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भूमिखण्ड ]
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सोमशर्माके द्वारा भगवान् श्रीविष्णुकी आराधना
भलीभाँति प्रसन्न कर लिया। अतः ब्राह्मणके सङ्ग और भगवान् श्रीविष्णुके प्रसादसे सत्यधर्ममें स्थित होनेके कारण तुम्हें ब्राह्मणका शरीर प्राप्त हुआ है।
तुमने धनके लालच में आकर पुत्रका स्नेह त्याग दिया। उसी पापका यह फल है कि तुम पुत्रहीन हो गये। विप्रवर! उत्तम पुत्र, उत्तम कुल, धन, धान्य, पृथ्वी, स्त्री, उत्तम जन्म, श्रेष्ठ मृत्यु, सुन्दर भोग, सुख, राज्य, स्वर्ग तथा मोक्ष आदि जो-जो दुर्लभ वस्तुएँ हैं, वे सभी परमात्मा भगवान् श्रीविष्णुकी कृपासे प्राप्त होती हैं। इसलिये अबसे भगवान् नारायणकी आराधना करके तुम
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उस उत्कृष्ट पदको प्राप्त कर सकोगे, जो श्रीविष्णुका परमपद कहलाता है। महाभाग ! यह जानकर तुम श्रीनारायणके भजनमें लग जाओ।
सूतजी कहते हैं - वसिष्ठजीके द्वारा इस प्रकार समझाये जानेपर वे महानुभाव ब्राह्मण हर्षमें भर गये और भक्तिपूर्वक महर्षि वसिष्ठके चरणोंमें प्रणाम करके उनकी आज्ञा ले अपने घरको पधारे। वहाँ पहुँचकर अपनी स्त्री सुमनासे प्रसन्नतापूर्वक बोले- 'प्रिये ! तुम्हारी कृपासे ब्रह्मर्षि वसिष्ठजीके द्वारा ही मुझे अपने पूर्वजन्मकी सारी चेष्टाएँ ज्ञात हो गयीं।
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सोमशर्माके द्वारा भगवान् श्रीविष्णुकी आराधना, भगवान्का उन्हें दर्शन देना तथा सोमशर्माका उनकी स्तुति करना
सूतजी कहते हैं— तदनन्तर सत्पुरुषोंमें श्रेष्ठ भयंकर गर्जना करता हुआ वहाँ आया; उसे देखकर महाबुद्धिमान् सोमशर्मा अपनी स्त्री सुमनाके साथ नर्मदाके अत्यन्त पुण्यदायक तटपर गये और कपिलासंगम नामक पुण्यतीर्थमें नहाकर देवताओं तथा पितरोंका तर्पण करके शान्तचित्तसे भगवान् नारायणके मङ्गलमय नामका जप करते हुए तपस्या करने लगे। महामना सोमशर्मा द्वादशाक्षर मन्त्रका जप और भगवान् का ध्यान करते थे। वे सदा निश्चिन्त होकर बैठने, सोने, चलने और स्वप्रके समय भी केवल भगवान् श्रीविष्णुकी ओर ही दृष्टि रखते थे। उन्होंने काम-क्रोधका परित्याग कर दिया था। साथ ही पातिव्रत्य धर्ममें तत्पर रहनेवाली परम सौभाग्यवती सती साध्वी सुमना भी अपने तपस्वी पतिकी सेवामें लगी रहती थी। सोमशर्मा जब भगवान्का ध्यान करने लगे, उस समय अनेक प्रकारके विघ्नोंने सामने आकर उन्हें भय दिखाया। भयंकर विषवाले काले साँप उनके पास पहुँच जाते थे। सिंह, बाघ और हाथी उनकी दृष्टिमें आकर भय उत्पन्न करते थे। इस प्रकार बड़े-बड़े विघ्नोंसे घिरे रहनेपर भी वे महाबुद्धिमान् धर्मात्मा ब्राह्मण भगवान् श्रीविष्णुके ध्यानसे कभी विचलित नहीं होते थे ।
एक दिनकी बात है, एक महाभयानक सिंह
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सोमशर्मा भयसे थर्रा उठे और भगवान् श्रीनरसिंह (विष्णु) का ध्यान करने लगे। इन्द्रनीलमणिके समान श्याम विग्रहपर पीताम्बर शोभा पा रहा है। श्रीभगवान्का बल और तेज महान् है। वे अपने चारों हाथोंमें क्रमशः शङ्ख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये