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भूमिखण्ड] • श्रीभगवानके वरसे सोमशर्माको सुव्रत नामक पुत्रकी प्राप्ति तथा वैकुण्ठमें जाना •
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उनके जानेके पश्चात् द्विजश्रेष्ठ सोमशर्माने सूतजी कहते हैं-एक समय महर्षि व्यासने
अत्यन्त विस्मित होकर लोकनाथ ब्रह्माजीसे सुव्रतका सारा उपाख्यान पूछा।
ब्रह्माजीने कहा-सुव्रत बड़ा मेधावी बालक था। वह बाल्यकालसे ही भगवान् श्रीविष्णुका चिन्तन करने लगा। उसने गर्भमें ही पुरुषोत्तम भगवान् श्रीनारायणका दर्शन किया था। पूर्वकर्मोके प्रभावसे वह सदा भगवानके ध्यानमें लगा रहता था। वह गान, विद्याभ्यास और अध्यापन करते समय भी शङ्खचक्रधारी, उत्तम पुण्यदायी भगवान् श्रीपद्मनाभका ध्यान और चिन्तन किया करता था। इस प्रकार वह द्विजश्रेष्ठ सदा श्रीभगवान्का ध्यान करते हुए ही बच्चोंके साथ
खेला करता था। वह मेधावी, पुण्यात्मा और पुण्यमें प्रेम रखनेवाला था। उसने अपने साथी बालकोका नाम
अपनी ओरसे परमात्मा श्रीहरिके नामपर ही रख दिया बालकके जातकर्म आदि संस्कार किये। उस बड़भागी था। वह महामुनि था और भगवान्के ही नामसे अपने पुत्र सुव्रतके, जो भगवान्की कृपासे प्राप्त हुआ था, जन्म मित्रोंको भी पुकारा करता था। 'ओ केशव ! यहाँ लेनेपर ब्राह्मणके घरमें धन-धान्यसे परिपूर्ण महालक्ष्मी आओ, चक्रधारी माधव ! बचाओ, पुरुषोत्तम ! तुम्ही निवास करने लगी। हाथी, घोड़े, भैंसे, गौएँ, सोने और मेरे साथ खेलो, मधुसूदन ! हम दोनोंको वनमें ही रत्न आदि किसी भी वस्तुकी कमी न रही। सोमशर्माका चलना चाहिये।' इस प्रकार श्रीहरिके नाम ले-लेकर वह घर रत्नराशिसे कुबेर-भवनकी भाँति शोभा पाने लगा। ब्राह्मणबालक मित्रोंको बुलाया करता था। खेलने, ब्राह्मणने दान-पुण्य आदि धर्मोका अनुष्ठान किया। पढ़ने, हंसने, सोने, गीत गाने, देखने, चलने, बैठने, तीर्थोंमें जाकर वे नाना प्रकारके पुण्योंमें लगे रहे और ध्यान करने, सलाह करने, ज्ञान अर्जन करने तथा शुभ भी जो-जो दान-पुण्य हो सकते हैं, उन सबका उन्होंने कर्माका अनुष्ठान करनेके समय भी वह श्रीभगवान्को ही अनुष्ठान किया। मेधावी सोमशर्माका सारा जीवन ही देखता और जगन्नाथ, जनार्दन आदि नामोंका उच्चारण ज्ञान और पुण्यके उपार्जनमें लगा रहा। उन्होंने बड़े हर्षके किया करता था। विश्वके एकमात्र स्वामी श्रीपरमेश्वरका साथ पुत्रका विवाह किया। फिर पुत्रके भी पुत्र उत्पन्न ध्यान करता रहता था। तृण, काष्ठ, पत्थर तथा सूखे हुए, जो बड़े ही पुण्यात्मा और उत्तम लक्षणोंसे सम्पन्न और गीले सभी पदार्थोंमें वह धर्मात्मा बालक थे। वे भी सदा सत्यवादी, धर्मात्मा, तपस्वी तथा दान- श्रीकेशवको ही देखता, कमललोचन श्रीगोविन्दका ही धर्ममें संलग्न थे। उन पौत्रोंके भी पुण्यसंस्कार सोमशर्माने साक्षात्कार किया करता था। सुमनाका पुत्र ब्राह्मण सुव्रत ही सम्पन्न किये। सुमना और सोमशर्मा दोनों ही बड़ा बुद्धिमान् था; वह आकाशमें, पृथ्वीपर, पर्वतोंमें, सौभाग्यशाली थे। वे महान् अभ्युदयसे युक्त होकर सदा वनोंमें, जल, थल और पाषाणमें तथा सम्पूर्ण जीवोंके हर्षमें भरे रहते थे।
भीतर भी भगवान् श्रीनरसिंहका ही दर्शन करता था।*
* क्रीडने पठने हास्ये शयने गीतप्रेक्षणे । याने च ह्यासने ध्याने मन्त्र ज्ञाने सुकर्मसु ॥