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• अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
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[संक्षिप्त पापुराण
रखे। पुत्रके सामने कदापि उसके गुणोंका वर्णन न करे। राजा थे। उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम पद्मावती उसे राहपर लानेके लिये कड़ी फटकार सुनाये तथा इस था। वह सत्य-धर्ममें तत्पर तथा स्त्री-समुचित गुणोंसे प्रकार उसे साधे, जिससे वह विद्या और गुणोंमें सदा ही युक्त होनेके कारण दूसरी लक्ष्मीके समान थी। मथुराके निपुण होता जाय। जब माता अपनी कन्याको, सास राजा उग्रसेनने उस मनोहर नेत्रोंवाली पद्मावतीसे विवाह अपनी पुत्र-वधूको और गुरु अपने शिष्योंको ताड़ना देता किया। उसके नेह और प्रेमसे मथुरानरेश मुग्ध हो गये। है, तभी वे सीधे होते हैं। इसी प्रकार पति अपनी पत्नोको पद्मावतीको वे प्राणोंके समान प्यार करने लगे। उसे और राजा अपने मन्त्रीको दोषोंके लिये कड़ी फटकार साथ लिये विना भोजनतक नहीं करते थे। उसके साथ सुनायें। शिक्षा-बुद्धिसे ताड़न और पालन करनेपर क्रीड़ा-विलासमें ही राजाका समय बीतने लगा। सन्तान सद्गुणोद्वारा प्रसिद्धि लाभ करती है। पद्यावतीके बिना उन्हें एक क्षण भी चैन नहीं पड़ता था। ... शिवशर्मा उत्तम ब्राह्मण थे। उनके साथ रहनेपर भी इस प्रकार उस दम्पतिमें परस्पर बड़ा प्रेम था। इस कन्याको आपने घरमें निरङ्कश-स्वछन्द बना रखा कुछ कालके पश्चात् विदर्भनरेश सत्यकेतुने अपनी था। इसीसे उच्छृङ्खल हो जानेके कारण यह नष्ट हुई है। पुत्री पद्मावतीको स्मरण किया। उसकी माता उसे न पुत्री अपने पिताके घरमें रहकर जो पाप करती है. उसका देखनेके कारण बहुत दुःखी थी। उन्होंने मथुरानरेश फल माता-पिताको भी भोगना पड़ता है। इसलिये समर्थ उग्रसेनके पास अपने दूत भेजे। दूतोंने वहाँ जाकर पुत्रीको अपने घरमें नहीं रखना चाहिये। जिससे उसका आदरपूर्वक राजासे कहा-'महाराज ! विदर्भनरेश ब्याह किया गया है, उसीके घरमें उसका पालन-पोषण सत्यकेतुने अपनी कुशल कहलायी है और आपका होना उचित है। वहाँ रहकर वह भक्तिपूर्वक जो उत्तम कुशल-समाचार वे पूछ रहे हैं। यदि उनका प्रेम और गुण सीखती और पतिकी सेवा करती है, उससे कुलकी स्नेहपूर्ण अनुरोध आपको स्वीकार हो तो राजकुमारी कीर्ति बढ़ती है और पिता भी सुखपूर्वक जीवन व्यतीत पद्मावतीको उनके यहाँ भेजनेकी व्यवस्था कीजिये। वे करता है। ससुरालमें रहकर यदि वह पाप करती है तो अपनी पुत्रीको देखना चाहते हैं।' नरश्रेष्ठ उग्रसेनने जब उसका फल पतिको भोगना पड़ता है। वहाँ सदाचार- दूतोंके मुँहसे यह बात सुनी तो प्रीति, स्नेह और पूर्वक रहनेसे वह सदा पुत्र-पौत्रोंके साथ वृद्धिको प्राप्त उदारताके कारण अपनी प्रिय पत्नी पद्मावतीको होती है। प्राणनाथ ! पुत्रीके उत्तम गुणोंसे पिताकी कीर्ति विदर्भराजके यहाँ भेज दिया। पतिके भेजनेपर पद्मावती बढ़ती है। इसलिये दामादके साथ भी कन्याको अपने बड़े हर्षके साथ अपने मायके गयी । वहाँ पहुँचकर उसने घर नहीं रखना चाहिये। इस विषयमें एक पौराणिक पिताके चरणोंमें प्रणाम किया। उसके आनेसे महाराज इतिहास सुना जाता है, जो अट्ठाईसवें द्वापरके आनेपर सत्यकेतुको बड़ी प्रसन्नता हुई। पद्यावती वहाँ अपनी संघटित होनेवाला है। यदुकुलश्रेष्ठ वीरवर उग्रसेनके सखियोंके साथ निःशङ्क होकर घूमने लगी। पहले की ही यहाँ जो घटना घटित होनेवाली है, उसीका मैं भाँति घर, वन, तालाब और चौबारोंमें विचरण करने [भूतकालके रूपमें] वर्णन करूंगी।
लगी। यहाँ आकर वह पुनः बालिका बन गयी; उसके ... माथुर प्रदेशमें मथुरा नामकी नगरी है, वहाँ उग्रसेन बर्तावमें लाज या सङ्कोचका भाव नहीं रहा। नामवाले यदुवंशी राजा राज्य करते थे। वे शत्रुविजयी, एक दिनकी बात है-'पद्मावती [अपनी सम्पूर्ण धर्मोक तत्त्वज्ञ, बलवान्, दाता और सद्गुणोंके सखियोंके साथ] एक सुन्दर पर्वतपर सैर करनेके लिये जानकार थे। मेधावी राजा उग्रसेन धर्मपूर्वक राज्यका गयी। उसकी तराईमें एक रमणीय वन दिखायी दिया, सञ्चालन और प्रजाका पालन करते थे। उन्हीं दिनों परम जो केलोंके उद्यानसे शोभा पा रहा था। पहाड़पर भी पवित्र विदर्भदेशमें सत्यकेतु नामसे प्रसिद्ध एक प्रतापी फूलोकी बहार थी। राजकुमारीने देखा-एक ओर ऐसा