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भूमिखण्ड ]
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मृत्युकन्या सुनीथाको गन्धर्वकुमारका शाप तथा अङ्गकी तपस्या
विस्तारके साथ बतलाइये।
सूतजी बोले – नर्मदा, यमुना और गङ्गा- इन नदियोंकी धाराके आस-पास जो महापापी रहते हैं, वे जान-बूझकर या बिना जाने भी इनके जलमें नहाते और क्रीड़ा करते हैं; अतः महानदीके संसर्गसे उन्हें परम गतिकी प्राप्ति हो जाती है। द्विजवरो महानदीके सम्पर्क से अथवा अन्यान्य नदियोंके परम पवित्र जलका दर्शन, स्पर्श और पान करनेसे पापियोंका पाप नष्ट हो जाता है। तीर्थोके प्रभाव तथा संतोंके सङ्गसे पापियोंका पाप उसी प्रकार नष्ट होता है, जैसे आग ईंधनको जला डालती है। महात्मा ऋषियोंके संसर्ग, उनके साथ वार्तालाप करनेसे, दर्शन और स्पर्शसे तथा पूर्वकालमें सत्सङ्ग प्राप्त होनेसे राजा वेनका सारा पाप नष्ट हो गया था। पुण्यका संसर्ग हो जानेपर अत्यन्त भयङ्कर पापका भी संचार नहीं होता।
पूर्वकालमें मृत्युके एक सौभाग्यशालिनी कन्या उत्पन्न हुई थी, जिसका नाम सुनीथा रखा गया था। वह पिताके कार्योंको देखती और खेल-कूदमें सदा उन्हींका अनुकरण किया करती थी। एक दिन सुनीथा अपनी सखियोंके साथ खेलती हुई वनमें गयी। वहाँ गीतकी ध्वनि उसके कानोंमें पड़ी। तब सुनीथाने उस ओर दृष्टिपात किया। देखा, गन्धर्वकुमार महाभाग सुशङ्ख भारी तपस्यामें लगा हुआ है। उसके सारे अङ्ग बड़े ही मनोहर थे। सुनीथा प्रतिदिन वहाँ जाकर उस तपस्वीको सताने लगी। सुशङ्ख रोज-रोज उसके अपराधको क्षमा कर देता और कहता- 'जाओ, चली जाओ यहाँसे । उसके यों कहने पर वह बालिका कुपित हो जाती और बेचारे तपस्वीको पीटने लगती थी। उसका यह बर्ताव देखकर एक दिन सुशङ्ख क्रोधसे मूर्च्छित हो उठा और बोला- 'कल्याणी ! श्रेष्ठ पुरुष मारनेके बदले न तो मारते हैं और न किसीके गाली देनेपर क्रोध ही करते हैं; यही धर्मकी मर्यादा है।' पाप करनेवाली सुनीथासे ऐसा कहकर वह धर्मात्मा गन्धर्व क्रोधसे निवृत्त हो रहा और उसे अबला स्त्री जानकर बिना कुछ दण्ड दिये लौट गया।
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सुनीथाने पिताके पास जाकर कहा- 'तात! मैने वनमें जाकर एक गन्धर्वकुमारको पीटा है, वह काम-क्रोधसे रहित हो तपस्या कर रहा था। मेरे पीटनेपर उस धर्मात्माने कहा है-मारनेवालेको मारना और गाली देनेवालेको गाली देना उचित नहीं है। पिताजी! बताइये, उसके इस कथनका क्या कारण है ?' सुनीथाके इस प्रकार पूछनेपर धर्मात्मा मृत्युने उससे कुछ भी नहीं कहा। उसके प्रश्नका उत्तर ही नहीं दिया। तदनन्तर वह फिर वनमें गयी। सुशङ्ख तपस्यामें लगा था। दुष्ट स्वभाववाली सुनीथाने उस श्रेष्ठ तपस्वीके पास जाकर उसे कोड़ोंसे पीटना आरम्भ किया। अब वह महातेजस्वी
गन्धर्व अपने क्रोधको न रोक सका। उस सुन्दरी बालिकाको शाप देते हुए बोला- 'गृहस्थ धर्ममें प्रवेश करनेपर जब तुम्हारा अपने पतिके साथ सम्पर्क होगा, तब तुम्हारे गर्भसे देवताओं और ब्राह्मणोंकी निन्दा करनेवाला, पापाचारी, सब प्रकारके पापोंमें आसक्त और दुष्ट पुत्र उत्पन्न होगा।' इस प्रकार शाप दे वह पुनः जाकर तपस्यामें ही लग गया।
महाभाग गन्धर्वकुमारके चले जानेपर सुनीथा अपने घर आयी। वहाँ उसने पितासे सारा वृत्तान्त कह