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" . अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्यपुराण
मयूरपर आरूढ़ हो तुरंत ही त्रिलोकीके तीर्थोकी यात्राके सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त कर सकता है। चतुर्थीको दिनभर लिये चल दिये। उन्होंने मुहूर्तभरमें सब तीर्थोंमें स्नान कर उपवास करके श्रीगणेशजीका पूजन करे और रातमें अन्न लिया। इधर लम्बोदरधारी गणेशजी स्कन्दसे भी बढ़कर ग्रहण करे। 'गणेशजीकी स्तुति इस प्रकार करनी बुद्धिमान् निकले। वे माता-पिताकी परिक्रमा करके बड़ी चाहिये-'श्रीगणेशजी ! आपको नमस्कार है। आप प्रसन्नताके साथ पिताजीके सम्मुख खड़े हो गये। फिर सम्पूर्ण विनोंकी शान्ति करनेवाले हैं। उमाको आनन्द स्कन्द भी आकर पिताके सामने खड़े हुए और बोले, प्रदान करनेवाले परम बुद्धिमान् प्रभो ! भवसागरसे मेरा 'मुझे मोदक दीजिये। तब पार्वतीजीने दोनों पुत्रोंकी ओर उद्धार कीजिये। आप भगवान् शङ्करको आनन्दित देखकर कहा-'समस्त तीर्थोंमें किया हुआ सान, करनेवाले हैं। अपना ध्यान करनेवालोंको ज्ञान और सम्पूर्ण देवताओंको किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञोका विज्ञान प्रदान करते हैं। विघ्रराज! आप सम्पूर्ण दैत्योंके अनुष्ठान तथा सब प्रकारके व्रत, मन्त्र, योग और एकमात्र संहारक हैं, आपको नमस्कार है। आप सबको संयमका पालन-ये सभी साधन माता-पिताके पूजनके प्रसन्नता और लक्ष्मी देनेवाले हैं, सम्पूर्ण यज्ञोंके एकमात्र सोलहवें अंशके बराबर भी नहीं हो सकते । इसलिये यह रक्षक तथा सब प्रकारके मनोरथोंको पूर्ण करनेवाले हैं। गणेश सैकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गणोंसे भी बढ़कर है। गणपते ! मैं प्रेमपूर्वक आपको प्रणाम करता हूँ।'* जो अतः देवताओंका बनाया हुआ यह मोदक मैं गणेशको मनुष्य उपर्युक्त भावके मन्त्रोंसे गणेशजीका पूजन करता ही अर्पण करती हूँ। माता-पिताको भक्तिके कारण ही है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित इसकी प्रत्येक यज्ञमें सबसे पहले पूजा होगी।' होता है। अब मैं गणेशजीके बारह नामोंका कल्याणमय
महादेवजी बोले-इस गणेशके ही अप्रपूजनसे स्तोत्र सुनाता है। उनके बारह नाम ये हैं-गणपति, सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हों।
विघ्रराज, लम्बतुण्ड, गजानन, द्वैमातुर, हेरम्ब, एकदन्त, व्यासजी कहते हैं-अतः द्विजको उचित है कि गणाधिप, विनायक, चारुकर्ण, पशुपाल और भवात्मज । वह सब यज्ञोंमें पहले गणेशजीका ही पूजन करे। ऐसा जो प्रातःकाल उठकर इन बारह नामोंका पाठ करता है, करनेसे उन यज्ञोंका फल कोटि-कोटि गुना अधिक सम्पूर्ण विश्व उसके वशमें हो जाता है तथा उसे कभी होगा। सम्पूर्ण देवी-देवताओंका कथन भी यही है। विनका सामना नहीं करना पड़ता।' देवाधिदेवी पार्वतीने सर्वगुणदायक पवित्र मोदक उपनयन, विवाह आदि सम्पूर्ण माङ्गलिक कार्योंमें गणेशजीको ही दिया तथा बड़ी प्रसन्नताके साथ सम्पूर्ण जो श्रीगणेशजीका पूजन करता है, वह सबको अपने देवताओंके सामने ही उन्हें समस्त गणोंका अधिपति वशमें कर लेता है और उसे अक्षय पुण्यकी प्राप्ति होती बनाया। इसलिये विस्तृत यज्ञों, स्तोत्रपाठों तथा है। जो मनुष्य सम्पूर्ण यज्ञके कलशोंमें 'गणानां त्वा-' नित्यपूजनमें भी पहले गणेशजीकी पूजा करके ही मनुष्य इस मन्त्रसे श्रीगणेशजीका आवाहन करके उनकी पूजा
* गणाधिप नमस्तुभ्यं सर्वविभप्रशान्तिद । उमानन्दप्रद प्राज्ञ त्राहि मां भवसागरात् ॥ हरानन्दकर ध्यानज्ञानविज्ञानद प्रभो । विश्वराज नमस्तुभ्यं सर्वदैत्यैकसूदन ।। सर्वप्रीतिप्रद श्रीद सर्वयजैकरक्षक । सर्वाभीष्टप्रद प्रीत्या नमामि त्वां गणाधिप ।।
___-(६१।२६-२८) + गणपतिर्विनराजो लम्बतुण्डो गजाननः । द्वैमातुरच हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥ विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः । द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ॥ विश्वं तस्य भवेदश्यं न च विघ्नं भवेत् क्वचित्।
(६१ । ३१-३३).