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.अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
करते हैं। उसीको पाकर आज भी समस्त दानव मायामें यही पाँचों भूतोंका प्रकाश और रूप है। यह समुद्रपर्यन्त प्रवीण देखे जाते हैं। इसके बाद गन्धर्वो और पृथ्वी पहले 'मेदिनी के नामसे प्रसिद्ध थी। फिर अप्सराओंने पृथ्वीका दोहन किया। नृत्य और संगीतको अपनेको वेनकुमार राजा पृथुकी पुत्री स्वीकार करनेके विद्या ही उनका दूध थी। उसीसे गन्धर्व, यक्ष और कारण यह 'पृथ्वी' कहलाने लगी। अप्सराओंकी जीविका चलती है। परम पुण्यमय पर्वतोंने ब्राह्मणो ! पृथुके प्रयत्नसे इस पृथ्वीपर घर और भी इस पृथ्वीसे नाना प्रकारके रत्न और अमृतके समान गाँवोंकी नींव पड़ी। फिर बड़े-बड़े कस्बे और शहर ओषधियोंका दोहन किया। वृक्षोंने पत्तोंके पात्रमें इसकी शोभा बढ़ाने लगे। यह धन-धान्यसे सम्पन्न हुई पृथ्वीका दूध दुहा । जलने और कटनेके बाद भी फिरसे और सब प्रकारके तीर्थ इसके ऊपर प्रकट हुए। इस अङ्कर निकल आना-यही उनका दूध था। उस समय वसुमती देवीको ऐसी ही महिमा बतलायी गयी है। यह पाकरका पेड़ बछड़ा बना था और शालके पवित्र वृक्षने सर्वदा सर्वलोकमयी मानी गयी है। वेनकुमार महाराज दुहनेका काम किया था।
पृथुका ऐसा ही प्रभाव पुराणोंमें वर्णित है। ये महाभाग गुह्यक, चारण, सिद्ध और विद्याघरोंने भी सबको नरेश सम्पूर्ण धर्मोके प्रकाशक, वर्णों और आश्रमोंके धारण करनेवाली इस पृथ्वीको दुहा था। उस समय यह संस्थापक तथा समस्त लोकोंके धारण-पोषण करनेवाले वसुन्धरा सम्पूर्ण अभिलषित पदार्थों को देनेवाली थे। जो सौभाग्यशाली राजा इस लोकमें वास्तविक कामधेनु बन गयी थी। जो लोग जिस-जिस वस्तुकी राजपद प्राप्त करना चाहते हों, उन्हें परम प्रतापी राजा इच्छा करते थे, उन्हें भिन्न-भिन्न पात्र और बछड़ोंके द्वारा वेनकुमार पृथुको नमस्कार करना चाहिये । जो धनुर्वेदका वह वस्तु यह दूधके रूपमें प्रदान करती थी। यह धात्री ज्ञान और युद्धमें सदा ही विजय प्राप्त करना चाहते हो, (धारण करनेवाली) और विधात्री (उत्पन्न करनेवाली) उन्हें भी महाराज पृथुको प्रणाम करना चाहिये । सम्राट है। यह श्रेष्ठ वसुन्धरा है, यह समस्त कामनाओंको पूर्ण पृथु राजा-महाराजाओंको भी जीविका प्रदान करनेवाले करनेवाली धेनु है तथा यह पुण्योंसे अलङ्कत, परम थे। द्विजवरो! यह प्रसङ्ग धन, यश, आरोग्य और पुण्य पावन, पुण्यदायिनी, पुण्यमयी और सब प्रकारके प्रदान करनेवाला है। जो मनुष्य महाराज पृथुके चरित्रका धान्योंको अङ्कुरित करनेवाली है। यह सम्पूर्ण चराचर श्रवण करता है, उसे प्रतिदिन गङ्गास्नानका फल मिलता जगत्की प्रतिष्ठा और योनि (उत्पत्तिस्थान) है। यही है तथा वह सब पापोंसे शुद्ध होकर भगवान् श्रीविष्णुके महालक्ष्मी और सब प्रकारके कल्याणकी जननी है। परमधामको जाता है।
मृत्युकन्या सुनीथाको गन्धर्वकुमारका शाप, अङ्गकी तपस्या और भगवानसे वर-प्राप्ति
ऋषियोंने पूछा-सूतजी ! पापाचारपूर्ण बर्ताव होनेसे पुण्यकी ही वृद्धि होती रहती है। पापियोंसे करनेवाले जिस राजा वेनका आपने परिचय दिया है, उस बातचीत करने, उन्हें देखने, स्पर्श करने, उनके साथ पापीको उस व्यवहारका कैसा फल मिला? बैठने, भोजन करने तथा उनके सङ्गमें रहनेसे पापका
सूतजी बोले-ब्राह्मणो! पृथु-जैसे संचार होता है और पुण्यात्माओंके सङ्गसे केवल पुण्यका सौभाग्यशाली और महात्मा पुत्रके जन्म लेनेपर राजा वेन ही प्रसार होता है, जिससे सारे पाप धुल जानेके कारण पापरहित हो गया। उसे धर्मका फल प्राप्त हुआ। जिन मनुष्य पुण्य-गतिको ही प्राप्त करते हैं। नरेशोंने समस्त महापापोंका उपार्जन किया है, उनके वे ऋषियोंने पूछा-महामते ! पापी मनुष्योंको पाप तीर्थयात्रासे नष्ट हो जाते हैं और संतोंका सङ्ग प्राप्त परम सिद्धिकी प्राप्ति कैसे होती है, यह बात [भी] हमें