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भूमिखण्ड ]" • सुकलाका रानी सुदेवाकी महिमा बताते हुए एक शूकर-शूकरीका उपास्यान सुनाना •
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पुत्र-पौत्रोंके साथ युद्धकी इच्छासे मैदानमें डटा रहा । उस युद्धके लिये ललकार रहा है। समय शूकरीने उससे कहा-'नाथ ! मुझे और इन अपनी दुर्द्धर सेनाको उस दुर्द्धर्ष वराहके द्वारा बालकोको साथ लेकर अब यहाँसे चले चलो।' परास्त होते देख राजा इक्ष्वाकुको बड़ा क्रोध हुआ।
शूकरने कहा-महाभागे ! दो सिंहोंके बीचमें उन्होंने धनुष और कालके समान भयंकर बाण लेकर सूअर पानी पी सकता है, किन्तु दो सूअरोके बीचमें सिंह अश्वके द्वारा बड़े वेगसे शूकरपर आक्रमण किया। उन्हें नहीं पी सकता। सूअर-जातिमें ऐसा उत्तम बल देखा आते देख सूअर भी आगे बढ़ा। वह घोड़ेके पैरोंके नीचे जाता है। यदि मैं संग्राममें पीठ दिखाकर चला जाऊँ तो आ गया, इतनेमें ही राजाने उसे अपनी तीखे बाणका उस बलका नाश हो करूंगा-मेरी जातिको प्रसिद्धि ही निशाना बनाया। सूअर घायल होकर बड़े वेगसे उछला नष्ट हो जायगी। मुझे परम कल्याणदायक धर्मका ज्ञान और घोड़ेसहित राजाको लाँध गया। उसने अपनी है। जो योद्धा काम, लोभ अथवा भयसे युद्धतीर्थका दाढ़ोसे मारकर घोड़ेके पैरोंमें घाव कर दिया था। इससे त्याग करके भाग जाता है, वह निःसन्देह पापी है। जो उसको बड़ी पौड़ा हो रही थी, उससे चला नहीं जाता था; तीखे शस्त्रोका व्यूह देखकर प्रसन्न होता है और अन्ततोगत्वा वह पृथ्वीपर गिर पड़ा। तब राजा एक रणसिन्धुमें गोता लगाकर तीर्थके पार पहुंच जाता है, वह छोटे-से रथपर सवार हो गये। यूथपति सूअर अपनी अपने आगेकी सौ पीढ़ियोंका उद्धार कर देता है और जातिके स्वभावानुसार रणभूमिमें भयंकर गर्जना कर रहा अन्तमें विष्णुधामको जाता है। जो अस्त्र-शस्त्रोंसे था, इतनेमें हो कोसलसम्राट्ने उसके ऊपर गदासे प्रहार सुसज्जित योद्धाको सामने आते देख प्रसन्नतापूर्वक किया। गदाका आघात पाकर उसने शरीर त्याग दिया उसकी ओर बढ़ता है, उसके पुण्य-फलका वर्णन सुनो-'उसे पग-पगपर गङ्गा-स्नानका महान् फल प्राप्त होता है। जो काम या लोभवश युद्धसे भागकर घरको चला जाता है, वह अपनी माताके दोषको प्रकाशित करता है और व्यभिचारसे उत्पन्न कहलाता है। मैं इस वीर-धर्मको जानता हूँ, अतः युद्ध छोड़कर भाग कैसे सकता हूँ। तुम बच्चोंको लेकर यहाँसे चली जाओ और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करो।
पतिकी बात सुनकर शूकरी बोली-'प्रिय ! मैं तुम्हारे स्नेह-बन्धनमें बँधी हूँ; तुमने प्रेम, आदर, हास-परिहास तथा रति-क्रीड़ा आदिके द्वारा मेरे मनको बाँध लिया है। अतः मैं पुत्रोंके साथ तुम्हारे सामने प्राण त्याग करूँगी।' इस तरह बातचीत करके एक-दूसरेका हित चाहनेवाले दोनों पति-पत्नीने युद्धका ही निश्चय किया। कोसलसम्राट् इक्ष्वाकुने देखा-वर्षाक समय और भगवान् श्रीविष्णुके श्रेष्ठ धाममें प्रवेश किया। इस आकाशमें मेघ जिस प्रकार बिजलीकी चमकके साथ प्रकार महाराज इक्ष्वाकुके साथ युद्ध करके वह गर्जते हैं, उसी तरह अपनी पत्नीके साथ शूकर भी गर्जना शूकरराज हवाके वेगसे उखड़कर गिरे हुए वृक्षकी भांति करता है और अपने स्खुरोंके अग्रभागसे मानो महाराजको पृथ्वीपर गिर पड़ा। उस समय देवता उसके ऊपर