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भूमिखण्ड ]
• मृत्युकन्या सुनीथाको गन्धर्वकुमारका शाप तथा अङ्गकी तपस्या ,
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गुह्य तथा गुणातीत हैं; आपको नमस्कार है। गुण, विस्तार करनेवाले), वासव (वसुपुत्र इन्द्र) तथा गुणकर्ता, गुणसम्पन्न और गुणात्मा भगवान्को प्रणाम है। वसुस्वरूप है; आपको नमस्कार है। आप वासुदेव, आप भव (संसाररूप), भवकर्ता तथा भक्तोंके संसार- विश्वरूप और वह्निस्वरूप है; आपको प्रणाम है। हरि, बन्धनका अपहरण करनेवाले हैं। आपको नमस्कार है। कैवल्यरूप तथा वामनभगवान्को नमस्कार है। भवकी उत्पत्तिके कारण होनेसे आपका नाम 'भव' है; इस सत्त्वगुणकी रक्षा करनेवाले भगवान् नृसिंहदेवको प्रणाम भवमें आप अव्यक्तरूपसे छिपे हुए हैं, इसलिये आपको है। गोविन्द एवं गोपालको नमस्कार है। भगवन् ! आप 'भवगुह्य' कहा गया है तथा आप रुद्ररूपसे इस भव- एकाक्षर (प्रणव), सर्वाक्षर (वर्णरूप) और हंसस्वरूप संसारका विनाश करते हैं, इससे आपका नाम भव- हैं; आपको प्रणाम है। तीन, पाँच और पचीस तत्त्व विनाशी है। आपको प्रणाम है। आप यज्ञ, यज्ञरूप, आपके ही रूप हैं; आप समस्त तत्त्वोंके आधार हैं। यज्ञेश्वर और यज्ञकर्ममें संलग्न हैं; आपको नमस्कार है। आपको नमस्कार है। आप कृष्ण (सच्चिदानन्दस्वरूप), शङ्ख धारण करनेवाले भगवान्को प्रणाम है। सोनेके कृष्णरूप (श्यामविग्रह) तथा लक्ष्मीनाथ हैं; आपको समान वर्णवाले परमात्माको नमस्कार है। चक्रधारी प्रणाम है। कमललोचन ! आप परमानन्दमय प्रभुको श्रीविष्णुको प्रणाम है। सत्य, सत्यभाव, सर्वसत्यमय, नमस्कार है। आप विश्वके भरण-पोषण करनेवाले तथा धर्म, धर्मकर्ता और सर्वविधाता आप भगवान्को प्रणाम पापोंके नाशक है, आपको प्रणाम है। पुण्योंमें भी उत्तम है। धर्म आपका अङ्ग है, आप श्रेष्ठ वीर और धर्मके पुण्य तथा सत्यधर्मरूप आप परमात्माको नमस्कार है। आधारभूत है; आपको नमस्कार है। आप माया-मोहके शाश्वत, अविनाशी एवं पूर्ण आकाशस्वरूप परमेश्वरको नाशक होते हुए भी सब प्रकारकी मायाओके उत्पादक है; प्रणाम है। महेश्वर श्रीपद्मनाभको नमस्कार है। केशव ! आपको नमस्कार है। आप मायाधारी, मूर्त (साकार) आपके चरणकमलोंमें मैं प्रणाम करता हूँ। और अमूर्त (निराकार) भी हैं। आपको प्रणाम है। आप आनन्दकन्द ! कमलाप्रिय ! वासुदेव ! सर्वेश्वर ! ईश ! सब प्रकारकी मूर्तियोंको धारण करनेवाले और मधुसूधन ! मुझे अपनी दासता प्रदान कीजिये। शङ्ख कल्याणकारी हैं, आपको नमस्कार है। ब्रह्मा, ब्रहारूप धारण करनेवाले शान्तिदायी केशव ! आपके चरणोंमें
और परब्रह्मस्वरूप आप परमात्माको प्रणाम है। आप मस्तक झुकाता हूँ। प्रत्येक जन्ममें मुझपर कृपा कीजिये। सबके धाम तथा धामधारी हैं, आपको नमस्कार है । आप मेरे स्वामी पद्मनाभ ! संसाररूपी दुःसह अग्निके तापसे मैं श्रीमान्, श्रीनिवास, श्रीधर, क्षीरसागरवासी और अमृत- दग्ध हो रहा हूँ: आप ज्ञानरूपी मेघकी धारासे मेरे तापको स्वरूप हैं; आपको प्रणाम है। [संसाररूपी रोगके लिये] शान्त कीजिये तथा मुझ दीनके लिये शरणरूप हो जाइये। महान् औषध, दुष्टोंके लिये घोररूपधारी, महाप्रज्ञापरायण, अङ्गके मुखसे यह स्तोत्र सुनकर भगवान्ने अङ्गको अक्रूर (सौम्य), प्रमेध्य (परम पवित्र) तथा मेध्यों अपने श्रीविग्रहका दर्शन कराया। उनका मेघके समान (पावन वस्तुओं) के स्वामी आप परमेश्वरको नमस्कार है। श्याम वर्ण तथा महान् ओजस्वी शरीर था तथा हाथोंमें आपका कहीं अन्त नहीं है, आप अशेष (पूर्ण) और शङ्ख, चक्र, गदा और पद्म शोभा दे रहे थे। सब ओर अनघ (पापरहित) हैं; आपको प्रणाम है। आकाशको महान् प्रकाश छा रहा था। श्रीभगवान् गरुड़की पीठपर प्रकाशित करनेवाले सूर्य-चन्द्रस्वरूप आपको नमस्कार बैठे थे। अङ्गोंमें सब प्रकारके आभूषण शोभा पा रहे है। आप हवनकर्म, हुतभोजी अग्नि तथा हविष्यरूप हैं; थे। हार, कण और कुण्डलोंसे सुशोभित तथा आपको नमस्कार है। आप बुद्ध (ज्ञानी), बुध (विद्वान्) वनमालासे उज्ज्वल उनका अत्यन्त दिव्यरूप बड़ा सुन्दर तथा सदा बुद्ध (नित्यज्ञानी) है; आपको प्रणाम है। जान पड़ता था। भगवान् श्रीजनार्दन अङ्गके सामने
स्वाहाकार, शुद्ध अव्यक्त, महात्मा, व्यास (वेदोंका विराजमान थे। श्रीवत्स नामक चिह्न और पुण्यमय