________________
सृष्टिखण्ड]
- रुद्राक्षकी उत्पत्ति और महिमा तथा आँवलेके फल और तुलसीदलका माहात्म्य .
१९७
दर्शनमात्रसे लोगोंकी पाप-राशि विलीन हो जाती है। पुण्यका भागी होता है। रुद्राक्षमालाका एक-एक बीज रुद्राक्षके स्पर्शसे मनुष्य स्वर्गका सुख भोगता है और उसे एक-एक देवताके समान है। जो मनुष्य अपने शरीरमें धारण करनेसे वह मोक्षको प्राप्त होता है। जो मस्तकपर रुद्राक्ष धारण करता है, वह देवताओमें श्रेष्ठ होता है। तथा हृदय और बाँहमें भी रुद्राक्ष धारण करता है, वह ब्राह्मणोंने पूछा-गुरुदेव ! रुद्राक्षकी उत्पत्ति इस संसारमें साक्षात् भगवान् शङ्करके समान है। कहाँसे हुई है ? तथा वह इतना पवित्र कैसे हुआ ? रुद्राक्षधारी ब्राह्मण जहाँ रहता है, वह देश पुण्यवान् होता , व्यासजी बोले-ब्राह्मणो! पहले किसी है। रुद्राक्षका फल तीथोंमें महान् तीर्थक समान है। सत्ययुगमें एक त्रिपुर नामका दानव रहता था, वह ब्रह्म-प्रन्थिसे युक्त मङ्गलमयी रुद्राक्षकी माला लेकर जो देवताओंका वध करके अपने अन्तरिक्षचारी नगरमें छिप जप-दान-स्तोत्र, मन्त्र और देवताओंका पूजन तथा दूसरा जाता था। ब्रह्माजीके वरदानसे प्रबल होकर वह सम्पूर्ण कोई पुण्य कर्म करता है, वह सब अक्षय हो जाता है लोकोंके 'विनाशकी चेष्टा कर रहा था। एक समय तथा उससे पापोंका क्षय होता है।
देवताओंके निवेदन करनेपर भगवान् शङ्करने यह भयंकर २८ श्रेष्ठ द्विजगण ! अब मैं मालाका लक्षण बतलाता समाचार सुना । सुनते ही उन्होंने अपने आजगव नामक हूँ, सुनो। उसका लक्षण जानकर तुमलोग मोक्ष-मार्ग धनुषपर विकराल बाण चढ़ाया और उस दानवको दिव्य प्राप्त कर लोगे। जिस रुद्राक्षमें योनिका चिह्न न हो, दृष्टि से देखकर मार डाला। दानव आकाशसे टूटकर जिसमें कीड़ोंने छेद कर दिया हो, जिसका लिङ्गचिह्न मिट गिरनेवाली बहुत बड़ी लूकाके समान इस पृथ्वीपर गिरा । गया हो तथा जिसमें दो बीज एक साथ सटे हुए हों, ऐसे इस कार्यमें अत्यन्त श्रम होनेके कारण रुद्रदेवके शरीरसे रुद्राक्षके दानेको मालामें नहीं लेना चाहिये। जो माला पसीनेकी बूंदें टपकने लगीं। उन बूंदोंसे तुरंत ही पृथ्वीपर अपने हाथसे गूंथी हुई और ढीली-ढाली हो, जिसके दाने रुद्राक्षका महान् वृक्ष प्रकट हुआ। इसका फल अत्यन्त एक-दूसरेसे सटे हुए हों अथवा शूद्र आदि नीच मनुष्योंने गुप्त होनेके कारण साधारण जीव उसे नहीं जानते। जिसे गूंथा हो-ऐसी माला अशुद्ध होती है। उसका तदनन्तर एक दिन कैलासके शिखरपर विराजमान हुए दूरसे ही परित्याग कर देना चाहिये। जो सर्पके समान देवाधिदेव भगवान् शङ्करको प्रणाम करके कार्तिकेयजीने आकारवाली (एक ओरसे बड़ी और क्रमशः छोटी), कहा-'तात ! मैं रुद्राक्षका यथार्थ फल जानना चाहता नक्षत्रोंकी-सी शोभा धारण करनेवाली, सुमेरुसे युक्त तथा हूँ। उसपर जप करने तथा उसका धारण, दर्शन अथवा सटी हुई प्रन्थिके कारण शुद्ध है, वही माला उत्तम मानी स्पर्श करनेसे क्या फल मिलता है?' गयी है। विद्वान् पुरुषको वैसी ही मालापर जप करना भगवान् शिवने कहा-रुद्राक्षके धारण करनेसे चाहिये। उपर्युक्त लक्षणोंसे शुद्ध रुद्राक्षकी माला हाथमें मनुष्य सम्पूर्ण पापोंसे छूट जाता है। यदि कोई हिंसक लेकर मध्यमा अङ्गलिसे लगे हुए दानोंको क्रमशः पशु भी कण्ठमें रुद्राक्ष धारण करके मर जाय तो अँगूठेसे सरकाते हुए जप करना चाहिये। मेरुके पास रुद्रस्वरूप हो जाता है, फिर मनुष्य आदिके लिये तो पहुँचनेपर मालाको हाथसे बार-बार घुमा लेना चाहिये- कहना ही क्या है। जो मनुष्य मस्तक और हृदयमें मेरुका उल्लङ्घन करना उचित नहीं है। वैदिक, पौराणिक रुद्राक्षकी माला धारण करके चलता है, उसे पग-पगपर तथा आगमोक्त जितने भी मन्त्र हैं, सब रुद्राक्षमालापर अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त होता है। [रुद्राक्षमें एकसे जप करनेसे अभीष्ट फलके उत्पादक और मोक्षदायक लेकर चौदहतक मुख होते हैं।] जो कितने भी मुखवाले होते हैं। जो रुद्राक्षमालासे चूते हुए जलको मस्तकपर रुद्राक्षोंको धारण करता है, वह मेरे समान होता है; धारण करता है, वह सब पापोंसे शुद्ध होकर अक्षय इसलिये पुत्र ! तुम पूरा प्रयत्न करके रुद्राक्ष धारण करो।