________________
२३०
अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
-----------------------------------------------------------------------------------------------------
सुमना बोली- प्राणनाथ ! महापातकी मनुष्योंकी मृत्युके स्थान और चेष्टाका वर्णन करती हूँ। दुष्टात्मा पुरुष विष्ठा और मूत्र आदि अपवित्र वस्तुओंसे युक्त और पापियोंसे भरे हुए भूभागमें रहकर बड़े दुःखसे प्राण त्याग करता है। चाण्डालके स्थानपर जाकर दुःखपूर्वक मरता है। गदहोंसे घिरी हुई भूमिमें वेश्या भवनमें तथा चमारके घरमें जाकर वह मृत्युको प्राप्त होता है। हड्डी, चमड़े और नखोंसे भरी हुई पृथ्वीपर पहुँचकर दुष्टात्मा पुरुषकी मृत्यु होती है। अब मैं उसे ले जानेकी इच्छासे आये हुए यमदूतोंकी चेष्टाका वर्णन करती हूँ। वे अत्यन्त भयानक, घोर और दारुण रूप धारण किये आते हैं। उनके शरीर अत्यन्त काले, पेट लंबे-लंबे और आँखें कुछ-कुछ पीली होती हैं। कोई पीले, कोई नीले और कोई अत्यन्त सफेद होते हैं। पापी मनुष्य उन्हें देखकर काँप उठता है, उसके शरीरसे • बारंबार पसीना छूटने लगता है।
1
अब मैं दुःखी जीवकी चेष्टा बताती हूँ। लोभ और स्वादसे मोहित होकर पापी पुरुष जो पराये धन और पराथी स्त्रियोंका अपहरण किये रहते हैं, पहले दूसरेसे ऋण लेकर बादमें उसे चुका नहीं पाते तथा असत्प्रतिग्रह आदि जो अन्य बड़े-बड़े पाप किये रहते हैं—सारांश यह कि मृत्युसे पहले वे जितने भी पापोंका आचरण किये रहते हैं, वे सभी महापापीके कण्ठमें आकर उसके कफको रोक देते और दुःसह दुःख पहुँचाते हैं। असह्य पीडाओंसे उसका कण्ठ घरघराने लगता है। वह बारंबार रोता और माता, पिता, भाई, पत्नी तथा पुत्रोंका स्मरण करता है। फिर महापापसे मोहित होकर वह सबको भूल जाता है। अत्यन्त पीडासे व्याकुल होनेपर भी उसके प्राण शीघ्रतापूर्वक नहीं निकलते वह काँपता तलमलाता और रह-रहकर मूर्छित हो जाता है। इस प्रकार लोभ और मोहसे युक्त मनुष्य सदा मूर्छित होकर ही प्राण त्यागता है। तत्पश्चात् यमराजके दूत उसे यमलोकमें ले जाते हैं।
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
सुनिये, मैं होते हैं, उस मार्गपर पापीको घसीटते हुए ले जाया जाता है। वहाँ वह दुष्टात्मा जीव बारंबार आगमें जलता और छटपटाया करता है। जहाँ बारह सूर्योकि तापसे युक्त अत्यन्त तीव्र धूप पड़ती है, उसी मार्गसे उसे पहुँचाया जाता है। वहाँ वह सूर्यकी प्रचण्ड किरणोंसे संतप्त और भूख-प्याससे पीड़ित होता रहता है। यमदूत उसे गदा, डंडे और फरसोंसे मारते, कोड़ोंसे पीटते तथा गालियाँ सुनाते हैं। तदनन्तर वे पापीको उस मार्गपर ले जाते हैं, जहाँ जाड़ा अधिक पड़ता है और ठंडी हवाका झोंका सहना पड़ता है। पापी पुरुष शीतसे पीड़ित होकर उस मार्गको तय करता है; यमदूत उसे घसीटते हुए नाना प्रकारके दुर्गम स्थानोंमें ले जाते हैं। इस प्रकार देवता और ब्राह्मणोंकी निन्दा करनेवाले, सम्पूर्ण पापोंसे युक्त दुष्टात्मा पापी पुरुषको यमराजके दूत यमलोकमें ले जाते हैं।
वहाँ पहुँचकर वह दुष्टात्मा यमराजको काले अञ्जनकी राशिके समान देखता है। वे उग्र, दारुण और भयङ्कर रूप धारण किये भैंसेपर सवार दिखायी देते हैं। अनेकों यमदूत उन्हें घेरे खड़े रहते हैं। उनके साथ सब प्रकारके रोग और चित्रगुप्त भी उपस्थित होते हैं। द्विजश्रेष्ठ ! उस समय भगवान् धर्मराजका मुख विकराल दादोंके कारण अत्यन्त भयानक और कालके समान प्रतीत होता है। यमराज धर्ममें बाधा डालनेवाले उस महापापी दुष्टको देखते और अत्यन्त दुःखदायी, दुस्सह अस्त्र-शस्त्रोंद्वारा पीडा पहुँचाते हुए उसे कठोर दण्ड देते हैं। वह पापी एक हजार युगोंतक नाना प्रकारकी यातनाओंमें पकाया जाता है। इस प्रकार दुष्ट बुद्धिवाला पापात्मा मनुष्य अपने पापका उपभोग करता है। तत्पश्चात् वह जिन-जिन योनियोंमें जन्म लेता है, उसका भी वर्णन करती हूँ कुछ कालतक कुत्तेकी योनिमें रहकर वह दुष्टात्मा अपना पाप भोगता है। उसके बाद व्याघ्र और फिर गदहा होता है। तदनन्तर बिलाव, सूअर और साँपकी योनिमें जन्म लेता है। इस तरह अनेक भेदोंवाली सम्पूर्ण पापयोनियोंमें उसे बारंबार जन्म लेना पड़ता है। इस प्रकार मैंने आपसे पापियोंके जन्मका सारा वृत्तान्त भी बतला दिया ।
उस समय उसको जो दुःख भोगना पड़ता है, उसका वर्णन करती हूँ। जहाँ ढेर के ढेर अंगारे बिछे