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भूमिखण्ड ]
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शिवशर्माके चार पुत्रोंका पितृ-भक्तिके प्रभावसे श्रीविष्णुधामको प्राप्त होना
गयीं? पिताजी कहाँ हैं ?' धर्मशर्माने थोड़ेमें सब हाल कह सुनाया। सब हाल जानकर वेदशर्माको बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने धर्मशर्मासे कहा- 'प्रिय बन्धु ! इस पृथ्वीपर तुम्हारे जैसा मेरा हितैषी कौन है ?' तदनन्तर दोनों भाई प्रसन्न होकर अपने पिता शिवशर्माके पास गये। उस समय धर्मशर्माने तेजस्वी पितासे कहा— 'महाभाग ! आज मैंने आपके पुत्र वेदशर्माको मस्तक और जीवनके साथ यहाँ ला दिया है। आप इन्हें स्वीकार कीजिये।'
हुए चौथे पुत्र महामति विष्णुशर्मा से कहा-' -'बेटा! मेरा कहना करो। आज ही इन्द्रलोकको जाओ और वहाँसे अमृत ले आओ। मैं अपनी इस प्रियतमाके साथ इस समय अमृत पीना चाहता हूँ; क्योंकि अमृत सब रोगोंको दूर करनेवाला है।' महात्मा पिताका यह वचन सुनकर विष्णुशर्माने उनसे कहा- 'पिताजी! मैं आपके कथनानुसार सब कार्य करूँगा।' यह कहकर परम बुद्धिमान् धर्मात्मा विष्णुशर्माने पिताको प्रणाम किया और उनकी प्रदक्षिणा करके अपने महान् बल, तपस्या
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अन्तरिक्षमार्गसे जब वे आकाशके भीतर घुसे, तब देवराज इन्द्रने उन्हें देखा और उनका उद्देश्य जानकर उसमें विघ्न डालना आरम्भ किया। उन्होंने मेनकासे कहा- 'सुन्दरी! मेरी आज्ञासे शीघ्रतापूर्वक जाओ और विप्रवर विष्णुशर्माके कार्यमें बाधा डालो।' देवराजकी आज्ञा पाकर मेनका बड़ी उतावलीके साथ चली। उसका सुन्दर रूप था और वह सब प्रकारके आभूषणोंसे तदनन्तर, शिवशर्माने विनीत भावसे सामने खड़े विभूषित थी । नन्दनवनके भीतर पहुँचकर वह झूलेमें जा बैठी और मधुर स्वरसे गीत गाने लगी। उसका संगीत बीणाके स्वरके समान था। विष्णुशर्माने उसे देखा और उसके मनोभावको समझ लिया। उन्होंने सोचा - 'यह एक बहुत बड़े विघ्नके रूपमें उपस्थित हुई है, इन्द्रने इसे विचारकर वे शीघ्रतापूर्वक आगे बढ़ गये। मेनकाने उन्हें भेजा है; यह मेरी भलाई नहीं कर सकती। यह जाते देखा और पूछा - 'महामते ! कहाँ जाओगे ?' जाऊँगा, वहाँ पहुँचनेके लिये मुझे बड़ी जल्दी है।' विष्णुशर्मा बोले- मैं पिताके कार्यसे इन्द्रलोकमें मेनकाने कहा – 'विप्रवर! मैं कामदेवके बाणोंसे घायल होकर इस समय तुम्हारी शरणमें आयी हूँ। यदि धर्मका पालन करना चाहते हो तो मेरी रक्षा करो।'
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तथा नियमके प्रभावले आकाशमार्गद्वारा इन्द्रलोककी यात्रा की।
विष्णुशर्मा बोले— सुमुखि ! मुझे देवराजका सारा चरित्र मालूम है; तुम्हारे मनमें क्या है, यह भी मुझसे छिपा नहीं है। तुम्हारे तेज और रूपसे विश्वामित्र आदि दूसरे लोग ही मोहित होते हैं। मैं शिवशर्माका पुत्र हूँ, मुझपर तुम्हारा जादू नहीं चल सकता। अबले ! मैं योगसिद्धिको प्राप्त हूँ, तपस्यासे सिद्ध हो चुका हूँ। काम आदि बड़े-बड़े दोषोंको मैंने पहले ही जीत लिया है। तुम किसी दूसरे पुरुषका आश्रय लो, मैं इन्द्रलोकको जा रहा हूँ।
यों कहकर द्विजश्रेष्ठ विष्णुशर्मा शीघ्रतापूर्वक चले गये। मेनकाका प्रयत्न निष्फल हुआ। देवराजके पूछनेपर उसने सब कुछ बता दिया। तब इन्द्रने बारंबार विन उपस्थित किया, किन्तु महायशस्वी ब्राह्मणने अपने तेजसे