________________
भूमिखण्ड ]
• सुकर्माद्वारा ग्रयाति और मातलिके संवादका उल्लेख .
इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि ये इन्द्रपदपर अधिकार शरीरका निर्माण हुआ है तथा पाँच विषयोंसे यह घिरा कर लेंगे। अतः जिस-किसी उपायसे सम्भव हो, उन्हें हुआ है। वीर्य और रक्तका नाश होनेसे प्रायः शरीर स्वर्गमे लाऊँगा।
- खोखला हो जाता है, उसमें प्रचण्ड वायुका प्रकोप होता र ययातिसे डरे हुए देवराजने ऐसा विचार करके उन्हे है। इससे मनुष्यका रंग बदल जाता है। वह दुःखसे बुलानेके लिये दूत भेजा। अपने सारथि मातलिको संतप्त और हतबुद्धि हो जाता है। जो स्त्री देखी-सुनी होती विमानके साथ रवाना किया। मातलि उस स्थानपर गये, है, उसमें चित्त आसक्त होनेसे वह सदा भटकता रहता जहाँ नहुष-पुत्र धर्मात्मा ययाति अपनी राजसभामें है। शरीरमें तृप्ति नहीं होती; क्योंकि उसका चित्त सदा विराजमान थे। सत्य ही उन श्रेष्ठ नरेशका आभूषण था। लोलुप रहा करता है। जब कामी मनुष्य मांस और रक्त देवराजके सारथिने उनसे कहा-'राजन् ! मेरी बात क्षीण होनेसे दुर्वल हो जाता है, तब उसके बाल पक सुनिये, देवराज इन्द्रने मुझे इस समय आपके पास भेजा जाते हैं। कामाग्निसे शरीरका शोषण हो जाता है। वृद्ध है। उनका अनुरोध है कि अब आप पुत्रको राज्य दे होनेपर भी दिन-दिन उसकी कामना बढ़ती ही जाती है। आज ही इन्द्रलोकको पधारें। महीपते ! वहाँ इन्द्रके बूढ़ा मनुष्य ज्यों-ज्यों स्त्रीके सहवासका चिन्तन करता है, साथ रहकर आप स्वर्गका आनन्द भोगिये।' का त्यों-त्यों उसके तेजकी हानि होती है। अतः काम
ययातिने पूछा-मातले! मैंने देवराज इन्द्रका नाशस्वरूप है, यह नाशके लिये ही उत्पन्न होता है। काम कौन-सा ऐसा कार्य किया है, जिससे तुम ऐसी प्रार्थना एक भयंकर ज्वर है, जो प्राणियोंका काल बनकर उत्पन्न कर रहे हो?
होता है। इस प्रकार इस शरीरमें जीर्णता-जरावस्था . मातलिने कहा-राजन् ! लगभग एक लाख आती है। वर्षोंसे आप दान-यज्ञ आदि कर्म कर रहे है। इन कोंक ययातिने कहा-मातले! आत्माके साथ यह फलस्वरूप इस समय स्वर्गलोग चलिये और देवराज शरीर ही धर्मका रक्षक है, तो भी यह स्वर्गको नहीं इन्द्रके सखा होकर रहिये। इस पाञ्चभौतिक शरीरको जाता-इसका क्या कारण है? यह बताओ। भूमिपर ही त्याग दीजिये और दिव्य रूप धारण करके मातलि बोले-महाराज ! पाँचों भूतोंका आपसमें मनोरम भोगोंका उपभोग कीजिये।
ही मेल नहीं है। फिर आत्माके साथ उनका मेल कैसे हो - ययातिने प्रश्न किया-मनुष्य जिस शरीरसे सकता है। आत्माके साथ इनका सम्बन्ध बिलकुल नहीं सत्यधर्म आदि पुण्यका उपार्जन करता है, उसे वह कैसे है। शरीर-समुदायमें भी सम्पूर्ण भूतोंका पूर्ण संघट नहीं है। छोड़ सकता है।
__ क्योंकि जरावस्थासे पीड़ित होनेपर सभी अपने-अपने मातलिने कहा-राजन् ! तुम्हारा कथन ठीक है, स्थानको चले जाते हैं। इस शरीरमें अधिकांश पृथ्वीका तथापि मनुष्यको अपना यह शरीर छोड़कर ही जाना भाग है। यह पृथ्वीको समानताको लेकर ही प्रतिष्ठित है। पड़ता है [क्योंकि आत्माका शरीरके साथ कोई सम्बन्ध जैसे पृथ्वी स्थित है, उसी प्रकार यह भी यहीं स्थित रहता नहीं है] । शरीर पशभूतोंसे बना हुआ है; जब इसकी है। अतः शरीर स्वर्गको नहीं जाता। संधियाँ शिथिल हो जाती है, उस समय वृद्धावस्थासे ययातिने कहा-मातले ! मेरी बात सुनो। जब
पीड़ित मनुष्य इस शरीरको त्याग देना चाहता है। पापसे भी शरीर गिर जाता है और पुण्यसे भी, तब मैं - ययातिने पूछा-साधुश्रेष्ठ! वृद्धावस्था कैसे इस पृथ्वीपर पुण्यमें कोई विशेषता नहीं देखता । जैसे उत्पन्न होती है तथा वह क्यों शरीरको पीड़ा देती है ? इन पहले शरीरका पतन होता है, उसी प्रकार पुनः दूसरे सब बातोंको विस्तारसे समझाओ।
- शरीरका जन्म भी हो जाता है। किन्तु उस देहकी उत्पत्ति मातलिने कहा-राजन् ! पञ्चभूतोंसे इस कैसे होती है? मुझे इसका कारण बताओ। "