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भूमिखण्ड ] . मातलिके द्वारा भगवान् शिव और श्रीविष्णुकी महिमाका वर्णन . ....................................................................................................
और व्याधियोंका भय नहीं था। मनुष्योंकी अकाल-मृत्यु लगे हुए बालक गोविन्दको मस्तक झुकाते और नहीं होती थी। सब लोग विष्णु-सम्बन्धी व्रतोंका पालन दिन-रात मधुर हरिनामका कीर्तन करते रहते थे। करनेवाले और वैष्णव थे। भगवान्का ही ध्यान और द्विजश्रेष्ठ ! सर्वत्र भगवान् विष्णुके नामको ही ध्वनि उन्हींके नामोंका जप उनकी दिनचर्याका अङ्ग बन गया सुनायी पड़ती थी। भूतलके समस्त मानव वैष्णवोचित था। वे सब लोग भाव-भक्तिके साथ भगवान्को भावसे रहा करते थे। महलों और देवमन्दिरोंके आराधनामें तत्पर रहते थे। द्विजश्रेष्ठ ! उस समय सब कलशोपर सूर्यमण्डलके समान चक्र शोभा पाते थे। लोगोंके घरोंमें तुलसीके वृक्ष और भगवान्के मन्दिर पृथ्वीपर सर्वत्र श्रीकृष्णका भाव दृष्टिगोचर होता था । यह शोभा पाते थे। सबके घर साफ-सुथरे और चमकीले थे भूतल विष्णुलोककी समानताको पहुँच गया था। तथा उत्तम गुणोंके कारण दिव्य दिखायी देते थे। सर्वत्र वैकुण्ठमें वैष्णव लोग जैसे विष्णुका उच्चारण करते हैं, वैष्णव भाव छा रहा था। नाना प्रकारके माङ्गलिक उसी प्रकार इस पृथ्वीपर मनुष्य कृष्ण-नामका कीर्तन उत्सवोका दर्शन होता था। विप्रवर ! भूलोकमें सदा करते थे। भूतल और वैकुण्ठ दोनों लोकोंका एक ही शकोंकी ध्वनियाँ सुनायी पड़ती थीं, जो आपसमें भाव दिखायी देता था । वृद्धावस्था और रोगका भय नहीं टकराया करती थीं। वे ध्वनियाँ समस्त दोषों और था; क्योंकि मनुष्य अजर-अमर हो गये थे। भूलोकमें पापोका विनाश करनेवाली थीं। भगवान् विष्णुमें भक्ति दान और भोगका अधिक प्रभाव दृष्टिगोचर होता था। रखनेवाली स्त्रियोंने अपने-अपने घरके दरवाजेपर शङ्ख, प्रायः सब मनुष्य-द्विजमात्र वेदोंके विद्वान् और ज्ञानस्वस्तिक और पद्यकी आकृतियाँ लिख रखी थीं। सब ध्यानपरायण थे। सब यज्ञ और दानमें लगे रहते थे। लोग केशवका गुणगान करते थे। कोई 'हरि' और सबमें दयाका भाव था। सभी परोपकारी, शुभ विचार'मुरारि' का उच्चारण करता तो कोई 'श्रीश', 'अच्युत' सम्पन्न और धर्मनिष्ठ थे। महाराज ययातिके उपदेशसे तथा माधवका नाम लेता था। कितने ही श्रीनरसिंह, भूमण्डलके समस्त मानव वैष्णव हो गये थे। कमलनयन, गोविन्द, कमलापति, कृष्ण और राम- भगवान् श्रीविष्णु कहते हैं-नृपश्रेष्ठ वेन ! नामकी रट लगाते हुए भगवान्की शरणमें जाते, मन्त्रोंके नहुषपुत्र महाराज ययातिका चरित्र सुनो; वे सर्वधर्मद्वारा उनका जप करते तथा पूजन भी करते थे। परायण और निरन्तर भगवान् विष्णुमें भक्ति रखनेवाले सब-के-सब वैष्णव थे; अतः वे श्रीविष्णुके ध्यानमें मग्न थे। उन्हें इस पृथ्वीपर रहते एक लाख वर्ष व्यतीत खे रहकर उन्हींको दण्डवत् प्रणाम किया करते थे। गये। परन्तु उनका शरीर नित्य-नूतन दिखायी देता था,
कृष्ण, विष्णु, हरि, राम, मुकुन्द, मधुसूदन, मानो वे पच्चीस वर्षके तरुण हो। भगवान् विष्णुके नारायण, हृषीकेश, नरसिंह, अच्युत, केशव, पद्मनाभ, प्रसादसे राजा ययाति बड़े ही प्रशस्त और प्रौढ़ हो गये वासुदेव, वामन, वाराह, कमठ, मत्स्य, कपिल, थे। भूमण्डलके मनुष्य कामनाओंके बन्धनसे रहित सुराधिप, विश्वेश, विश्वरूप, अनन्त, अनघ, शुचि, पुरुष, होनेके कारण यमराजके पास नहीं जाते थे। वे दानपुष्कराक्ष, श्रीधर, श्रीपति, हरि, श्रीद, श्रीश, श्रीनिवास, पुण्यसे सुखी थे और सब धर्मोक अनुष्ठानमें संलग्न रहते सुमोक्ष, मोक्षद और प्रभु-इन नामोंका उच्चारण करते थे। जैसे दूर्वा और वटवृक्ष पृथ्वीपर विस्तारको प्राप्त होते हुए पृथ्वीके समस्त मानव-बाल, वृद्ध और कुमार भी है, उसी प्रकार वे मनुष्य पुत्र-पौत्रोंके द्वारा वृद्धिको प्राप्त भगवान्का भजन करते थे। घरके काम-धंधोंमें लगी हुई हो रहे थे। मृत्युरूपी दोषसे हीन होनेके कारण वे स्त्रियाँ सदा भगवान् श्रीहरिको प्रणाम करती और बैठते, दीर्घजीवी होते थे। उनका शरीर अधिक कालतक दृढ़ सोते, चलते, ध्यान लगाते तथा ज्ञान प्राप्त करते समय रहता था। वे सुखी थे और बुढ़ापेका रोग उन्हें छू भी भी वे लक्ष्मीपतिका स्मरण करती रहती थीं। खेल-कूदमें नहीं गया था। पृथ्वीके सभी मनुष्य पच्चीस वर्षकी