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• अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्मपुराण
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ब्राह्मणोंने मिलकर पृथुका राज्याभिषेक किया। तदनन्तर मिला । अन्तमें अपनी रक्षाका कोई उपाय न देखकर वह ब्रह्माजी, सब देवता तथा नाना प्रकारके स्थावर-जङ्गम वेनकुमार पृथुकी ही शरणमें आयी और बाणोंके प्राणियोंने महाराज पृथुका अभिषेक किया। उनके पिताने आधातसे व्याकुल हो उन्हींके पास खड़ी हो गयी। उसने कभी भी सम्पूर्ण प्रजाको प्रसन्न नहीं किया था। किन्तु नमस्कार करके राजा पृथुसे कहापृथुने सबका मनोरञ्जन किया । इसलिये सारी प्रजा सुखी 'महाराज ! रक्षा करो' रक्षा करो। महाप्राज्ञ ! मैं होकर आनन्दका अनुभव करने लगी। प्रजाका अनुरञ्जन करनेके कारण ही वीर पृथुका नाम 'राजराज' हो गया।
द्विजवरो! उन महात्मा नरेशके भयसे समुद्रका जल भी शान्त रहता था। जब उनका रथ चलता, उस समय पर्वत दुर्गम मार्गको छिपाकर उन्हें उत्तम मार्ग देते थे। पृथ्वी बिना जोते ही अनाज तैयार करके देती थी। सर्वत्र गौएँ कामधेनु हो गयी थीं। मेघ प्रजाकी इच्छाके अनुसार वर्षा करता था। सम्पूर्ण ब्राह्मण और क्षत्रिय देवयज्ञ तथा बड़े-बड़े उत्सव किया करते थे। राजा पृथुके शासनकालमें वृक्ष इच्छानुसार फलते थे, उनके पास जानेसे सबकी इच्छा पूर्ण होती थी । देशमें न कभी अकाल पड़ता, न कोई बीमारी फैलती और न मनुष्योंकी अकाल मृत्यु ही होती थी। सब लोग सुखसे जीवन बिताते और धर्मानुष्ठानमें लगे रहते थे।*
ब्राह्मणो! प्रजाओंने अपनी जीवन-रक्षाके लिये धारण करनेवाली भूमि हूँ। मेरे ही आधारपर सब लोग पहले जो अन्नका बीज बो रखा था, उसे एक बार यह टिके हुए हैं। राजन् ! यदि मैं मारी गयी तो सातों लोक पृथ्वी पचाकर स्थिर हो गयी। उस समय सारी प्रजा राजा नष्ट हो जायेंगे। गौओंकी हत्यामें बहुत बड़ा पाप है, इस पृथुके पास दौड़ी गयी और मुनियोंके कथनानुसार बातका श्रेष्ठ ब्राह्मणोंने प्रत्यक्ष अनुभव किया है। मेरा बोली-'राजन् ! हमारे लिये उत्तम जीविकाका प्रबन्ध नाश होनेपर सारी प्रजा नष्ट हो जायगी। राजन् ! यदि मैं कीजिये।' राजाओंमें श्रेष्ठ पृथुने देखा-प्रजाके ऊपर न रही तो तुम प्रजाको कैसे धारण कर सकोगे। अतः बहुत बड़ा भय उपस्थित हुआ है। यह देखकर तथा यदि तुम प्रजाका कल्याण करना चाहते हो तो मुझे महर्षियोंकी बात मानकर महाराज पृथुने धनुष और बाण मारनेका विचार छोड़ दो। भूपाल ! मैं तुम्हें हितको बात हाथमें लिया और क्रोधमें भरकर बड़े वेगसे पृथ्वीके बताती हूँ, सुनो। अपने क्रोधका नियन्त्रण करो, मैं ऊपर धावा किया । पृथ्वी गायका रूप धारण करके तीव्र अन्नमयी हो जाऊँगी, समस्त प्रजाको धारण करूँगी। मैं गतिसे स्वर्गकी ओर भागी। फिर क्रमशः ब्रह्माजी, स्त्री हूँ। स्त्री अवध्य मानी गयी है। मुझे मारकर तुम्हें भगवान् श्रीविष्णु तथा रुद्र आदि देवताओंकी शरणमें प्रायश्चित्तका भागी होना पड़ेगा। गयी; किन्तु कहीं भी उसे अपने बचावका स्थान न राजा पृथु बोले-यदि किसी एक महापापी एवं
* न दुर्भिक्षं न च व्याधि कालमरणं नृणाम्। सर्वे सुखेन जीवन्ति लोका धर्मपरायणाः ॥ (२७ । ६४)