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सृष्टिखण्ड ]
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भगवान् सूर्यकी उपासना और उसका फल - भद्रेश्वरकी कथा •
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श्रीविष्णुका सुदर्शनचक्र बनाया गया। अमोघ यमदण्ड, शङ्करजीका त्रिशूल, कालका खड्ग, कार्तिकेयको आनन्द प्रदान करनेवाली शक्ति तथा भगवती दुर्गाके विचित्र शूलका भी उसी तेजसे निर्माण हुआ। ब्रह्माजीकी आज्ञासे विश्वकर्माने उन सब अस्त्रोंको फुर्तीसे तैयार किया था। सूर्यदेवकी एक हजार किरणें शेष रह गयीं, बाकी सब छाँट दी गयीं। ब्रह्माजीके बताये हुए उपायके अनुसार ही ऐसा किया गया।
कश्यपमुनिके अंश और अदिति के गर्भसे उत्पन्न होनेके कारण सूर्य आदित्यके नामसे प्रसिद्ध हुए। भगवान् सूर्य विश्वकी अन्तिम सीमातक विचरते और मेरु गिरिके शिखरों पर भ्रमण करते रहते हैं। ये दिन-रात इस पृथ्वीसे लाख योजन ऊपर रहते हैं। विधाताकी प्रेरणा से चन्द्रमा आदि ग्रह भी वहीं विचरण करते हैं। सूर्य बारह स्वरूप धारण करके बारह महीनोंमें बारह राशियों में संक्रमण करते रहते हैं। उनके संक्रमणसे ही संक्रान्ति होती है, जिसको प्रायः सभी लोग जानते हैं।
मुने! संक्रान्तियोंमें पुण्यकर्म करनेसे लोगोंको जो फल मिलता है, वह सब हम बतलाते हैं। धन, मिथुन, मीन और कन्या राशिकी संक्रान्तिको षडशीति कहते हैं तथा वृष, वृश्चिक, कुम्भ और सिंह राशिपर जो सूर्यको संक्रान्ति होती है, उसका नाम विष्णुपदी है। षडशीति नामकी संक्रान्तिमें किये हुए पुण्यकर्मका फल छियासी हजारगुना, विष्णुपदीमें लाखगुना और उत्तरायण या दक्षिणायन आरम्भ होनेके दिन कोटि-कोटिगुना अधिक
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व्यासजी कहते हैं— कैलासके रमणीय शिखरपर भगवान् महेश्वर सुखपूर्वक बैठे थे। इसी समय स्कन्दने उनके पास जा पृथ्वीपर मस्तक टेककर उन्हें प्रणाम किया और कहा- 'नाथ! मैं आपसे रविवार आदिका यथार्थ फल सुनना चाहता हूँ।'
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★ भगवान् सूर्यकी उपासना और उसका फल – भद्रेश्वरकी कथा
महादेवजीने कहा- बेटा! रविवारके दिन मनुष्य व्रत रहकर सूर्यको लाल फूलोंसे अर्घ्य दे और
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होता है। दोनों अयनोंके दिन जो कर्म किया जाता है, वह अक्षय होता है। मकरसंक्रान्तिमें सूर्योदयके पहले स्नान करना चाहिये। इससे दस हजार गोदानका फल प्राप्त होता है। उस समय किया हुआ तर्पण, दान और देवपूजन अक्षय होता है। विष्णुपदी नामक संक्रान्तिमें किये हुए दानको भी अक्षय बताया गया है। दाताको प्रत्येक जन्ममें उत्तम निधिकी प्राप्ति होती है। शीतकालमें रूईदार वस्त्र दान करनेसे शरीरमें कभी दुःख नहीं होता। तुला दान और शय्या दान दोनोंका ही फल अक्षय है। माघमासके कृष्णपक्षकी अमावास्याको सूर्योदयके पहले जो तिल और जलसे पितरोंका तर्पण करता है, वह स्वर्गमें अक्षय सुख भोगता है जो अमावास्याके दिन सुवर्णजटित सींग और मणिके समान कान्तिवाली शुभलक्षणा गौको, उसके खुरोंमें चाँदी मँढ़ाकर काँसेके बने हुए दुग्धपात्रसहित श्रेष्ठ ब्राह्मणके लिये दान करता है, वह चक्रवर्ती राजा होता है। जो उक्त तिथिको तिलकी गौ बनाकर उसे सब सामग्रियोंसहित दान करता है, वह सात जन्मके पापोंसे मुक्त हो स्वर्गलोकमें अक्षय सुखका भागी होता है। ब्राह्मणको भोजनके योग्य अन्न देनेसे भी अक्षय स्वर्गकी प्राप्ति होती है। जो उत्तम ब्राह्मणको अनाज, वस्त्र घर आदि दान करता है, उसे लक्ष्मी कभी नहीं छोड़ती। माघमासके शुक्लपक्षकी तृतीयाको मन्वन्तर- तिथि कहते हैं; उस दिन जो कुछ दान किया जाता है, वह सब अक्षय बताया गया है। अतः दान और सत्पुरुषोंका पूजनपरलोकमें अनन्त फल देनेवाले हैं।
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रातको हविष्यात्र भोजन करे। ऐसा करनेसे वह कभी स्वर्गसे भ्रष्ट नहीं होता। रविवारका व्रत परम पवित्र और हितकर है। वह समस्त कामनाओंको पूर्ण करनेवाला, पुण्यप्रद, ऐश्वर्यदायक, रोगनाशक और स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करनेवाला है। यदि रविवारके दिन सूर्यकी संक्रान्ति तथा शुक्लपक्षकी सप्तमी हो तो उस दिन किया हुआ व्रत, पूजा और जप- सब अक्षय होता है।