचे, पोखरे और पौसलेको दूषित करते; सरोवरोंको नष्ट-भ्रष्ट करते तथा शिशुओं, भृत्यों और अतिथियोंको भोजन दिये बिना ही स्वयं भोजन कर लेते हैं; जिन्होंने पितृयाग (श्राद्ध) और देवयाग (यज्ञ) का त्याग कर दिया है, जो संन्यास तथा अपने रहनेके आश्रमको कलङ्कित करते हैं और मित्रोंपर लाच्छन लगाते हैं, वे सब-के-सब नरकगामी होते हैं।
जो प्रयाज नामक यज्ञों, शुद्ध चित्तवाली कन्याओं साधु पुरुषों और गुरुजनोंको दूषित करते हैं; जो काठ, कील, शूल अथवा पत्थर गाड़कर रास्ता रोकते हैं,
विज्वलको उपदेश •
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कामसे पीड़ित रहते और सब वर्णोंकि यहाँ भोजन कर लेते हैं तथा जो भोजनके लिये द्वारपर आये हुए जीविकाहीन ब्राह्मणोंकी अवहेलना करते हैं, वे नरकों में पड़ते हैं। जो दूसरोंके खेत जीविका, घर और प्रेमको नष्ट करते हैं; जो हथियार बनाते और धनुष-बाणका विक्रय करते हैं, जो मूह मानव अनाथ, वैष्णव, दीन, रोगातुर और वृद्ध पुरुषोंपर दया नहीं करते तथा जो पहले कोई नियम लेकर फिर संयमहीन होनेके कारण चञ्चलतावश उसका परित्याग कर देते हैं, वे नरकगामी होते हैं।
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अब मैं स्वर्गगामी पुरुषोंका वर्णन करूंगा। जो मनुष्य सत्य, तपस्या, ज्ञान, ध्यान तथा स्वाध्यायके द्वारा धर्मका अनुसरण करते हैं, वे स्वर्गगामी होते हैं। जो प्रतिदिन हवन करते तथा भगवान्के ध्यान और देवताओंके पूजनमें संलग्न रहते हैं, वे महात्मा स्वर्गलोकके अतिथि होते हैं जो बाहर भीतरसे पवित्र रहते, पवित्र स्थानमें निवास करते, भगवान् वासुदेवके भजनमें लगे रहते तथा भक्तिपूर्वक श्रीविष्णुकी शरण में जाते हैं; जो सदा आदरपूर्वक माता-पिताकी सेवा करते और दिनमें नहीं सोते; जो सब प्रकारकी हिंसासे दूर रहते, साधुओंका सङ्ग करते और सबके हितमें संलग्र रहते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं जो गुरुजनोंकी सेवामें संलग्न, बड़ोंको आदर देनेवाले, दान न लेनेवाले, सहस्रों मनुष्योंको भोजन परोसनेवाले, सहस्रों मुद्राओंका दान करनेवाले तथा सहस्रों मनुष्योंको दान देनेवाले हैं, वे पुरुष स्वर्गलोकको जाते हैं। जो युवावस्थामें भी क्षमाशील और जितेन्द्रिय हैं; जिनमें वीरता भरी है; जो सुवर्ण, गौ, भूमि, अन और वस्त्रका दान करते हैं; जो अपनेसे द्वेष रखनेवालोंके भी दोष कभी नहीं कहते, बल्कि उनके गुणोंका ही वर्णन करते हैं; जो विज्ञ पुरुषोंको देखकर प्रसन्न होते, दान देकर प्रिय वचन बोलते तथा दानके फलकी इच्छाका परित्याग कर देते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो पुरुष प्रवृत्ति-मार्गमें तथा निवृत्तिमार्गमें भी मुनियों और शास्त्रोके कथनानुसार ही आचरण करते हैं, वे स्वर्गलोकके अतिथि होते हैं।
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