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अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम्
हाथमें सुदर्शन चक्र शोभा पाता है। वे पुण्यकी निधि और सुखरूप हैं। उनके स्वरूपका कहीं अन्त नहीं है। सम्पूर्ण विश्व उनके हृदयमें निवास करता है। वे निर्मल सबको आराम देनेवाले, 'राम' नाम से विख्यात, सबमें रमण करनेवाले, मुर दैत्यके शत्रु, आदित्यस्वरूप, अन्धकारके नाशक, मलरूप कमलोंके लिये चाँदनीरूप, लक्ष्मी निवासस्थान, सगुण और देवेश्वर हैं। उनका नामामृत सब दोषोंको दूर करनेवाला है। राजा ययातिने उसे यहीं सुलभ कर दिया है, सब लोग उसका पान करें। यह नामामृतस्तोत्र दोषहारी और उत्तम पुण्यका जनक है। लक्ष्मीपति भगवान् विष्णुमें भक्ति रखनेवाला जो महात्मा पुरुष प्रतिदिन प्रातः काल नियमपूर्वक इसका पाठ करता है, वह मुक्त हो जाता है। *
सुकर्मा कहते हैं - राजा ययातिके दूत सम्पूर्ण देशों, द्वीपों, नगरों और गाँवोंमें कहते फिरते थे'लोगो ! महाराजकी आज्ञा सुनो, तुमलोग पूरा जोर लगाकर सर्वतोभावेन भगवान् विष्णुकी पूजा करो। दान, यज्ञ, शुभकर्म, धर्म और पूजन आदिके द्वारा भगवान् मधुसूदनकी आराधना करते हुए मनकी सम्पूर्ण वृत्तियोंसे उन्हींका ध्यान - चिन्तन करो।' इस प्रकार राजाके उत्तम आदेशका, जो शुभ पुण्य उत्पन्न करनेवाला था, भूतल निवासी सब लोगोंने श्रवण किया। उसी समयसे सम्पूर्ण मनुष्य एकमात्र भगवान् मुरारिका ध्यान, गुणगान, जप और तप करने लगे। वेदोक्त सूक्तों और मन्त्रोंद्वारा, जो कानोंको पवित्र करनेवाले तथा अमृतके समान मधुर थे, श्रीकेशवका यजन करने लगे। उनका चित्त सदा
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[ संक्षिप्त पद्मपुराण
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भगवान्में ही लगा रहता था। वे समस्त विषयों और दोषोंका परित्याग करके व्रत, उपवास, नियम और दानके द्वारा भक्तिपूर्वक जगन्निवास श्रीविष्णुका पूजन करते थे राजाका भगवदाराधन सम्बन्धी आदेश भूमण्डलपर प्रवर्तित हो गया। सब लोग वैष्णव प्रभावके कारण भगवान्का यजन करने लगे। यज्ञविधिको जाननेवाले विद्वान् नाम और कर्मोंक द्वारा श्रीविष्णुका यजन करते और उन्होंके ध्यानमें संलग्न रहते थे। उनका सारा उद्योग भगवान्के लिये ही होता था। वे विष्णु पूजामें निरन्तर लगे रहते थे। जहाँतक यह सारा भूमण्डल है और जहाँतक प्रचण्ड किरणोंवाले भगवान् सूर्य तपते हैं, वहाँतक समस्त मनुष्य भगवद्भक्त हो गये। श्रीविष्णुके प्रभावसे, उनका पूजन, स्तवन और नाम कीर्तन करनेसे सबके शोक दूर हो गये। सभी पुण्यात्मा और तपस्वी बन गये। किसीको रोग नहीं सताता था। सब-के-सब दोष और रोषसे शून्य तथा समस्त ऐश्वयोंसे सम्पन्न हो गये थे।
महाभाग ! उन लोगोंके घरोंके दरवाजोंपर सदा ही पुण्यमय कल्पवृक्ष और समस्त कामनाओंको पूर्ण करनेवाली गौएँ रहती थीं। उनके घरमें चिन्तामणि नामकी मणि थी, जो परम पवित्र और सम्पूर्ण मनोरथोंको पूर्ण करनेवाली मानी गयी है। भगवान् विष्णुकी कृपासे पृथ्वीके समस्त मानव सब प्रकारके दोषोंसे रहित हो गये
थे पुत्र तथा पौत्र उनकी शोभा बढ़ाते थे। वे मङ्गलसे युक्त, परम पुण्यात्मा, दानी ज्ञानी और ध्यानपरायण थे। धर्मके ज्ञाता महाराज ययातिके शासनकालमें दुर्भिक्ष
* श्रीकेशवं शहर वरेण्यमानन्दरूपं परमार्थमेव नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीतमत्रैव पिबन्तु लोकाः ॥ श्रीपद्मनाभं कमलेक्षणं च आधाररूपं जगतां महेशम्। नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीतमत्रैव पिबन्तु लोकाः ॥ पापापहं व्याधिविनाशरूपमानन्ददं दानवदैत्यनाशनम्। नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीतमत्रैव पिवन्तु लोकाः ॥ यज्ञाङ्गरूपं च रथाङ्गपाणिं पुण्याकरं सौख्यमनन्तरूपम्। नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीतमत्रैव पिवन्तु लोकाः ॥ विश्वाधिवासं विमलं विरामं रामाभिधानं रमणं मुरारिम् । नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीतमत्रैव पिबन्तु लोकाः ॥ आदित्यरूपं तमसां विनाशं चन्द्रप्रकाशं मलपङ्कजानाम् । नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीतमत्रैव पिबन्तु लोकाः ॥ सखङ्गपाणि मधुसूदनाख्यं तं श्रीनिवासं सगुणं सुरेशम् । नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीतमत्रैव पिबन्तु लोकाः ॥ नामामृतं दोषहरं सुपुण्यमधीत्य यो माधवविष्णुभक्तः । प्रभातकाले नियतो महात्मा स याति मुक्ति न हि कारणं च ।।
(७३ | १०- १७)